गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि यह सच है कि राज्य सरकार द्वारा क़दम उठाए गए हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह पर्याप्त नहीं है और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आगे भी जनता को महामारी के गंभीर प्रभाव के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है. वर्तमान परिस्थितियों में और अधिक प्रतिबंध लगाने के बारे में सोचा जा सकता है.
अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए उठाए गए कदम वर्तमान स्थिति में ‘पर्याप्त नहीं’ हैं और बड़े पैमाने पर लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए और प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट की यह टिप्पणी राज्य सरकार द्वारा उसे घातक वायरस के प्रसार को रोकने के लिए किए गए उपायों के बारे में सूचित किए जाने के बाद आई.
चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीडी कारिया की खंडपीठ ने कहा, ‘यह सच है कि राज्य सरकार द्वारा कदम उठाए गए हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह पर्याप्त नहीं है और वायरस के प्रसार की शृंखला को तोड़ने के लिए आगे भी जनता को महामारी और समाज पर इसके गंभीर प्रभाव के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है. वर्तमान परिस्थितियों में और अधिक प्रतिबंध लगाने के बारे में सोचा जा सकता है.’
गुजरात में कोविड-19 स्थिति पर हाईकोर्ट ने स्वत: एक जनहित याचिका पर संज्ञान लिया था और बुधवार को अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया था.
अदालत ने कहा कि वह इस संबंध में सरकार को कोई निर्देश या सुझाव देने से बच रही है.
पीठ ने कहा, ‘यह राज्य के लिए जनता के कल्याण को ध्यान में रखते हुए उचित कदम उठाने के लिए है. जब तक बहुत जरूरी होने पर ही लोगों को एक जगह से दूसरे जगह जाने जैसे कदम नहीं उठाए जाते हैं तब तक वायरस के प्रसार की शृंखला नहीं टूटेगी और बड़े पैमाने पर जनता पीड़ित होगी.’
अपने जवाब में महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अदालत को बताया कि 28 अप्रैल से 5 मई तक राज्य के 29 शहरों में रात के 8 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया है, जिसे बढ़ाया जाएगा.
उन्होंने अदालत को बताया, आवश्यक वस्तुओं, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, विपणन यार्डों को बेचने वालों को छोड़कर दुकानों को बंद करने का आदेश देने जैसे प्रतिबंध लगाए गए हैं.
इसके साथ ही विवाह और अंतिम संस्कार में लोगों को सीमित संख्या में अनुमति देना, कार्यालयों को अपनी आधी ताकत पर काम करने की अनुमति देना, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रमों और समारोहों और पूजा स्थलों को बंद करने प्रतिबंध भी लगाए गए हैं.
बता दें कि सरकार ने मंगलवार को 29 शहरों में लगाए गए प्रतिबंध बढ़ा दिए और सात और शहरों में रात्रि कर्फ्यू लगा दिया.
अपने आदेश में अदालत ने सरकार को प्रत्येक शहर और पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) में उपलब्ध कोरोना वायरस परीक्षण सुविधाओं के संबंध में सही डेटा का खुलासा करने का भी निर्देश दिया, ताकि लोग जल्द से जल्द आरटी-पीसीआर परीक्षण करा सकें.
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि सुनवाई की अगली तारीख 11 मई को जिला स्तर पर आरटी-पीसीआर परीक्षण सुविधाओं की उपलब्धता के संबंध में स्पष्ट और पारदर्शी डेटा प्रदान करें.
पीठ ने सरकार से कहा कि वह मेडिकल ऑक्सीजन के वितरण पर डेटा मुहैया कराए और पिछले दो सप्ताह और भविष्य की परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक स्रोतों से इसकी आपूर्ति बढ़ाने के साथ-साथ जीवनदायी गैस की मांग और आपूर्ति की योजना भी बनाए.
अदालत ने कहा, ‘पिछले 15 दिनों से प्रत्येक जिले/अस्पताल से प्राप्त मांग की तुलना में सरकार को केंद्र से विभिन्न जिलों को प्राप्त रेमडेसिविर इंजेक्शन के वितरण के संबंध में भी विवरण देना चाहिए.’
हाईकोर्ट ने शिकायतों पर उठाए गए कदमों पर भी जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अहमदाबाद के 900 बेड के धन्वंतरि कोविड-19 अस्पताल के वॉशरूम को साफ नहीं रखा जा रहा था.
पीठ ने सरकार से पूछा कि कब अस्पताल के सभी 900 बेड को चालू करने की योजना है (वर्तमान में मरीजों के लिए केवल 558 बिस्तर उपलब्ध हैं).
इससे पहले बीते 27 अप्रैल को गुजरात हाईकोर्ट ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के राज्य सरकार के तरीके पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि इस पूरी प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता’ का अभाव है और ‘डॉक्टरों के मरीजों को नहीं देखने के कारण’ अस्पतालों के बाहर संक्रमितों की मौत हो रही है.
हालांकि, तब अदालत ने लॉकडाउन लागू नहीं करने की भी सलाह दी थी और कहा था कि वैश्विक महामारी से निपटने के लिए यह कोई समाधान नहीं है.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उचित जवाब दाखिल नहीं करने के लिए फटकार लगाते हुए कहा था, ‘आपका हलफनामा किसी भी जमीनी हकीकत को प्रतिबिंबित नहीं करता है. यह एक गुलाबी तस्वीर पेश करता है.’
इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोविड-19 की स्थिति और लोगों को हो रही परेशानियों को लेकर बीते 12 अप्रैल को राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि असलियत सरकारी दावों के विपरीत है.
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव कारिया की खंडपीठ ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका पर कहा था, ‘लोग अब सोच रहे हैं कि वे भगवान की दया पर हैं.’
बीते 11 अप्रैल को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने कहा था कि प्रदेश ‘स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति’ की तरफ बढ़ रहा है.
हाईकोर्ट ने कहा था, ‘अखबार एवं न्यूज चैनल भयावह कहानियों, अकल्पनीय तकलीफें, इन्फ्रास्ट्रक्चर की दयनीय स्थिति, टेस्टिंग, बेड्स, आईसीयू में कमी और ऑक्सीजन तथा बेसिक दवाई रेमडेसिविर इत्यादि की कमी को लेकर भरे पड़े हैं.’
गुजरात हाईकोर्ट कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को बीते साल फटकार भी लगा चुकी है.
बीते साल अगस्त महीने में गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत शहर में कोरोना वायरस की स्थिति और इससे सबंंधित दिक्कतों से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्य में उभर रही स्थिति काफी भयावह है.
जस्टिस जेबी पर्दीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की पीठ ने इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 मई 2020 को अपने आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.