राजनीतिक संकट का सामना कर रहे केपी शर्मा ओली के लिए इसे एक और झटका माना जा रहा है. सितंबर 2015 में लागू किए गए नए संविधान ने बाद यह पहला मौका है, जब कोई सरकार विश्वास मत हार गई है. इस निर्णय के बाद ओली को राष्ट्रपति के सामने अपना इस्तीफ़ा देना होगा, जिसके बाद नई सरकार बनाने पर विचार किया जाएगा.
नई दिल्ली: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सोमवार को प्रतिनिधि सभा में पेश विश्वास प्रस्ताव हार गए.
राजनीतिक रूप से संकट का सामना कर रहे ओली के लिए इसे एक और झटका माना जा रहा है, जो कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल (माओवादी केंद्र) नीत पुष्प कमल दहल गुट द्वारा सरकार से समर्थन वापस लिए जाने के बाद पार्टी पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.
राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के निर्देश पर संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के आहूत विशेष सत्र में प्रधानमंत्री ओली की ओर से पेश विश्वास प्रस्ताव के समर्थन में केवल 93 मत मिले, जबकि 124 सदस्यों ने इसके खिलाफ मत दिया.
69 वर्षीय ओली को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत जीतने के लिए 136 मतों की जरूरत थी, क्योंकि चार सदस्य इस समय निलंबित हैं. प्रचंड की पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद ओली सरकार अल्पमत में आ गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 93 लोगों ने पक्ष में और 124 लोगों ने विपक्ष में मतदान किया. वहीं कुल 15 सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं दिया. सदन में 271 सदस्यों में से 232 सदस्य ही मौजूद थे.
मतदान न करने वाले या अनुपस्थित रहने वाले लोगों में 28 बागी सदस्य सत्तारूढ़ दल कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल के हैं.
सितंबर 2015 में लागू किए गए नए संविधान ने बाद यह पहला मौका है जब कोई सरकार विश्वास मत हार गई है.
इस निर्णय के बाद ओली को राष्ट्रपति के सामने अपना इस्तीफा देना होगा, जिसके बाद नई सरकार बनाने पर विचार किया जाएगा.
विश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए ओली ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए अथक परिश्रम करने वाली सरकार को ‘संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण’ हितों के लिए निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने विपक्ष से किसी के खिलाफ झूठे आरोप नहीं लगाने को कहा.
विपक्षी दलों ने सरकार पर कोरोना महामारी के दौरान सही कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया था.
नेपाल में राजनीतिक संकट पिछले साल 20 दिसंबर को तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर संसद को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया था.
इसके बाद इस साल फरवरी में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने तय समय से पहले चुनाव की तैयारियों में जुटे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को झटका देते हुए संसद की भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दे दिया था.
ओली ने संसद भंग करने की अनुशंसा सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता को लेकर चल रही खींचतान के बीच की थी.
विश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले ओली ने पार्टी नेताओं और काडर से एकजुट होने और इस्तीफे एवं अन्य विभाजनकारी गतिविधियों में शामिल नहीं होने की अपील की थी.
ओली ने यह बयान मीडिया में आई उन खबरों के बाद दिया था, जिसमें कहा गया था कि वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल और झालानाथ खनल के नेतृत्व वाला नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का विरोधी गुट प्रतिनिधि सभा में विश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले इस्तीफे की तैयारी कर रहा है.
द हिमालयन टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक, नेपाल और खनल का नाम लिए बिना ओली ने कहा कि पार्टी को तोड़ने की कोशिश की जा रही है.
उन्होंने कहा कि कुछ स्थानों पर नेताओं द्वारा अपनी ही पार्टी को हराने और विपक्ष को फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है. कुछ स्थानों पर पार्टी के सदस्यों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ पेश विश्वास प्रस्ताव पर सदन में पाला बदल लिया है. अब वे पार्टी के सांसदों को बड़े पैमाने पर इस्तीफा देने के लिए उकसा रहे हैं.
ओली की ये अपील ऐसे समय आई है थी, जब मुख्य विपक्षी नेपाली कांग्रेस ने विश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने का फैसला किया, जबकि जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के महतो-ठाकुर गुट ने अंतिम समय झटका देते हुए कहा कि वह तटस्थ रहेंगे और ओली के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे, जबकि पहले उसने सरकार का समर्थन करने का वादा किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)