कोर्ट ने वॉट्सऐप ग्रुप के एक एडमिन के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर ख़ारिज की, जिसमें आरोप था कि एक मेंबर द्वारा महिला पर आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने पर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. अदालत ने कहा कि महज़ एडमिन होने मात्र से ये साबित नहीं होता है कि मैसेज में उनकी सहमति शामिल थी.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि वॉट्सऐप ग्रुप में किसी मेंबर द्वारा भेजे गए आपत्तिजनक मैसेज के लिए एडमिन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि किसी वॉट्सऐप ग्रुप का महज एडमिन होने मात्र से ये साबित नहीं होता है उस मैसेज में उनकी मंजूरी थी, क्योंकि एक एडमिन ग्रुप में भेजे जा रहे संदेशों को रेगुलेट नहीं कर सकता है.
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस जेडए हक और अमित बी. बोरकर की पीठ ने कहा, ‘ग्रुप के किसी मेंबर द्वारा भेजे गए आपत्तिजनक कंटेंट के लिए एडमिन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि ऐसा साबित न किया जा सके कि इसमें उनकी सहमति थी या ये सुनियोजित तरीके से किया गया था.’
कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ उस एफआईआर और चार्जशीट को खारिज कर दिया, जिसमें एक ग्रुप एडमिन के खिलाफ आईपीसी की धारा 354-ए (1) (iv) (यौन टिप्पणी करना), 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले शब्दों का इस्तेमाल), 107 (किसी चीज के लिए भड़काना) और आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत केस दर्ज किया गया था.
इस मामले में आरोप लगाया गया था कि जब एक ग्रुप मेंबर ने दूसरे महिला मेंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी तो एडमिन ने कोई कार्रवाई नहीं की थी.
महिला ने कहा था कि एक व्यक्ति द्वारा लगातार उनके खिलाफ गंदी टिप्पणियां किए जाने के बावजूद एडमिन ने न तो उन्हें ग्रुप से निकाला और न ही उन मैसेजेस को डिलीट किया गया.
उन्होंने यह भी कहा कि एडमिन ने आरोपी से ये भी नहीं कहा कि वे अपने कृत्यों के लिए माफी मांगें.
हालांकि पीठ ने कहा कि इस मामले में एडमिन द्वारा व्यक्ति को ग्रुप से न हटाने या उनसे माफी मांगने के लिए न कहने के चलते, ये नहीं कहा जा सकता कि एडमिन ने यौन टिप्पणी की या इसमें साथ दिया.
कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में अपने मैसेज के लिए ग्रुप के मेंबर खुद जिम्मेदार हैं और आईपीसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कि ग्रुप के एडमिन को इसके लिए दोषी ठहराए.