देश में कोरोना महामारी की स्थिति पर स्वतः संज्ञान लेने के मामले को लेकर कुछ वरिष्ठ वकीलों की टिप्पणियों से नाख़ुश शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई टालते हुए कहा कि उसने देश में कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई करने से उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोविड-19 वैश्विक महामारी स्वत: संज्ञान लेने और देश के उच्च न्यायालयों में दर्ज कुछ मामलों को स्थानांतरित कर खुद सुनने की संभावना जताने के एक दिन बाद अदालत ने कहा कि लोग न्यायाधीशों की बात का गलत अर्थ निकाल रहे हैं.
बीते दिनों में महामारी से उत्पन्न संकटग्रस्त स्थितियों को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट, खासकर दिल्ली और बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी भाषा में फटकार लगाई है.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे (जो शुक्रवार को रिटायर हुए), जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एसआर भट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस बात को लेकर नाराजगी जाहिर की कि कुछ वरिष्ठ वकील कह रहे हैं कि शीर्ष अदालत चाहती है कि उच्च न्यायलय ऐसे मामले न सुनें.
न्यायाधीशों ने कुछ वकीलों द्वारा उनकी आलोचना पर गहरा दुख व्यक्त किया. अदालत ने कहा कि उसने हाईकोर्ट से कोई केस ट्रांसफर नहीं किया है. इससे पहले अदालत ने गुरुवार को कहा था कि उच्च न्यायालयों में इससे संबंधित कई मामले सुने जा रहे हैं, जिनसे ‘भ्रम’ पैदा हो सकता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा गुरुवार को जारी नोटिस पर केंद्र का जवाब दायर करने के लिए समय मांगने के बाद अदालत ने इस मामले की सुनवाई 27 अप्रैल तक के लिए टाल दी है, हालांकि दवाइयों और ऑक्सीजन की सप्लाई समेत जिन मुद्दों को लेकर कोर्ट ने संज्ञान लिया था, वे सभी बेहद महत्वपूर्ण हैं.
गुरुवार को अदालत ने देश में कोविड-19 के बढ़ते मामलों और मौतों की गंभीर स्थिति पर गौर करते हुए कहा था कि वह चाहती है कि केंद्र सरकार मरीजों के लिए ऑक्सीजन और अन्य जरूरी दवाओं के उचित वितरण के लिए एक राष्ट्रीय योजना लेकर आए.
वकीलों के बयानों पर नाराज पीठ, मामले से हटे हरीश साल्वे
न्याय मित्र नियुक्त किए गए साल्वे ने शुरुआत में पीठ से आग्रह किया कि वह मामले से हटना चाहते हैं क्योंकि कुछ वकील ‘अनुचित’ बयान दे रहे हैं.
पीठ ने कहा, ‘हमें भी यह जानकार बहुत दुख हुआ कि मामले में साल्वे को न्याय मित्र नियुक्त किए जाने पर कुछ वरिष्ठ वकील क्या कह रहे हैं.’ साथ ही कहा कि यह पीठ में शामिल सभी न्यायाधीशों का ‘सामूहिक निर्णय’ था.
साल्वे ने कहा कि यह ‘बेहद संवेदनशील’ और ‘आवश्यक’मामला है और वह नहीं चाहते कि मामले में फैसला आने के बाद यह कहा जाए कि मैं सीजेआई को स्कूल और कॉलेज के दिनों से जानता हूं. इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं.’
साल्वे ने उन्हें न्याय मित्र नियुक्त किए जाने पर कुछ वकीलों की कड़वी भाषा का जिक्र किया और कहा, ‘मैं कोई तमाशा नहीं चाहता. विमर्श की भाषा अब बहुत अलग हो चुकी है.’
पीठ में अपने अंतिम दिन सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं. अब केवल एक बात है कि हमें ऐसा न्याय मित्र खोजना होगा जिसे हम भविष्य में जाने नहीं. दुर्भाग्य से, न्यायपालिका में मेरा अब कोई भविष्य नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘हमें भी कुछ वरिष्ठ वकीलों की बातें सुनकर दुख हुआ है. लेकिन हर कोई अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र है.’
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने साल्वे से न्याय मित्र के रूप में मामले से नहीं हटने का आग्रह किया और कहा कि किसी भी दबाव की इन युक्तियों के आगे हार नहीं माननी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हम एक-दूसरे की छवि खराब करने वाली स्थिति में नहीं हैं. मैंने डिजिटल मीडिया पर देखा जो सच में दुर्व्यवहार करने जैसा है…एक वकील को ऐसी युक्तियों के आगे नहीं झुकना चाहिए. साल्वे को फिर से विचार करना चाहिए.’
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को मामले से न्याय मित्र के तौर पर हटने की अनुमति दी और कुछ वरिष्ठ वकीलों द्वारा शीर्ष अदालत पर आरोप लगाने की निंदा की.
साल्वे ने कहा कि वह नहीं चाहते कि मामले में फैसले को लेकर यह कहा जाए कि वह जस्टिस बोबडे को स्कूल और कॉलेज के दिनों से जानते हैं.
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह से कहा, ‘आपने (एससीबीए अध्यक्ष) आदेश पढ़ा है. क्या मामला स्थानांतरित करने की कोई मंशा है… आदेश पढ़े बिना ही उस बात की आचोलना की जा रही है जो आदेश में है ही नहीं. किसी संस्थान को इसी तरह बर्बाद किया जाता है.’
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा, ‘हमने एक शब्द भी नहीं कहा और उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है. हमने केंद्र को उच्च न्यायालयों का रुख करने और उन्हें रिपोर्ट सौंपने को कहा है. किसी तरह की धारणा की बात कर रहे हैं आप? इन कार्यवाहियों की बात करें.’
पीठ ने कहा, ‘आपने हमारा आदेश पढ़े बिना ही हम पर आरोप लगाया है.’ इस पर दवे ने कहा, ‘पूरे देश को लग रहा था कि आप मामलों को अपने पास स्थानांतरित करेंगे.’
पीठ ने कहा, ‘हमने एक शब्द भी नहीं कहा न ही कोई केस ट्रांसफर किया. हमने केंद्र से कहा था कि वह उच्च न्यायालयों में जाए और उन्हें बताए. आप किस तरह की छवि की बात कर रहे हैं?’
इसके बाद पीठ ने कहा कि उसने देश में कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई करने से उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)