कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक डॉक्टर राकेश मिश्रा का कहना है कि कोविड-19 से लड़ाई में स्वास्थ्य ढांचा बहुत दबाव में है. नए अस्पताल और सुविधाएं लाए जा सकते हैं, लेकिन प्रशिक्षित मानव संसाधन नहीं मिलेगा. इसलिए सबसे कारगर तरीका यही है कि लोगों को संक्रमित होने से बचाया जाए.
नई दिल्ली: कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के पूर्व निदेशक डॉक्टर राकेश मिश्रा का कहना है कि कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए प्रतिबंध जरूरी है और वह चाहे लॉकडाउन ही क्यों न हो.
उनके मुताबिक देश में कोरोना की तीसरी लहर भी जरूर आएगी. कोरोना की दूसरी लहर से देश में जारी संघर्ष, वायरस के नए स्वरूपों और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को लेकर जारी बहस के बीच डॉ. मिश्रा ने द वायर के लिए करण थापर और समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत की.
इस समय देश में रोज 4 लाख के करीब मामले आ रहे हैं और 4 हजार के करीब लोग अपनी जान गंवा रहे हैं? इस स्थिति को कैसे देखते हैं?
स्थिति तो बहुत गंभीर है. चार लाख मामले रोज आ रहे हैं. अस्पताल से छुट्टी मिलने में समय लगता है इसलिए वहां मरीजों की भीड़ लगातार बढ़ रही है. ऐसे में हमें संक्रमण के मामलों की संख्या कम करना और अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने का प्रयास करना होगा.
वैसे अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जा रही है लेकिन हमें संक्रमण के मामलों को कम करना ही होगा. मामले कम करने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंगसिंग बहुत जरूरी है. इसके लिए प्रतिबंध भी बहुत जरूरी है फिर वह चाहे लॉकडाउन ही क्यों न हो.
इस बार का वायरस पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा घातक प्रतीत हो रहा है. क्या यह कोई नया म्यूटेंट हैं?
वायरस का स्वभाव है परिवर्तित होना. नया वायरस पिछले से ज्यादा संक्रामक है तभी मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. कभी-कभी ज्यादा संक्रामक होने के साथ ही यह ज्यादा घातक भी हो होता है. लेकिन अभी तक देखा गया है कि अभी जितने भी इस वायरस के स्वरूप हैं, उनमें टीके प्रभावी और असरकारक हैं.
नए स्वरूप के ज्यादा संक्रामक होने की वजह से आज परिवार के परिवार एक साथ संक्रमित हो रहे हैं. लोग भी अस्पतालों का रुख तब कर रहे हैं जब स्थिति बहुत खराब हो चुकी होती है. ऐसे में लक्षण दिखने या किसी संक्रमित के संपर्क में आने पर जांच तुरंत करानी चाहिए. संक्रमितों को यह भी बताना होगा कि किस स्थिति में उन्हें अस्पताल में भर्ती होना है.
आज हमारा स्वास्थ्य ढांचा भी बहुत दबाव में है. क्योंकि एक साल से ज्यादा हो गए, हमारे चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी लगातार इस बीमारी से जूझ रहे हैं. आप अस्पताल तो बना सकते हो और सुविधाएं भी मुहैया करा सकते हैं लेकिन प्रशिक्षित मानव संसाधन कहां से लाएंगे. इसलिए सबसे कारगर तरीका यही है कि आप संक्रमित होने से बचें. हमें ऐसी स्थिति करनी है कि हमें ऑक्सीजन और अस्पताल की जरूरत ही ना पड़े.
दूसरी लहर इतनी खतरनाक है कि इंसान से लेकर सरकार तक लाचार नजर आ रही हैं. तीसरी लहर के आने की कितनी आशंका है?
तीसरी लहर जरूर आएगी लेकिन वह इससे भी बड़ी हो सकती है और ऐसा भी हो सकता है कि हमें उसका पता ही ना चले. छोटी-सी लहर आकर निकल जाए. यह निर्भर करता है कि हमने इस लहर से कितना कुछ सीखा और हमने कितने लोगों का टीकाकरण किया है. हमें खुद भी सुधरना होगा. भीड़भाड़ से खुद को सुरक्षित रखना होगा.
टीकारकण तेजी से होना चाहिए. अगर हम ऐसा करते हैं तो वायरस लाचार हो जाएगा और तीसरी लहर हमको न भी दिखे ऐसा हो सकता है. हालांकि हमें यह भी ध्यान रखना होगा क्योंकि वायरस भी बदलता रहता है. हमें सावधान रहने की जरूरत है.
अगर नया स्वरूप दिखता है तो हमें उसे वहीं रोकना होगा वह जहां मिलता है. अगले छह महीने बहुत सजग रहना होगा. हमें ध्यान रखना होगा कि फिर वही लापरवाही न बढ़े.
कई विपक्षी दल संपूर्ण लॉकडाउन की वकालत कर रहे हैं और विशेषज्ञ भी इसकी सलाह दे रहे हैं. आपके हिसाब से क्या होना चाहिए?
जवाब: लॉकडाउन पिछली बार कारगर था, इसलिए पिछली बार हम संक्रमण रोकने में काफी हद तक सफल रहे थे. उस लॉकडाउन से हालांकि बहुत तकलीफ भी हुई थी. हमने पिछली बार देखा था. ऐसा नहीं होना चाहिए कि लोग वायरस से बचे लेकिन किसी और वजह से जान गंवाएं…
हमें यह योजना बनानी होगी कि किस तरह से गरीब को बचाकर रखते हुए प्रतिबंधों को लागू किया जाए. इसे संपूर्ण लॉकडाउन कहिए या सीमित प्रतिबंध.
मैं रात्रिकालीन लॉकडाउन या फिर 24 या 48 घंटे के लॉकडाउन के पक्ष में कतई नहीं हूं. आपको जो करना है वह लगातार करना है और 15 दिन या तीन हफ्ते बहुत सख्ती से लगाना होगा.
टीकों और टीकाकरण को लेकर उठ रहे सवालों पर क्या कहेंगे?
कौन-सा टीका अच्छा है, इस बहस का कोई मतलब नहीं है. दोनों टीके सुरक्षित हैं और नए स्वरूपों के खिलाफ कारगर हैं. अब तो करोड़ों लोगों को लग चुका है. इन टीकों से फायदा हो रहा है लोगों को. टीके के बाद लोग संक्रमित हो रहे हैं लेकिन उनकी जान नहीं जा रही है.
टीका एक बहुत बड़ा हथियार है. उसे हमें पूरा इस्तेमाल करना है. जहां तक अभियान का सवाल है उसमें तेजी लानी होगी और नए टीकों को मंजूरी देनी होगी.
सरकार द्वारा स्थापित वैज्ञानिक सलाहकारों के एक मंच आईएनएसएसीओजी द्वारा मार्च के शुरू में देश में एक नए और अधिक संक्रामक वैरिएंट को लेकर चेतावनी दी गई थी. इस चेतावनी के पहुंचने के बाद सरकार की प्रतिक्रिया क्या थी?
सरकार की प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर देखी जा सकती है. टेलीविजन, विज्ञापन, प्रचार सहित कई माध्यमों पर हम मास्क पहनने, ख्याल और स्वच्छता रखने, टीका लगवाने जैसी चीजें सुनते होंगे. लेकिन मुझे लगता है कि हमने पर्याप्त नहीं किया. यहां दो चीजें है. यह पूरी तरह से साफ था कि खतरा है जो हमें डरा रहा है. मामले बढ़ रहे थे.
हम अपने शोध से जानते थे कि नए संस्करण आ रहे हैं और वे नए खतरे पैदा कर सकते हैं. यह बहुत खराब स्थिति पैदा कर सकता है और बाहर हम हर किसी को ऐसा व्यवहार करते हुए देख रहे हैं जैसे कि कुछ भी नहीं है.
आईएनएसएसीओजी की चेतावनी के बाद अनेक राजनीतिक रैलियां आयोजित की गईं जिसमें हजारों लोग शामिल हुए, 20 से 30 लाख लोगों के आयोजन वाला शाही स्नान आयोजित हुआ. क्या यह सही था?
मैं कहूंगा कि अगर आईएनएसएसीओजी नहीं होता तब पर भी यह स्वीकार्य नहीं होता. मुझे लगता है कि हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जहां इन चीजों को स्थगित किया जा सकता है या टाला जा सकता है. मुझे नहीं लगता कि इन चीजों को नियंत्रित संख्याओं के साथ किया जा सकता है.
मुझे पता नहीं है, चुनाव आवश्यक हो सकता है. अगर कुछ नया है, तो एक बार ऐसा कर सकते हैं. लेकिन एक आम आदमी के रूप में, मुझे लगता है कि इस स्थिति में कोई भी सभा स्वीकार्य नहीं है. मुझे नहीं पता है कि एक शादी में 50 लोगों की भी अनुमति क्यों नहीं होनी चाहिए, इन स्थितियों में दो लोग शादी के लिए पर्याप्त हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)