‘वोट के समय नेताओं ने कहा कि झुग्गियां नहीं टूटेंगी, कार्रवाई हुई तो कोई मुंह दिखाने नहीं आया’

पूर्वी दिल्ली के शाहदरा पुल के नीचे बसे राजस्थान के गाड़िया लोहार समुदाय की लगभग 100 झुग्गियों को एमसीडी ने बिना सूचना दिए तोड़ डाला.

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पूर्वी दिल्ली के शाहदरा पुल के नीचे बसे राजस्थान के गाड़िया लोहार समुदाय की लगभग 100 झुग्गियों को एमसीडी ने बिना सूचना दिए तोड़ डाला. लोगों का आरोप है कि पुलिस ने उनकी पिटाई भी की.

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चाय की दुकान चलाने वाले अशोक की दुकान और झुग्गी दोनों तोड़ दी गईं. (फोटो: प्रशांत कनौजिया)

‘हम 50 वर्षों से यहां रह रहे हैं और ये जो पुलिया है हमारे बसने के बाद बनी है. एमसीडी वाले कहते हैं कि हमारी बस्ती अवैध है और हमें यहां से जाना होगा. हम महाराणा प्रताप के वंशज हैं और हमारे साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है,’ ये कहना मानसरोवर पार्क मेट्रो स्टेशन के पास शाहदरा पुल के नीचे बसी बस्ती में रहने वाले कालीचरण का है, जो राजस्थान के गाड़िया लोहार समुदाय से आते हैं. वह शाहदरा में ही लोहे का काम करते हैं.

22 अगस्त को एमसीडी और ईडीएमसी ने संयुक्त कार्रवाई कर शाहदरा पुल के नीचे बसे परिवारों की लगभग 100 झुग्गियों को तोड़ दिया. अधिकारी कार्रवाई के वक़्त भारी सुरक्षा बलों के साथ थे और साथ में दो जेसीबी भी थीं.

प्रभावित लोगों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने उन्हें किसी भी तरह की सूचना नहीं दी थी. अचानक हुई इस कार्रवाई हुई में यहां बसे लोगों को अपनी झुग्गियों से सामान तक निकालने का मौका नहीं दिया गया. लोगों ने आरोप लगाया है कि कार्रवाई के दौरान पुलिस ने बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों को पिटाई भी की थी.

70 वर्षीय केलादेवी का कहना है, ‘मैं और मेरा परिवार मेरी पोती को अस्पताल ले गए थे. कार्रवाई वाले दिन मेरी पोती छत से गिर गई थी. हम लोग उसे लेकर अस्पताल गए थे और हमारे पीछे यह सब हो गया. हमें पता भी नहीं कि पुलिस और सरकारी लोग इस तरह सामान समेत हमारा घर तोड़ देंगे. हम बहुत दुखी हैं, परेशान हैं. हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है. नेता लोग वोट मांगने के समय बोले थे कि आपका घर नहीं टूटेगा, पर जब कार्रवाई हुई तो कोई नेता मुंह दिखाने नहीं आया.’

ऐसी बस्तियों में जब भी इस प्रकार की कार्रवाई होती है तो सबसे ज़्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं क्योंकि घर में सबसे ज़्यादा वक़्त उन्हें ही रहना होता है. बस्ती के पुरुष अमूमन काम पर बाहर चले जाते हैं.

इस बस्ती की साहिबा बताती हैं, ‘जब हमारा घर तोड़ा जा रहा था, तब बारिश हो रही थी. महिला पुलिसकर्मियों ने जबरन हमें यहां से हटाया. हमने उनसे सामान हटाने का वक़्त भी मांगा पर उन्होंने एक न सुनी और जेसीबी से सामान समेत घर तोड़ दिया. मीटर ले गए पीने के पानी की सप्लाई भी बंद कर दी गई. हम लोग क्या खाएंगे और क्या पीएंगे सरकार के लोग यह भी नहीं सोचते.’

पीड़ित केलादेवी अपने टूटे घर के सामने. (फोटो: प्रशांत कनौजिया)
पीड़ित केलादेवी अपने टूटे घर के सामने. (फोटो: प्रशांत कनौजिया)

सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पांडेय फिलहाल क़ानूनी रूप से इन झुग्गीवालों की मदद कर रहे हैं. इस कार्रवाई पर उनका कहना है, ‘ये लोग रोज़गार के चलते अपना घर छोड़कर दिल्ली जैसी शहर में आते हैं. इस शहर की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं. इतने वर्षों तक रहने के बाद भी इन्हें अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. सरकार का काम है इन्हें पक्के मकान दें, लेकिन सरकारों का काम ये लोग स्वयं कर रहे हैं.’

अशोक आगे बताते हैं, ‘ये लोग शहर के किसी रिहायशी इलाक़े में नहीं बसते. ये सभी लोग शहर के सबसे घटिया इलाके में बसते हैं. जहां सिर्फ जंगल और जानवर के अलावा कुछ नहीं होता. जब सरकार को लगता है कि इनकी ज़मीनों की कीमत बढ़ चुकी हैं तो विकास के नाम पर इनको हटाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. इन लोगों के पास सभी दस्तावेज़ हैं जो साबित करते हैं कि ये लोग यही के रहवासी है.’

अशोक चाहते हैं कि इस कार्रवाई में शामिल सभी एजेंसियों पर एफआईआर दर्ज़ हो. वे कहते हैं, ‘दिल्ली सरकार और डीडीए के नियम के अनुसार ये सभी लोग उस श्रेणी में आते हैं, जिनका ऐसी कार्रवाई के बाद पुनर्वास किया जाए, लेकिन ये क्या हरकत है कि इन लोगों की जमा पूंजी से बना घर तोड़ दिया जाता है. ये कार्रवाई दरअसल इन लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है और इस पर मामला दर्ज़ होना चाहिए.’

11 वर्षीय शिवा बताते हैं कि मंगलवार को जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी उनका घर तोड़ रहे थे तब उन्होंने अपने घर से कुछ सामान बचाने का प्रयास किया था. शिवा ने आरोप लगाया कि जब वे समान निकालने का प्रयास कर रहे थे तब पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीट दिया था.

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टूटे घर और बिखरे सामान के बीच प्रभावित लोग. (फोटो: प्रशांत कनौजिया)

चाय की दुकान चलाने वाले अशोक 30 वर्षीय ने बताया कि उनकी दुकान और घर को तोड़ दिया गया. अब उनका पूरा परिवार सड़क पर जीवन बीतने को मजबूर है.

एक हाथ से अपाहिज अशोक बताते हैं, ‘जब पुलिस जेसीबी के साथ आई मेरी दुकान और झुग्गी पूरी तरह से तोड़ दिया. मेरी बीवी, तीन बच्चे और बूढ़ी मां सड़क पर आ गए हैं. बारिश के चलते हमारा पूरा समान भीग रहा है. पुलिसवालों ने धमकाया है कि अगर दुकान लगाऊंगा, तो जेल में डाल देंगे. अगर मैं दुकान नहीं चलाऊंगा तो मेरे बच्चे और मां भूखे मर जाएंगे.’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने चुनाव के समय में वादा किया था कि दिल्ली में बरसों से बसी हुईं झुग्गियों को बिना पुनर्वास तोड़ा नहीं जाएगा. स्थानीय विधायक और पार्षदों ने आश्वासन दिया था कि ऐसी कोई भी कार्रवाई नहीं होगी. प्रभावित लोगों ने आरोप लगाया है कि जब पुलिस जेसीबी से घर तोड़ रही थी तब किसी भी जनप्रतिनिधि या नेता ने उनका फ़ोन तक नहीं उठाया.

मितवा बताती हैं, ‘दो दिन पहले ही मेरा बच्चा जन्मा है और हमारा घर तोड़ दिया गया. हमें सड़क पर सोना पड़ रहा है और मेरे दो दिन के बच्चे को रातभर मच्छरों ने चबा डाला. अगर मेरे बच्चे को डेंगू या मलेरिया हो गया तो क्या सरकार इलाज का पैसा देगी. हम इतने साल से यहां रह रहे हैं और हमें हटाया जा रहा है.’

लोहे का काम करते प्रभावित लोग (फोटो: प्रशांत कनौजिया)
तोड़ फोड़ के बाद लोहे का काम करते प्रभावित लोग. (फोटो: प्रशांत कनौजिया)

दिल्ली के मुख्यमंत्री से मिलकर लौटे चंद्रपाल का कहना है कि उन्हें मुख्यमंत्री ने कोई भी आश्वासन नहीं दिया है. वे बताते हैं, ‘केजरीवाल ने कहा कि ये पीडब्ल्यूडी की ज़मीन है और पुल के नीचे रह नहीं सकते. हम आज से नहीं 1984 से यहां रह रहे हैं, जब ये पुल और यहां मौजूद कालोनी भी नहीं थी.’

गाड़िया लोहार समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चंद्रपाल बताते हैं, ‘सब लोग कहते हैं कि गाड़िया लोहार समुदाय के लोगों को ज़मीन आवंटित हो चुकी है लेकिन मैं चुनौती देता हूं कि कोई ये बात साबित कर दे.’

वे कहते हैं, ‘हमारे पास बिजली और पानी का बिल है. कार्रवाई करने वाले हमारे बिजली के मीटर तक उखाड़ कर ले गए. पीने का पानी बंद कर दिया. चुनाव में नेता यहां हाथ जोड़ कर आते थे, लेकिन अब जब ये सब हो रहा है तो कोई नहीं आ रहा बोलने.’

नेताओं पर हमला करते हुए चंद्रपाल कहते हैं, ‘चुनाव के वक़्त हाथ जोड़कर वोट तो ले गए. अब वापस चुनाव होगा, फिर हाथ जोड़कर वोट मांगने आएंगे. हम झुग्गी वाले वोट देते हैं और ये लोग नेता हमारे वोट से बनते है. ये अमीर लोग कभी वोट देने नहीं जाते. हम सरकार से विनती करते हैं कि हमें पुनर्वास नियमों के अनुसार घर के बदले घर दिया जाए. हमें कुछ नहीं चाहिए लेकिन सरकार हमें बेघर न करे.’

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