बिना सहमति के सोशल मीडिया से ली गई तस्वीरें पोर्न वेबसाइट पर डालना अपराधः हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फेसबुक, इंस्टाग्राम से उठाई गई तस्वीरों को बिना उस व्यक्ति की सहमति के पॉर्न वेबसाइट पर अपलोड करना आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत अपराध है. अगर फोटो आपत्तिजनक नहीं भी हैं तब भी संबंधित व्यक्ति की सहमति के बिना ऐसा करना उस शख़्स की निजता का उल्लंघन है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फेसबुक, इंस्टाग्राम से उठाई गई तस्वीरों को बिना उस व्यक्ति की सहमति के पॉर्न वेबसाइट पर अपलोड करना आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत अपराध है. अगर फोटो आपत्तिजनक नहीं भी हैं तब भी संबंधित व्यक्ति की सहमति के बिना ऐसा करना उस शख़्स की निजता का उल्लंघन है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसले में कहा कि फेसबुक और इंस्टाग्राम से उठाई गई तस्वीरों को बिना उस व्यक्ति की सहमति के पॉर्न वेबसाइट पर अपलोड करना आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत अपराध है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि यहां तक कि अगर तस्वीरें अश्लील या आपत्तिजनक नहीं भी हैं तो भी बिना सहमति के इस तरह का कृत्य उस व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है.

जस्टिस अनूप जयराम भंबानी की एकल पीठ ने कहा कि इस तरह के लोगों को अदालती आदेश की जानकारी होने पर आपत्तिजनक कंटेंट तुरंत हटाना होगा. अगर वह कंटेट को हटाने में असफल रहता है तो वह आईटी एक्ट की धारा 79 (1) के तहत मिली छूट को खोने के लिए उत्तरदायी होगा.

अदालत ने कहा, ‘इंटरनेट की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आपत्तिजनक कंटेंट को वर्ल्ड वाइड वेब से से पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता. इस तरह के आपत्तिजनक कंटेंट को सर्च लिस्ट में आने से रोका जा सकता है.’

जज ने दरअसल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां कीं, जिसमें याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी तस्वीरें और जानकारियां बिना उसकी जानकारी और सहमति के उसके फेसबुक और इंस्टाग्राम से ले ली गई और उन्हें गलत तरीके से पॉर्न वेबसाइट पर अपलोड किया गया. ऐसा सोशल मीडिया एकाउंट परउनके प्राइवेसी सेटिंग के एक्टिवेट होने के बावजूद हुआ.

याचिकाकर्ता ने कहा, ‘ऐसा कृत्य आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत दंडनीय है और आईपीसी एवं आईटी एक्ट के तहत हानि के दायरे में आता है.’

अदालत ने इस तरह के मामलो के संदर्भ में अन्य दिशानिर्देश भी जारी किए हैं.

अदालत का यह भी कहना है कि अदालती आदेश मिलने के 24 घंटें के भीतर आपत्तिजनक कंटेंट को वेबसाइट या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाना होगा.

अदालत ने कहा, ‘कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आपत्तिजनक सामग्री से संबंधित सभी जानकारियां जैसे यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यूआरएल), एकाउंट आईडी, हैंडल नेम, इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस, मेटाडेटा, सब्सक्राइबर की जानकारी, एक्सेस लॉग और अन्य जानकारियां जुटाने का निर्देश दिया जाना चाहिए.’