बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए गए अभियुक्तों की कोविड-19 जांच की जाए और उनका परिणाम नकारात्मक आने पर ही न्यायिक हिरासत में भेजा गया.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों की कोविड-19 जांच की गई हो और उसका परिणाम नकारात्मक आने पर ही उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि 45 वर्ष से अधिक आयु के सभी गिरफ्तार अभियुक्तों को जेल भेजने से पहले अनिवार्य रूप से कोविड-19 टीका लगाया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि ये कदम राज्य भर की जेलों में कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक थे.
पिछले हफ्ते पीठ ने राज्य की 47 जेलों में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बारे में समाचार पत्रों में आईं खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था और इस मुद्दे को एक जनहित याचिका में में बदलकर राज्य सरकार से जवाब मांगा था.
पीठ ने जेलों में संक्रमण को नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में राज्य से मंगलवार को कई सवाल किए थे.
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि राज्य की जेलों में 23,127 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में 47 जेलों में 35,124 कैदी बंद हैं.
राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि 18 अप्रैल की स्थिति के अनुसार राज्य में 188 कैदी जांच में कोविड-19 से संक्रमित पाए गए हैं.
इसके बाद अदालत ने गिरफ्तार अभियुक्तों की कोविड-19 परीक्षण और 45 वर्ष से अधिक आयु वालों का टीकाकरण करने का दिशानिर्देश जारी किया.
हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत है, ताकि कैदियों के जीवन को बचाया जा सके और उनमें आत्मविश्वास पैदा किया जा सके कि राज्य, जिनमें से न्यायपालिका एक हिस्सा थी, को भी उनकी भलाई की चिंता थी.
पीठ ने कहा कि हम यह भी निर्देश देते हैं कि गिरफ्तारी के समय 45 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी आरोपी को बिना विफल हुए टीकाकरण के लिए निकटतम टीकाकरण केंद्र भेजा जाएगा.
अदालत ने पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और उसके वकील मिहिर देसाई को भी अदालत की सहायता के लिए जनहित याचिका में पक्षकार के तौर पर शामिल करने की अनुमति दी थी.
पीयूसीएल ने पिछले साल जेल में कैदियों और कर्मचारियों के बीच कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने उस समय जेलों के लिए दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया जारी की थी.
महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पात्र कैदियों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम पहले से ही चल रहा है.
उन्होंने कहा कि पिछले साल महामारी के कारण जमानत पर या आपातकालीन पैरोल पर रिहा किए गए कैदी अभी भी बाहर हैं. उन्होंने कहा कि राज्य फिर से आपातकालीन पैरोल पर पात्र कैदियों को रिहा करना शुरू करने वाला है.
कुंभकोनी ने कहा कि पिछले साल राज्य ने मौजूदा जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में 36 अस्थायी जेलों का निर्माण किया था और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें भंग कर दिया गया था.
उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य अब अस्थायी जेलों को वापस हासिल कर रहा है और उसने 14 का अधिग्रहण किया है.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा राज्य ने फैसला किया है कि कोविड-19 जांच के बिना किसी नए कैदी को जेल में बंद नहीं किया जाएगा.
अदालत ने राज्य को यह भी सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या 14 अप्रैल के बाद से अपराध दर में कोई कमी आई है, जब मुख्यमंत्री द्वारा कड़े कोविड-19 दिशानिर्देशों की घोषणा की गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)