इससे पहले जम्मू कश्मीर प्रशासन ने बीते 30 अप्रैल को कुपवाड़ा के एक सरकारी शिक्षक को राज्य की सुरक्षा को ख़तरा बताते हुए बर्ख़ास्त कर दिया था. केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक नया क़ानून लागू किया गया है, जिसके तहत ‘राज्य की सुरक्षा’ के ख़िलाफ़ संदिग्ध गतिविधियों वाले सरकारी कर्मचारियों को बिना जांच किए बर्ख़ास्त किया जा सकता है.
श्रीनगर: राज्य की सुरक्षा का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दो और सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. इन दो सरकारी कर्मचारियों में एक एक असिस्टेंट प्रोफेसर और दूसरे एक राजस्व अधिकारी हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सहायक प्रोफेसर डॉ. अब्दुल बारी नाइक और नायब तहसीलदार नज़ीर अहमद वानी को अनुच्छेद 311 (2) (सी) के प्रावधानों के तहत बर्खास्त कर दिया गया है, जो सरकार को उनके खिलाफ जांच किए बिना सरकारी कर्मचारियों की सेवाओं को समाप्त करने की अनुमति देता है.
जम्मू कश्मीर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा इस संबंध में अलग से आदेश जारी किया गया है.
नाइक को मार्च 2018 में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी पर पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में कहा था कि वह फरार थे.
हालांकि, इस अवधि के दौरान वह अपने गृह जिले में कोविड जिला प्रभारी के रूप में काम कर रहे थे और जिले के सभी वरिष्ठ पुलिस और सिविल अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में थे.
दिलचस्प बात यह है कि नाइक ने 2014 का चुनाव दक्षिण कश्मीर के कुलगाम से निर्दलीय के रूप में लड़ा था. उन्होंने भूगोल में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया और अपनी गिरफ्तारी से पहले उधमपुर के गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में तैनात थे.
डॉ. अब्दुल बारी नाइक के भाई और पेशे से वकील रउफ नाइक ने कहा, ‘इस मामले में राज्य की कोई सुरक्षा शामिल नहीं है. डॉ. साहब (नाइक) के खिलाफ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए मुकदमा दर्ज किया गया था. वह एक सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता थे.’
रउफ ने कहा कि वे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात करेंगे और उनसे मिलने के बाद ही अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.
पुलवामा में नायब तहसीलदार रहे नज़ीर अहमद वानी को पिछले साल तब गिरफ्तार किया गया था जब पुलिस ने दावा किया था कि उसने उनके मालिकाने वाली एक दुकान में आतंकी ठिकाना पाया गया था. हालांकि, उनके परिवार ने इस आरोप से इनकार किया था.
उनकी गिरफ्तारी से एक महीने पहले वानी ने पुलवामा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आशीष मिश्रा के खिलाफ पुलवामा में पुलिस द्वारा ताकत के दुरुपयोग की शिकायत की थी.
उस समय कोविड ड्यूटी पर एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में काम करने वाले वानी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उन्हें पुलिस द्वारा रोका गया था और जहां वे मजिस्ट्रेट की ड्यूटी के लिए तैनात थे, वहां पुलिस द्वारा उनके ड्राइवर को पीटा गया था.
मालूम हो कि इससे पहले इसी तरह की एक कार्रवाई में सरकार ने बीते 30 अप्रैल को कुपवाड़ा के एक सरकारी शिक्षक इदरीस जान को इन्हीं प्रावधानों के तहत राज्य की सुरक्षा को खतरा बताते हुए बर्खास्त कर दिया गया था.
कर्मचारी संघ द्वारा सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की निंदा की गई थी. कर्मचारी संयुक्त कार्रवाई समिति (ईजेएसी) ने सरकार के फैसले को एकतरफा करार दिया था.
इसके साथ ही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इदरीस जान की बर्खास्तगी की आलोचना करते हुए कहा था कि सरकार ने इस महामारी के दौरान अपनी प्राथमिकता गलत जगह पर लगा दी है.
गौरतलब है कि केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रशासन ने ‘राज्य की सुरक्षा’ के खिलाफ संदिग्ध गतिविधियों वाले सरकारी कर्मचारियों के मामलों की जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है. संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के अंतर्गत पारित इस आदेश के तहत सरकार को हक है कि वो बिना जांच समिति का गठन किए किसी भी कर्मचारी को बर्खास्त कर दे.
अपने नवीनतम कदम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन द्वारा एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) का गठन किया गया है, जो ‘अनुच्छेद 311 (2) (सी) के तहत संदिग्ध गतिविधियों वाले कर्मचारियों के मामलों की जांच करेगा.’