पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने गुरमीत राम रहीम को सज़ा मिलने के बाद कहा कि डेरे में हो रही आपत्तिजनक गतिविधियों के बारे में बताने पर लोगों ने विश्वास नहीं किया था, मैं खुश हूं कि आज कोर्ट में यह साबित हो गया.
डेरा सच्चा सौदा में साध्वियों के साथ होने वाले यौन शोषण को सामने लाने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अशुंल छत्रपति ने बलात्कार मामले में गुरमीत राम रहीम को सज़ा मिलने के बाद खुशी जताते हुए कहा, ‘इस फैसले के लिए मैं न्यायपालिका को सलाम करता हूं. इस फैसले के बाद उम्मीद जगी है कि मेरे पिता की हत्या के मामले में भी जल्द न्याय होगा.’
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए अंशुल ने कहा, ‘जब हमने बताया था कि गुरमीत राम रहीम आपत्तिजनक गतिविधियों में संलिप्त है, तब लोगों ने विश्वास नहीं किया था, मैं खुश हूं कि आज कोर्ट में यह साबित हो गया. मैं संतुष्ट हूं. हम लंबे समय से कह रहे थे कि गुरमीत समाज का दुश्मन है.’
People did not agree when we said #RamRahimSingh is involved in objectionable activities. Happy court proved it today: Anshul Chhatrapati pic.twitter.com/gE7YXKMU3z
— ANI (@ANI) August 28, 2017
गौरतलब है कि 2002 में सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने बाबा राम रहीम सिंह के डेरे में होने वाली ग़लत गतिविधियों के ख़िलाफ़ अपने सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ में मोर्चा खोला हुआ था. वे लगातार गुरमीत राम रहीम के डेरे में होने वाले अनुचित कामों को सामने लाने की ख़बरें छापते रहे.
उसी समय एक साध्वी ने डेरा प्रमुख द्वारा सिरसा के आश्रम में किए जा रहे यौन शोषण के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम एक चिट्ठी लिखी थी, जिसे छत्रपति ने 30 मई 2002 को अपने अख़बार में प्रकाशित किया, जिसके बाद ही यह मामला सामने आया.
इस ख़बर के छपने के कुछ महीनों बाद छत्रपति को 24 अक्टूबर 2002 को कथित तौर पर डेरा अनुयायियों द्वारा उन्हें उनके घर पर ही गोली मार दी. गोली लगने के बाद छत्रपति ने लगभग महीने भर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ी और 21 नवंबर 2002 को उनकी मृत्यु हो गई. गौरतलब है कि इस दौरान पुलिस ने किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की.
छत्रपति के बेटे अंशुल ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘मैं उस वक़्त 21 साल का था और मुझे ये समझ ही नहीं आया कि पुलिस के डेरा प्रमुख के नाम एफआईआर दर्ज न करने पर मैं कहां जाऊं.’
अंशुल के अनुसार गोली लगने के बाद अस्पताल में भर्ती छत्रपति ने पुलिस को दिए अपने बयान में आरोपी के बतौर डेरा प्रमुख का नाम दर्ज करने के लिए कहा, पर पुलिस ने ऐसा नहीं किया. यहीं से अंशुल की न्याय के लिए लड़ाई शुरू हुई. गौरतलब है कि मामले में अंशुल इकलौते चश्मदीद गवाह हैं.
जनवरी 2003 में अंशुल ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में सीबीआई जांच करवाने के लिए याचिका दायर की, जिस पर हाईकोर्ट ने नवंबर 2003 में सीबीआई जांच के आदेश दिए.
इसके चार साल बाद 2007 में सीबीआई ने डेरा प्रमुख राम रहीम सिंह के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की, नवंबर 2014 तक सभी साक्ष्य पेश किए गए. अब अगले महीने इस केस की सुनवाई होनी है.
गौरतलब है कि यह मामला भी पंचकूला की उसी सीबीआई अदालत में सुना जाना है, जहां 25 अगस्त को राम रहीम को बलात्कार के मामले में दोषी पाया गया. ज्ञात हो कि 28 अगस्त को अदालत ने गुरमीत राम रहीम को 10 साल क़ैद और 65 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई है.
छत्रपति की हत्या के मामले के अलावा 10 जुलाई 2002 को डेरे के एक पूर्व अनुयायी रणजीत सिंह की हत्या का मामला भी सीबीआई कोर्ट में चल रहा है, जिसकी सुनवाई भी अगले महीने होनी है. ऐसा बताया जाता है कि रणजीत सिंह भी डेरे में होने वाली यौन शोषण सहित कई अनुचित गतिविधियों को सामने लाने की कोशिश कर रहे थे और डेरा प्रमुख के इशारे पर उनकी हत्या की गई.