आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में एक किसान परिवार में जन्मे 63 वर्षीय जस्टिस एनवी रमना 26 अगस्त 2022 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहेंगे. वे आंध्र प्रदेश से आने वाले देश के दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं.
नई दिल्ली: जस्टिस नूतलपति वेंकट (एनवी) रमना ने देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शनिवार को शपथ ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद की शपथ दिलाई.
जस्टिस एनवी रमना ने कोविड-19 प्रतिबंधों के मद्देनजर राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में शपथ ग्रहण की. समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद उपस्थित थे.
Delhi: Justice NV Ramana takes oath as the new Chief Justice of India (CJI). He was administered the oath by President Ram Nath Kovind, at Rashtrapati Bhavan. pic.twitter.com/jDESeLZh2D
— ANI (@ANI) April 24, 2021
एनडीटीवी के मुताबिक, 27 अगस्त, 1957 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में एक किसान परिवार में जन्मे 63 वर्षीय एनवी रमना 26 अगस्त, 2022 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहेंगे.
वे आंध्र प्रदेश से भारत के दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं. इससे पहले जस्टिस के. सुब्बा राव 1966-67 तक भारत के नौवें मुख्य न्यायाधीश रहे थे.
अपने लगभग चार दशक लंबे करिअर में जस्टिस एनवी रमना ने आंध्र प्रदेश, केंद्र और आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, श्रम, सेवा और चुनाव मामलों में उच्च न्यायालय में अभ्यास किया है.
सर्वोच्च न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर उनकी प्रोफाइल के अनुसार, उन्होंने संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और अंतर-राज्यीय नदी कानूनों में विशेषज्ञता हासिल की है.
उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. उन्होंने 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया.
उन्हें 2013 में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और 2014 में शीर्ष अदालत में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान जस्टिस एनवी रमना कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों में तेजी से नज़र रखने के लिए विशेष अदालतें स्थापित करना, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सीजेआई के कार्यालय को लाना और जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट के निलंबन की तुरंत समीक्षा करने का फैसला शामिल है.
जस्टिस रमना की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से पिछले साल मार्च में इनकार कर दिया था.
इसके अलावा उन्होंने मुकदमे की प्रक्रिया में ग्रामीण वादियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए अदालत की भाषा के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं को लागू करने की आवश्यकता की वकालत की है.
करीब दो हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट ने उस शिकायत को खारिज कर दिया था, जिसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने जस्टिस रमना पर आरोप लगाया था कि वे राज्य की न्यायपालिका में दखल देकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं.
इस संबंध में एक गोपनीय जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रेड्डी के आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि इसमें कोई दम नहीं है.
मालूम हो कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे का कार्यकाल शुक्रवार (23 अप्रैल) को समाप्त हो गया. जस्टिस बोबडे ने नवंबर 2019 में प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी और उनका कार्यकाल 17 महीने का था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)