कोई भी सरकार नागरिकों को बुनियादी स्वास्थ्य अधिकार से वंचित नहीं कर सकती: हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कई निर्देश देते हुए कहा कि स्वास्थ्य, मौलिक अधिकार होने के अलावा बुनियादी मानवाधिकार भी है, जिसे कोई भी लोकप्रिय सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है. सामाजिक न्याय एवं समानता में स्वास्थ्य का अपना एक स्थान है और यह सभी के लिए सुलभ होना चाहिए.

(फोटो: रॉयटर्स)

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कई निर्देश देते हुए कहा कि स्वास्थ्य, मौलिक अधिकार होने के अलावा बुनियादी मानवाधिकार भी है, जिसे कोई भी लोकप्रिय सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है. सामाजिक न्याय एवं समानता में स्वास्थ्य का अपना एक स्थान है और यह सभी के लिए सुलभ होना चाहिए.

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नई दिल्ली: कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किया और जीवन के अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि कोई भी सरकार बुनियादी स्वास्थ्य के अधिकार से लोगों को वंचित नहीं कर सकती है.

लाइव लॉ के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीधरन की पीठ ने कहा, ‘नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार तभी मिल सकेगा जब सरकार इलाज, स्वास्थ्य व्यवस्था का उचित इंतजाम करेगी और कोरोना वायरस जैसी आपदा से उन्हें बचाएगी.’

कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि अनुच्छेद 38, अनुच्छेद 39 (ई), अनुच्छेद 41 और अनुच्छेद 47 के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मिले जीवन के अधिकार में अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है.

न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की, जो सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ. अश्विनी कुमार द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को 08.06.2020 को भेजे गए पत्र के आधार पर दर्ज किया गया था.

इस पत्र में राज्य के एक प्राइवेट अस्पताल की अमानवीय घटना का वर्णन किया गया था, जहां अस्पताल ने फीस न भरने के चलते एक वृद्ध मरीज को बेड से बांध दिया था.

इसके बाद कोर्ट ने कई सारे आदेश पारित किए थे और कहा था कि पीड़ितों को समय पर इलाज सुनिश्चित किया जाए.

न्यायालय ने कोरोना महामारी को लेकर राज्य की भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को भी संज्ञान में लिया, लेकिन ये भी कहा कि सरकार की कोशिशें जमीन पर दिखनी भी चाहिए और आम आदमी तक लाभ पहुंचे.

कोर्ट ने कहा, ‘स्वास्थ्य, मौलिक अधिकार होने के अलावा, बुनियादी मानवाधिकार भी है, जिसे कोई भी लोकप्रिय सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है. सामाजिक न्याय एवं समानता में स्वास्थ्य का अपना एक स्थान है और यह सभी के लिए सुलभ होना चाहिए. इसमें रोकथाम, डायग्नोसिस, उपचार और रोगों के प्रबंधन, स्वास्थ्य विकारों के प्रबंधन, रोगों और बीमारी के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य प्रभाव स्थितियों के प्रबंधन सहित सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने की क्षमता शामिल है.’

इस तरह की टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने राज्य को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए कई दिशानिर्देश पारित किए, जिसमें सभी तरह के अस्पतालों में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की लगातार आपूर्ति जारी रखने, नए कोविड केयर सेंटर चालू करने, कोरोना अस्पताल शुरू करने इत्यादि निर्देश दिए गए हैं.

न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को जिला एवं सिटी अस्पतालों को बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए, जो मिडिल क्लास/निम्न वर्ग और गरीब लोगों की मेडिकल जरूरतों को पूरी करते हैं. कोर्ट ने कहा कि यहां पर ऑक्सीजन, रेमडेसिविर समेत कोरोना से संबंधित सभी जरूरतों को पूरी किया जाए.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोरोना जांच को लेकर अभी तक राज्य ने रेट निर्धारित नहीं किया है तो उन्हें प्राइवेट अस्पतालों/नर्सिंग होम द्वारा लिए जाने वाले चार्ज को तय करना चाहिए.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार राज्य में बेड, आईसीयू, वेंटिलेटर संबंधी सभी आंकड़ों को ऑनलाइन उपलब्ध कराए और इसे रियल-टाइम बेसिस पर अपडेट किया जाना चाहिए.

इसके साथ ही न्यायालय ने जांच बढ़ाने और कोरोना रिपोर्ट देने में तेजी करने का भी निर्देश दिए हैं.