ये धमाके राजधानी काबुल के पश्चिम में स्थित शिया बहुल इलाके दश्त-ए-बारची में हुए हैं. इन हमलों में हाज़रा समुदाय को निशाना बनाया गया, जहां ये धमाके किए गए वहां अधिकांश हाज़रा शिया मुसलमान हैं. पिछले महीने अमेरिका और नाटो सैनिकों द्वारा इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से निकलने की घोषणा के बाद यह हमला किया गया है.
काबुल: अफगानिस्तान की राजधानी में बालिका विद्यालय में किए गए भीषण बम धमाके में मृतक संख्या बढ़कर 58 हो गई है. गृह मंत्रालय ने बताया कि मरने वालों में अधिकतर 11 से 15 साल की लड़कियां हैं. शनिवार के इस हमले में कम से कम 150 लोग घायल हुए हैं.
सईद अल शाहदा स्कूल के बाहर खून से सने स्कूल बैग और किताबें बिखरी पड़ी थीं. सुबह में इस विशाल स्कूल परिसर में लड़के पढ़ते हैं और दोपहर में लड़कियों के लिए कक्षाएं चलती हैं.
इलाके के निवासियों ने बताया कि धमाके बहरा कर देने वाले थे. स्थानीय निवासी नासिर राहिमी ने बताया कि उन्होंने तीन अलग-अलग धमाके सुने और फौरन सोच लिया कि धमाके इतने भीषण हैं कि मृतक संख्या निश्चित तौर पर बढ़ेगी.
ये धमाके राजधानी के पश्चिम में स्थित शिया बहुल इलाके दश्त-ए-बारची में हुए हैं. इन हमलों में पश्चिमी दश्त-ए-बारची इलाके के हाजरा समुदाय को निशाना बनाया गया, जहां ये धमाके किए गए वहां अधिकांश हाजरा शिया मुसलमान हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी ने इन हमलों के लिए आतंकी संगठन तालिबान को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि तालिबान के एक प्रवक्ता ने इन हमलों में शामिल होने से इनकार करते हुए इसकी निंदा की है.
पीड़ितों के परिवारों ने हिंसा और मौजूदा युद्ध को समाप्त करने में विफल रहने के लिए अफगान सरकार और पश्चिमी देशों को दोषी ठहराया है.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तारिक अरियान ने बताया कि स्कूल की छुट्टी होने के बाद विद्यार्थी जब बाहर निकल रहे थे, तब स्कूल के प्रवेश स्थान के बाहर तीन धमाके हुए.
अरियान ने बताया कि पहला धमाका विस्फोटकों से लदे एक वाहन से किया गया जिसके बाद दो और धमाके हुए. साथ ही उन्होंने कहा कि हताहतों की संख्या अब भी बढ़ सकती है.
निरंतर बम धमाकों से दहली रहने वाली राजधानी में शनिवार को हुआ हमला अब तक का सबसे निर्मम हमला है. अमेरिकी और नाटो बलों की अंतिम टुकड़ियों की अफगानिस्तान से वापसी प्रक्रिया पूरी करने के बीच सुरक्षा के अभाव और अधिक हिंसा बढ़ने के भय को लेकर आलोचनाएं तेज होती जा रही हैं.
पिछले महीने अमेरिका और नाटो सैनिकों द्वारा इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से निकलने की घोषणा के बाद यह हमला किया गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि न्यूयॉर्क में 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के 20 साल पूरे होने से पहले अमेरिकी सैनिकों के साथ नाटो के देशों और अन्य सहयोगी देशों के सैनिक भी अफगानिस्तान से वापस आएंगे. उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान से कुल 2,500 अमेरिकी सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया 1 मई से शुरू होगी.
हालांकि विदेशी सेना की वापसी से अफगान सुरक्षा बलों और तालिबानी आतंकियों के बीच रणनीतिक केंद्रों पर नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश में संघर्ष बढ़ने की संभावना जताई जा रही है.
बता दें कि पश्चिमी दश्त-ए-बारची इलाका अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों को निशाना बनाकर किए जाने वाले हमलों के लिए कुख्यात है और इन हमलों की जिम्मेदार अक्सर देश में काम कर रहे इस्लामिक स्टेट संबद्ध संगठन लेते हैं. शनिवार को हुए धमाकों की जिम्मेदारी अब तक किसी ने नहीं ली है.
कट्टर सुन्नी मुस्लिम समूह ने अफगानिस्तान के शिया मुस्लिमों के खिलाफ जंग की घोषणा की है. इसी इलाके में पिछले साल मातृत्व अस्पताल में हुए क्रूर हमले के लिए अमेरिका ने आतंकी संगठन आईएस को जिम्मेदार ठहराया था, जिसमें गर्भवती महिलाएं और नवजात शिशु मारे गए थे.
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता गुलाम दस्तीगार नजारी ने कहा कि बम धमाकों के बाद गुस्साई भीड़ ने एंबुलेंसों और यहां तक कि स्वास्थ्यकर्मियों पर भी हमला किया, जो घायलों को निकालने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने निवासियों से सहयोग करने और एंबुलेंसों को घटनास्थल पर जाने देने की अपील की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)