अदालतों को बिना सोचे-समझे अपराधियों को ज़मानत पर रिहा नहीं करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के सहकारी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राज नारायण सिंह की हत्या के आरोपी की ज़मानत के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि आज़ादी महत्वपूर्ण है, लेकिन लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रखने वाले लोगों की ज़मानत मंजू़र करते वक़्त कोर्ट को गवाहों और पीड़ितों के लिए संभावित ख़तरे पर विचार करना चाहिए.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के सहकारी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राज नारायण सिंह की हत्या के आरोपी की ज़मानत के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि आज़ादी महत्वपूर्ण है, लेकिन लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रखने वाले लोगों की ज़मानत मंजू़र करते वक़्त कोर्ट को गवाहों और पीड़ितों के लिए संभावित ख़तरे पर विचार करना चाहिए.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अदालतों को लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रखने वाले लोगों (हिस्ट्रीशीटर) को बिना सोचे समझे जमानत पर रिहा नहीं करना चाहिए और उनकी रिहाई का गवाहों तथा पीड़ित परिवार के निर्दोष सदस्यों पर पड़ने वाले असर पर विचार करना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश (अब सेवानिवृत्त) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक आरोपी को जमानत देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि आजादी महत्वपूर्ण है चाहे किसी व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगा हो, लेकिन अदालतों के लिए ऐसे आरोपी को जमानत पर रिहा करते वक्त पीड़ितों/गवाहों के जीवन और आजादी पर संभावित खतरे को पहचानना भी महत्वपूर्ण है.

पीठ ने कहा, ‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस तरह के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अदालतों को बिना सोचे समझे किसी आरोपी को जमानत पर नहीं छोड़ना चाहिए. यह आवश्यक है कि अदालतें ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते वक्त गवाहों और पीड़ित परिवार के निर्दोष सदस्यों पर पड़ने वाले असर पर विचार करें, जो अगले पीड़ित हो सकते हैं.’

पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन भी थे.

पूर्व के आदेशों का जिक्र करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब यह माना जाता है कि अपराधी का पूर्व में भी अपराध का रिकॉर्ड रहा है, तो उच्च न्यायालयों के लिए हर पहलू की जांच करना आवश्यक हो जाता है और केवल समानता के आधार पर आरोपी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में विभिन्न पहलुओं की अनदेखी की है, जैसे- गवाहों की जान को व्यापक खतरा और इस कारण ट्रायल कोर्ट को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने को मजबूर होना पड़ा है.

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में अभियुक्तों को बहुत ही उदार शर्तों पर जमानत दी, जैसे कि जेल अधिकारियों की संतुष्टि के लिए एक व्यक्तिगत बॉन्ड का निष्पादन और उसकी रिहाई के लिए एक महीने के भीतर जमानत देना.

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आरोपी की हरकतों को नजरअंदाज कर दिया है और उसकी आपराधिक गतिविधियों को व्यवस्थित करके उसके कृत्यों को दोहराने की क्षमता है.

उच्चतम न्यायालय सुधा सिंह की अपील पर सुनवाई कर रहा था. ऐसा आरोप है कि आरोपी अरुण यादव ने अन्य लोगों के साथ मिलकर सिंह के पति राज नारायण सिंह की हत्या कर दी थी.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति (यूपीसीसी) के सहकारी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राज नारायण सिंह की 2015 में आजमगढ़ में बेलैसा के पास उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वह सैर के लिए निकले थे.

आरोपी एक काॅन्ट्रैक्ट किलर और एक शार्प शूटर माना जाता है और उस पर पंद्रह मामलों में हत्या, हत्या के प्रयास और आपराधिक साजिश सहित गंभीर अपराधों के लिए मुकदमा चलाया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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