ममता ने मुहर्रम के दिन दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर लगाई रोक

मुहर्रम और दुर्गा मूर्ति विसर्जन एक ही दिन पड़ने से पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी है. सरकार ने कहा है कि 2 से 4 अक्टूबर के बीच दुर्गा मूर्ति विसर्जन किए जा सकेंगे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फोटो: पीटीआई)

मुहर्रम और दुर्गा मूर्ति विसर्जन एक ही दिन पड़ने से पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी है. सरकार ने कहा है कि 2 से 4 अक्टूबर के बीच दुर्गा मूर्ति विसर्जन किए जा सकेंगे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फोटो: पीटीआई)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फोटो: पीटीआई)

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक अक्टूबर को दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी है. दरअसल इस बार मुहर्रम और दुर्गा मूर्ति विसर्जन एक ही दिन पड़ रहा है. मुहर्रम एक अक्टूबर को मनाया जाना है. ममता सरकार का कहना है कि दोनों पर्व के चलते दो समुदायों में विवाद या झगड़ा न हो इसलिए ये फैसला लिया है.

ममता बनर्जी ने अपने आधिकारिक ट्विटर पर कहा है कि 2 अक्टूबर से 4 अक्टूबर तक मूर्ति विसर्जन किया जा सकेगा.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ममता के बुधवार को ऐलान के कुछ घंटो बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने फैसले पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा है कि वो इस फैसले के खिलाफ़ कोर्ट जाएंगे.

ममता का कहना है,’इस वर्ष दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक ही समय पर है. त्योहारों के दौरान हमें शांति बनाए रखना है. मैं पुलिस से पूजा और मुहर्रम समितियों से बात करने को कहूंगी, जहां पर मुहर्रम जुलूस ले जाएंगे वहां बैरिकेड लगाने की व्यवस्था की जाएगी ताकि दोनों समुदायों के जुलूस एक दूसरे के सामने ना हों. इस संबंध में पूजा समितियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई अप्रिय घटना न हो. हम किसी को दंगे भड़काने की इजाजत नहीं देंगे.’

भाजपा राष्ट्रीय महासचिव राहुल सिन्हा का कहना है ‘ममता सरकार का फैसला मनमाना है. उन्होंने हिंदू पर्व पर पाबंदी लगाई है, सिर्फ अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए. सरकार ने रामनवमी और हनुमान जयंती के जुलूसों पर भी रोक लगा रखी है. हम इस मामले को लेकर अदालत जाएंगे.’

इंडिया टुडे के अनुसार, ममता सरकार ने पिछले वर्ष भी इसी तरह का आदेश दिया था, जिसको कलकत्ता हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था. अदालत ने राज्य सरकार के फैसले को मनमाना और विशेष समुदाय को खुश करने का प्रयास बताया था.

6 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य सरकार के आदेश को ख़ारिज कर कहा था कि ऐसा कोई भी फैसला नहीं लिया जाना चाहिए, जिसके चलते दो समुदाय एक दूसरे के खिलाफ़ खड़े हो जाएं.