तीन कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में हरियाणा की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने वाले निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को पत्र लिखा था. इसी पत्र का जवाब देते हुए मलिक ने उन्हें लिखे एक पत्र में ये बातें कहीं हैं.
चंडीगढ़: किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा के एक निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान को लिखे गए एक पत्र में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने शुक्रवार को कहा, ‘मैंने आदरणीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जी को बताने की कोशिश की कि वे गलत रास्ते पर हैं और किसानों को दबाने और डराने का प्रयास न करें.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में भाजपा-जजपा सरकार से अपना समर्थन वापस लेने वाले सांगवान ने इसी संबंध में मलिक को पत्र लिखा था.
मलिक ने जवाबी पत्र लिखते हुए कहा कि उन्होंने भी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को बताया कि किसान दिल्ली से खाली हाथ वापस नहीं जाने चाहिए.
राज्यपाल ने उल्लेख किया, ‘मैंने इस किसान आंदोलन के मुद्दे पर माननीय प्रधानमंत्री और माननीय गृह मंत्री से मुलाकात की और किसानों के साथ न्याय करने और उनकी वास्तविक मांगों को स्वीकार करने का सुझाव दिया था. मैंने बैठक में यह भी स्पष्ट किया है कि किसानों के आंदोलन को दबाया नहीं जा सकता है. केंद्र को इसे हल करते हुए उनकी मांगों को स्वीकार करना चाहिए. मैं भविष्य में भी ऐसा प्रयास जारी रखूंगा. इसके लिए जो भी संभव होगा मैं वह करूंगा.’
मलिक ने आगे लिखा, ‘मैं आपको और आपके खाप को यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि मैं आपका साथ कभी नहीं छोड़ूंगा. मैं मई के पहले सप्ताह में दिल्ली आ रहा हूं और संबंधित सभी नेताओं से मिलकर किसानों के पक्ष में आम सहमति बनाने का प्रयास करूंगा.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘मुझे आपका पत्र मिला है, जिसमें आपने संसद और किसान आंदोलन द्वारा पारित कृषि पर तीन कानूनों के बारे में विस्तार से बताया है. देश के किसानों ने एक शांतिपूर्ण तरीके से एक अद्भुत लड़ाई लड़ी है और इस संघर्ष में अपने 300 साथियों को खो दिया है. यह एक चिंता का विषय है कि इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी केंद्र सरकार ने एक बार भी खेद व्यक्त नहीं किया है.’
मलिक ने लिखा, ‘इस तरह का रवैया निंदनीय और निर्दयीता से भरा है. दूसरी ओर सरकार द्वारा किसानों के साथ बातचीत किए बिना आंदोलन को तोड़ने और बदनाम करने की कोशिश की गई. मैं सभी किसानों को बधाई देना चाहूंगा कि वे सरकार के जाल में न पड़ें और अपनी एकता बनाए रखें. मैंने इस मामले में अपने स्तर पर बहुत प्रयास किए हैं, जिसमें आप और आपके खाप को मुझसे अपेक्षाएं हैं.’
बता दें कि इससे पहले मार्च में मलिक ने गृह जनपद उत्तर प्रदेश के बागपत में अपने अभिनंदन समारोह में नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों का पक्ष लेते हुए कहा था कि जिस देश का किसान और जवान असंतुष्ट हो, वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता. उन्होंने कहा था कि यदि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता दे देती है, तो प्रदर्शनकारी किसान मान जाएंगे.
मालूम हो कि प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी, लेकिन गतिरोध बरकरार था. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.
केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)