मद्रास हाईकोर्ट द्वारा कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल लागू करवाने में चुनाव आयोग की नाकामी की आलोचना के बाद आयोग ने कहा है कि महामारी से जुड़े क़ानूनी प्रावधानों के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन इकाइयों की है और उसने कभी यह भूमिका अपने हाथ में नहीं ली.
नई दिल्ली: विधानसभा चुनावों के दौरान कोविड-19 से संबंधित प्रोटोकॉल लागू करवाने में कथित विफलता को लेकर आलोचना का सामना कर रहे निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को कहा कि महामारी के खिलाफ लड़ने से जुड़े कानूनी प्रावधानों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन इकाइयों की है.
आयोग ने इस बात पर भी जोर दिया कि उसने राज्य और जिला प्रशासनों को लगातार यह निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशानिर्देशों को लागू करें ताकि कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सके.
चुनाव आयोग ने कहा कि उसने किसी भी मौके पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की भूमिका अपने हाथ में नहीं ली.
चुनाव आयोग का यह बयान आने से एक दिन पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने चुनावों के दौरान कोविड संबंधी दिशानिर्देशों का पालन कराने में विफल रहने को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ सख्त रुख दिखाया था.
सोमवार को हाईकोर्ट ने आयोग की तीखी आलोचना करते हुए उसे देश में महामारी की दूसरी लहर के लिए अकेले ज़िम्मेदार बताया. अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है.
इसने यह भी कहा था कि निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर महामारी को फैलने के मौका दिया.
उच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह मतगणना के दिन अपनाए जाने वाले कोविड-19 प्रोटोकॉल से संबंधित ब्लूप्रिंट के बारे में 30 अप्रैल तक विस्तृत रिपोर्ट दायर करे.
आयोग ने एक बयान में कहा कि वह उच्च न्यायालय के सभी निर्देशों का 30 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई में पालन करेगा.
उसने कहा कि मीडिया के एक हिस्से में उच्च न्यायालय की तरफ से कई ऐसी टिप्पणियों का उल्लेख किया गया जो पारित आदेश में नहीं हैं. आयोग ने संभवत: न्यायाधीशों की तरफ से की गई मौखिक टिप्पणियों का हवाला दिया.
मद्रास उच्च न्यायालय में दायर याचिका का उल्लेख करते हुए आयोग ने कहा कि इसी तरह की याचिकाएं चुनावों के दौरान दायर की गईं और आयोग ने इनको लेकर अपनी ओर से जवाब भी दाखिल कर दिए हैं.
बयान के मुताबिक, आयोग ने अपनी ओर से इस ‘कानूनी और तथ्यात्मक रुख’ से अवगत कराया कि उसने अपनी ओर से कोविड सुरक्षा सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास किया.
आयोग ने कहा कि कोविड-19 से संबंधित सुरक्षा उपायों को लागू कराने की जिम्मेदारी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की है. इन उपायों में लॉकडाउन, भीड़ को प्रतिबंधित करना या नियंत्रित करना और प्राधिकरण के अधिकारियों को आपदा प्रबंधन कानून-2005 का पालन करना शामिल है.
उसके मुताबिक, चुनाव प्रचार के दौरान भीड़ जमा होने को कानून के तहत राज्य प्रशासन द्वारा नहीं रोका गया.
बयान में कहा गया है कि पिछले साल लॉकडाउन और दूसरे उपायों के बीच आयोग ने बिहार में चुनाव संपन्न कराया था. ज्ञात हो कि बिहार में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हुआ था.
आयोग ने कहा कि चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेशों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करते समय उसने 26 फरवरी को दिशानिर्देशों का फिर से उल्लेख किया था.
उसने कहा, ‘चुनाव प्रचार अप्रैल में खत्म हुआ. कोरोना की दूसरी लहर पूरी तरह सामने नहीं आई थी. छह अप्रैल को (चार राज्यों में) कोविड से संबंधित सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए मतदान संपन्न हआ, जिसमें अच्छी-खासी संख्या में लोगों ने भागीदारी की.’
आयोग ने कहा कि इन दलीलों को विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को ही आयोग ने जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां पर मतगणना के दौरान या उसके बाद में सभी विजयी जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया है. सूत्रों के अनुसार, कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए यह फैसला लिया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)