गुजरात में कोविड-19 की ‘सुनामी’ क्योंकि राज्य सरकार ने अदालत और केंद्र की नहीं सुनी: हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोविड-19 की स्थिति और लोगों की समस्याओं पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका को सुनते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जितनी चाहिए थी, उतनी सतर्कता नहीं बरती. अदालत ने राज्य सरकार के बेड की उपलब्धता, जांच सुविधा, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन संबंधी दावों पर भी आशंका जताई है.

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15 अप्रैल 2021 को सूरत के एक श्मशान गृह में कोविड-19 से जान गंवाने वालों के शव. (फोटो: पीटीआई)

गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोविड-19 की स्थिति और लोगों की समस्याओं पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका को सुनते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जितनी चाहिए थी, उतनी सतर्कता नहीं बरती. अदालत ने राज्य सरकार के बेड की उपलब्धता, जांच सुविधा, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन संबंधी दावों पर भी आशंका जताई है.

सूरत के एक श्मशान गृह में कोविड-19 से जान गंवाने वालों के शव. (फोटो: पीटीआई)
सूरत के एक श्मशान गृह में कोविड-19 से जान गंवाने वालों के शव. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार को विजय रूपाणी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों में ‘सुनामी’ का सामना कर रहा है क्योंकि उसने पूर्व में अदालत और केंद्र द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल नहीं किया, साथ ही उतनी सतर्कता नहीं बरती गई जितनी बरती जानी चाहिए थी.

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव करिया की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा बिस्तरों की उपलब्धता, जांच सुविधा, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन संबंधी दावों पर भी आशंका जताई.

पीठ ने कहा, ‘आशंका है कि भविष्य में स्थिति और भी खराब हो सकती है. इस अदालत ने फरवरी में कुछ सुझाव दिए थे. हमने और कोविड-19 समर्पित अस्पतालों को तैयार करने को कहा था. हमने कहा था कि पर्याप्त बिस्तर उपलब्ध होने चाहिए, जांच की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, सुनिश्चत करें कि लोग मास्क पहले और सार्वजनिक स्थलों पर सख्त निगरानी रखी जाए.’

अदालत ने कहा, ‘लेकिन, ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने हमारी सलाह पर विचार नहीं किया. इसी वजह से आज कोरोना वायरस महामारी की सुनामी देखी जा रही है. चूंकि, केंद्र लगातार राज्य को इसकी याद दिला रहा था लेकिन सरकार उतनी सतर्क नहीं थी जितनी होनी चाहिए.’’

अदालत ने यह टिप्पणी कोरोना वायरस महामारी की स्थिति और लोगों की समस्या पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए की.

इसके जवाब में महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अदालत को आश्वस्त किया कि राज्य सरकार मामले में ‘गंभीर’ थी और हर संभव प्रयास कर रही है.

रेमडेसिविर इंजेक्शन की उपलब्धता के बारे में उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में स्थिति में सुधार होगा क्योंकि केंद्र सरकार ने गुजरात सरकार के अनुरोध पर इनके निर्यात पर रोक लगा दी है.

जब अदालत ने जांच सुविधा के बारे में पूछा तो त्रिवेदी ने सूचित किया कि डांग जिले को छोड़ राज्य के सभी जिलों में आरटी-पीसीआर जांच प्रयोगशाला है.

हालांकि, जस्टिस करिया ने त्रिवेदी को सरकार के दावे की दोबारा जांच करने को कहा और रेखांकित किया कि आणंद जिले में प्रयोगशाला नहीं है और नमूने अहमदाबाद लाए जाते हैं. पिछली सुनवाई में दिए गए निर्देश के मुताबिक त्रिवेदी ने पीठ के सामने हलफनामे के जरिये स्थिति रिपोर्ट भी सौंपी.

इसमें बताया कि राज्य के करीब 1,000 अस्पतालों में 71,021 बिस्तर हैं, जिनमें से 12 अप्रैल को केवल 53 प्रतिशत ही भरे थे.

इस जवाब से असंतुष्ट पीठ ने कहा, ‘हमें इस आंकड़ों को लेकर गंभीर आशंका है. आप कह रहे हैं कि केवल 53 प्रतिशत बिस्तर भरे हैं, इसके बावजूद मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है. इस स्थिति में आंकड़े कैसे सही हो सकते हैं?’

लाइव लॉ के मुताबिक, कोर्ट ने रेमडेसिविर ड्रग पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और कहा, ‘डब्ल्यूएचओ का अलग कांसेप्ट है, आईसीएमआर का दूसरा, राज्य सरकार का अलग ही नियम है. लोगों का कुछ पता ही नहीं चल रहा है. बेवजह रेमडेसिविर अमृत बन गया है.’

महाधिवक्ता ने ये स्वीकार किया कि रेमडेसिविर इंजेक्शन को ड्रग कंट्रोल एक्ट के तहत मंजूरी नहीं मिली हुई है और वर्तमान में आपात स्थिति में ही इसका इस्तेमाल किया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘बहुत सारी गलत सूचनाएं इसके बारे में फैलाई जा रही हैं, इसका इस्तेमाल इसलिए बढ़ गया है क्योंकि लोग इसकी मांग करते हैं.’

इस पर मुख्य न्यायाधीश नाथ ने कहा कि लोग नहीं, बल्कि डॉक्टर्स इसका इस्तेमाल करने के लिए कहते हैं.

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने दावा किया कि पूरे देश में एक लाख रेमडेसिविर का उत्पादन किया जा रहा था. लेकिन इसके बढ़ते इस्तेमाल और कम उत्पादन के चलते मांग में बढ़ोतरी हो रही है.

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘आप हलफनामा दायर कर ये क्यों नहीं कह देते हैं कि इंजेक्शन हर जगह उपलब्ध है, जब कभी जरूरत पड़ती है तो अस्पताल की पर्ची दिखाकर इसे कोई भी इसे ले सकता है.’

हालांकि बाद में महाधिवक्ता ने कहा डॉक्टर इसका मनमाना इस्तेमाल करने के लिए पर्ची नहीं बना सकते हैं, ऐसी स्थिति में पर्याप्त स्टॉक नहीं बचेगा. हाईकोर्ट ने कहा कि रेमडेसिविर को लेकर फैले भ्रम पर राज्य सरकार खुला बयान जारी करे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्र सरकार ने इस मामले में दायर अपने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने गुजरात में दो बार अपनी टीमें भेजी थीं और मौजूदा परिस्थितियों की ओर ध्यान दिलाते हुए गुजरात के मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) को पत्र लिखकर हाई पॉजिटिविटी रेट को काबू में लाने के लिए कहा गया था.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को कहा गया था कि कोरोना टेस्ट के दौरान आरटी-पीसीआर और एंटीजन टेस्ट के बीच 70:30 का अनुपात बना कर रखें. हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े दर्शाते हैं कि सात और 13 अप्रैल के बीच हुए टेस्ट में सिर्फ 48 फीसदी ही आरटी-पीसीआर टेस्ट हुए हैं.

केंद्र ने कहा कि पॉजिटिविटी रेट को कम करने के लिए आरटी-पीसीआर और एंटीजन टेस्ट के अनुपात को बनाए रखने की जरूरत है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)