उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और गांवों में चिकित्सा व्यवस्था ‘राम भरोसे’: इलाहाबाद हाईकोर्ट

मेरठ ज़िला अस्पताल में भर्ती एक मरीज़ की मौत के बाद शव का निस्तारण ‘अज्ञात’ में कर देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि राज्य में स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं है और अगर महामारी की तीसरी लहर आती है तो उत्तर प्रदेश इसके लिए तैयार है.

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Lucknow: UP Chief Minister Yogi Adityanath talks to the media at Central Hall of Assembly in Lucknow, Wednesday, Dec. 19, 2018. (PTI Photo/Nand Kumar) (PTI12_19_2018_000091)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

मेरठ ज़िला अस्पताल में भर्ती एक मरीज़ की मौत के बाद शव का निस्तारण ‘अज्ञात’ में कर देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि राज्य में स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं है और अगर महामारी की तीसरी लहर आती है तो उत्तर प्रदेश इसके लिए तैयार है.

Relatives help Jagdish Singh, 57, out of an ambulance outside a government-run hospital to receive treatment, amidst the coronavirus disease (COVID-19) pandemic, in Bijnor district, Uttar Pradesh, India, May 11, 2021. REUTERS/Danish Siddiqui
बिजनौर का जिला अस्पताल. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में मेरठ के जिला अस्पताल से एक मरीज के ‘लापता’ होने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज का यह हाल है तो छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है.

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की पीठ ने राज्य में कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

64 वर्षीय मरीज संतोष कुमार बीते 21 अप्रैल को मेरठ जिला अस्पताल से कथित तौर पर लापता हो गए थे और उनके परिजनों का कहना है कि अधिकारियों ने उनके शव का अज्ञात में निस्तारण कर दिया गया. इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार की तीन सदस्यीय कमेटी ने कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की है.

अदालत में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक 21 अप्रैल को शाम 7-8 बजे 64 वर्षीय एक मरीज (संतोष कुमार) शौचालय गए थे, जहां वह बेहोश होकर गिर गए. जूनियर डॉक्टर तुलिका उस समय रात्रि ड्यूटी पर थीं.

उन्होंने बताया कि मरीज (संतोष कुमार) को बेहोशी के हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उन्हें होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई.

रिपोर्ट के मुताबिक, टीम के प्रभारी डाक्टर अंशु की रात्रि की ड्यूटी थी, लेकिन वह उपस्थित नहीं थे. सुबह डॉक्टर तनिष्क उत्कर्ष ने शव को उस स्थान से हटवाया, लेकिन व्यक्ति की शिनाख्त के सभी प्रयास व्यर्थ रहे. वह आइसोलेशन वार्ड में उस मरीज की फाइल नहीं ढूंढ सके. इस तरह से संतोष की लाश लावारिस मान ली गई और रात्रि की टीम भी उसकी पहचान नहीं कर सकी. इसलिए शव को पैक कर उसे निस्तारित कर दिया गया.

इस मामले में अदालत ने कहा, ‘यदि डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारी इस तरह का रवैया अपनाते हैं और ड्यूटी करने में घोर लापरवाही दिखाते हैं तो यह गंभीर दुराचार का मामला है, क्योंकि यह भोले-भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ जैसा है. राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है.’

पांच जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर अदालत ने कहा, ‘हमें कहने में संकोच नहीं है कि शहरी इलाकों में स्वास्थ्य ढांचा बिल्कुल अपर्याप्त है और गांवों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जीवन रक्षक उपकरणों की एक तरह से कमी है.’

अदालत की यह टिप्पणी ऐसे समय आई जब बीते 17 मई को पत्रकारों से बातचीत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रदेश में स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं है और अगर (कोविड-19) की तीसरी लहर आती है तो उत्तर प्रदेश इसके लिए तैयार है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि हम राज्य के लोगों को किस ओर ले जा रहे हैं, जैसे कि महामारी की तीसरी लहर.’

उत्तर प्रदेश सरकार से जांच बढ़ाने पर जोर देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘अगर हम जल्द से जल्द कोरोना संक्रमित लोगों की पहचान करने में असफल रहेंगे तो हम निश्चित तौर पर तीसरी लहर को आमंत्रित कर रहे हैं.’

अदालत ने ग्रामीण आबादी की जांच बढ़ाने और उसमें सुधार लाने का राज्य सरकार को निर्देश दिया और साथ ही पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा.

टीकाकरण के मुद्दे पर अदालत ने सुझाव दिया कि विभिन्न धार्मिक संगठनों को दान देकर आयकर छूट का लाभ उठाने वाले बड़े कारोबारी घरानों को टीके के लिए अपना धन दान देने को कहा जा सकता है.

चिकित्सा ढांचे के विकास के लिए अदालत ने सरकार से यह संभावना तलाशने को कहा कि सभी नर्सिंग होम के पास प्रत्येक बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा होनी चाहिए.

अदालत ने कहा कि 20 से अधिक बिस्तर वाले प्रत्येक नर्सिंग होम व अस्पताल के पास कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू के तौर पर होने चाहिए और 30 से अधिक बेड वाले नर्सिंग होम को ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाने की अनिवार्यता की जानी चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश दिए हैं और कहा है कि अगली सुनवाई में इस पर विस्तृत रिपोर्ट दायर करें:

  • सभी नर्सिंग होम में हर एक बेड पर ऑक्सीजन सुविधा होनी चाहिए.
  • सभी नर्सिंग होम/अस्पताल, जहां 20 से अधिक बेड हैं, के कम से कम 40 फीसदी बेड आईसीयू में होने चाहिए.
  • इन 40 फीसदी बेड में से 25 फीसदी बेड पर वेंटिलेटर, 25 फीसदी बेड पर हाई फ्लो नैजल कैन्नुला और 50 फीसदी बेड पर बाइपैप मशीन होना चाहिए. ये प्रावधान उत्तर प्रदेश के सभी नर्सिंग होम/अस्पतालों के लिए अनिवार्य किए जाने चाहिए.
  • 30 से अधिक बेड वाले अस्पतालों में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन प्रोडक्शन प्लांट होना चाहिए.
  • राज्य के बड़े मेडिकल कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में चार महीने के भीतर अच्छी स्वास्थ्य सुविधा की जानी चाहिए, जैसा कि संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टिट्यूट में किया गया है. इसके लिए उचित राशि तत्काल दी जानी चाहिए.

इस साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य के सभी बी और सी ग्रेड के टाउन को कम से कम 20 एंबुलेंस और गांवों को दो एंबुलेंस दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि एक महीने के भीतर ये सुविधान मुहैया करा दी जानी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)