सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कॉलेजियम के भेजे नामों को मंज़ूरी देने की समयसीमा बताने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वे शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफ़ारिशों पर कार्रवाई कर सकता है. कोर्ट ने यह भी पूछा कि उसके कॉलेजियम द्वारा भेजे गए दस नाम, जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं, को कब तक मंज़ूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वे शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफ़ारिशों पर कार्रवाई कर सकता है. कोर्ट ने यह भी पूछा कि उसके कॉलेजियम द्वारा भेजे गए दस नाम, जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं, को कब तक मंज़ूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को केंद्र से कहा कि वे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वह शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए की गयी सिफारिशों पर कार्रवाई कर सकता है.

सरकार ने कहा कि वे मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में तय समयसीमा का पालन करेंगे.

सरकार ने नामों को मंजूरी देने में देरी के लिए सिफारिशें समय पर नहीं भेजने के मामले में उच्च न्यायालयों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इनमें से कई ने मौजूदा रिक्त पदों के संदर्भ में पिछले पांच साल में नाम नहीं भेजे हैं.

शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि कॉलेजियम ने 10 नामों की सिफारिश की थी जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं और इन नामों को कब तक मंजूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है?

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इन 10 नामों पर तीन महीने के अंदर फैसला करेगी.

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस संजय किशन कौल तथा जस्टिस सूर्यकांत की विशेष पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, ‘उच्च न्यायालयों का विषय आप हम पर छोड़िए. भारत के उच्चतम न्यायालय के तौर पर हम उच्च न्यायालयों को देख लेंगे और उनसे रिक्तियों से छह महीने पहले सिफारिश करने को कहेंगे. आप हमें तय तर्कसंगत समयसीमा क्यों नहीं बता सकते जिसमें आप कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों पर कार्रवाई कर सकते हैं.’

वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार एमओपी में तय समयसीमा का सख्ती से पालन करेगी. एमओपी में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम, उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम और सरकार के लिए समयसीमा का उल्लेख होता है.

उन्होंने कहा, ‘एमओपी में प्रधानमंत्री के लिए कोई समयसीमा नहीं होती और प्रधानमंत्री कार्यालय से फाइल को मंजूरी मिलने के बाद उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है.’

जब पीठ ने पूछा कि क्या एमओपी में समयसीमा दी गयी है तो वेणुगोपाल ने कहा, ‘हां, 1998 के एमओपी में विभिन्न शाखाओं के लिए समयसीमा निर्धारित हैं. एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) के फैसले के बाद बनाई गयी एमओपी अब भी उच्चतम न्यायालय में लंबित है.’

वेणुगोपाल ने शुरू में कहा कि उच्चतम न्यायालय में 34 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं और पांच पद खाली हैं लेकिन सरकार को कोई सिफारिश नहीं मिली है.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों में 1,080 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं और 416 पद खाली हैं लेकिन सरकार को अभी तक 220 नामों के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम से सिफारिशें प्राप्त नहीं हुई हैं.

कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा है कि 25.07.2019, 17.10.2019 और 18.08.2020 को भेजी गई सिफारिशों पर सरकार तीन महीने के भीतर फैसला लेगी.

इसके अलावा सर्वोच्च न्यायलय ने हाईकोर्ट के लिए समयसीमा निर्धारित करने की बात कही.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हम किसी भी नियुक्ति या न्यायिक नियुक्तियों की समीक्षा नहीं कर रहे हैं. हम बस उस समयसीमा के बारे में जानना चाहते हैं जिसमें सरकार और न्यायपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में आगे बढ़ेंगी.’

ओडिशा में वकीलों की हड़ताल संबंधी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायिक नियुक्त का मामला आ गया था.

इस संबंध में पिछले महीने 25 मार्च को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कॉलेजियम की 55 सिफारिशें सरकार के पास लंबित हैं, जिसमें से 45 सिफारिशें हाईकोर्ट कॉलेजियम और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की 10 सिफारिशें लंबित हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)