पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान हुए कोरोना संक्रमण से बड़ी संख्या में शिक्षकों, शिक्षा मित्रों आदि के प्रभावित होने पर सरकारी बेरुख़ी से उनके संगठन तो राज्य सरकार से ख़फ़ा हैं, वहीं महामारी के दौरान बढ़ी ज़िम्मेदारियों के बीच सुविधाओं के अभाव को लेकर मनरेगा कर्मी और संविदा एएनएम भी आक्रोशित हैं.
गोरखपुर: पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण से बड़ी संख्या में शिक्षकों, कर्मचारियों की मौत ने उनके संगठनों को आक्रोश से भर दिया है. शिक्षक व कर्मचारी संगठन प्रदेश सरकार पर असंवेदनशील और कठोर रवैया अपनाने का आरोप लगा रहे है.
अपनी कई मांगों पर वर्षों से ध्यान न दिए जाने से पहले से नाराज शिक्षकों, राज्य कर्मचारियों और संविदा कर्मचारियों के संगठन लगातार सरकार को पत्र लिखकर अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं. उनकी नाराजगी इस बात से भी है कि सैकड़ों शिक्षकों, कर्मचारियों की मौत के बाद भी मुख्यमंत्री और मंत्रियों के ने संवेदना के दो शब्द भी नहीं कहे हैं और उनकी मांगों पर हठधर्मिता दिखा रहे हैं.
सरकार और शिक्षकों, कर्मचारियों, संविदा कर्मियों के संगठनों का टकराव लगातार बढ़ रहा है. बेसिक शिक्षा मंत्री द्वारा पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान सिर्फ तीन शिक्षकों की मृत्यु के बयान से शिक्षकों का गुस्सा सातवें आसमान तक पहुंच गया है.
शिक्षक संगठनों के नेताओं ने बेसिक शिक्षा मंत्री के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है.
उधर सरकार के रवैये से खफा मनरेगा कर्मचारियों ने 20 मई से कार्य बहिष्कार का ऐलान किया था लेकिन अफसरों से बातचीत के बाद उन्होंने हड़ताल को एक सप्ताह के लिए टाल दिया है, वहीं संविदा ऑक्ज़िलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम) का अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन जारी है.
पंचायत चुनाव में ड्यूटी के कारण कोविड से हुई मौतों को नकारने से गुस्से में हैं शिक्षक और कर्मचारी
कर्मचारियों और शिक्षकों की सबसे अधिक नाराजगी कोविड-19 की दूसरी लहर के विनाशकारी प्रभाव को देखते हुए भी पंचायत चुनाव कराने की जिद पर है.
पंचायत चुनाव कोरोना की दूसरी लहर को शहर से गांव-गांव तक फैलाने में सुपर स्प्रेडर साबित हुआ है. पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की जान तो गई ही है, अब पंचायत चुनाव लड़े प्रत्याशियों की भी मौत की खबरें लगातार आ रही हैं.
हर जिले में दर्जनों गांवों में 10 से अधिक लोगों की मौत की खबरें स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हो रही हैं.
कोरोना की दूसरी तीव्र लहर के बीच पंचायत चुनाव एक तरह का ‘चुनाव कुंभ’ था जिसमें लाखों की संख्या में प्रत्याशियों और चुनाव कर्मियों ने भाग लिया.
निर्वाचन आयोग के अनुसार, जिला पंचायत सदस्य के 3,050 पदों , ग्राम प्रधान के 58,176 पदों, क्षेत्र पंचायत सदस्यों के 75,845 पदों और ग्राम पंचायत सदस्य के 7,32,476 पदों के लिए 15,52,760 प्रत्याशियों ने नामांकन किया था.
नामांकन पत्रों की वापसी, जांच में नामांकन पत्रों के रद्द किए जाने के बाद 14,15,188 प्रत्याशी चुनाव मैदान में रहे. इसके अलावा चुनाव कराने में करीब चार लाख शिक्षकों-कर्मचारियों ने ड्यूटी की.
चार चरणों में हुए इस चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया 3 अप्रैल को शुरू हो गई थी और दो मई तक मतगणना तक यह प्रक्रिया चलती रही. मतगणना में भी तीन से चार दिन लगे. इस तरह पूरे एक महीने तक पंचायत चुनाव चलता रहा और इस दौरान कोरोना तेजी से पांव फैलाता चला गया.
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने प्रथम चरण के चुनाव के पहले 12 अप्रैल को पत्र लिखकर चुनाव टालने की मांग की थी लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया. प्राथमिक शिक्षक संघ और कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी एवं पेंशनर्स अधिकार मंच ने मतगणना बहिष्कार की भी घोषणा की लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा मतगणना कराने पर रोक से इनकार के कारण उनको अपना निर्णय वापस लेना पड़ा.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के अनुसार पंचायत चुनाव में ड्यूटी के कारण 1621 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है.
मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश सिंह का कहना है कि अभी तक 50 से अधिक मनरेगा कर्मचारियों की मौत कोरोना संक्रमण से हो चुकी है.
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने 17 मई का जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि पंचायत चुनाव में ड्यूटी के कारण 1205 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों, शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की मृत्यु हुई है.
महासंघ का कहना है कि उसने पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के पहले सरकार का चेताया था कि चुनाव में ड्यूटी के पहले शिक्षकों-कर्मचारियों का टीकाकरण करा दिया जाए और कोविड प्रोटोकाल का सख्त पालन किया जाए लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की मौत हुई है.
इसके अलावा भी चुनाव में ड्यूटी करने के कारण पंचायत राज विभाग सहित कई विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत की खबर है.
ये सभी संगठन सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से इस बात को लेकर नाराज हैं कि उसने कोरोना महामारी को देखते हुए चुनाव कराया और यह चुनाव शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों, राज्य कर्मचारियों, संविदा कर्मचारियों के लिए बहुत बुरा साबित हुआ.
प्राथमिक शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर कोरोना संक्रमण से दिवंगत शिक्षकों-कर्मचारियों के लिए एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता, आश्रितों की नौकरी देने सहित आठ मांगें की हैं.
शिक्षक संगठन का नेतृत्व इस समय बहुत ज्यादा दबाव में है. आक्रोशित शिक्षक इस स्थिति के लिए संगठन के नेतृत्व को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सोशल मीडिया पर शिक्षकों के इस आक्रोश की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है.
पंचायत चुनाव बाद कोविड कंट्रोल रूम में ड्यूटी लगाए जाने, चुनाव में गैरहाजिर रहे शिक्षकों को नोटिस भेजने की कार्यवाही से शिक्षकों में नाराजगी बढ़ रही है.
यही कारण है कि शिक्षक संघ लगातार शासन को पत्र लिख रहा है और पत्र की भाषा बताती है कि उसका रवैया अब सख्त होता जा रहा है.
अदालत जाने की तैयारी में शिक्षा मित्र
सरकार के रवैये से शिक्षा मित्र तो अच्छे-खासे नाराज हैं. कई जिलों में पंचायत चुनाव में शिक्षा मित्रों की भी ड्यूटी लगाई गई, जिससे बड़ी संख्या में शिक्षा मित्र कोरोना संक्रमित हुए और उनकी मौत हुई.
शिक्षा मित्रों के संगठन उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष त्रिभुवन सिंह कहते हैं, ‘उनके पास अब तक 150 शिक्षा मित्रों की कोरोना संक्रमण से मृत्यु की सूचना है. हम हर जिले से यह सूचना एकत्र कर रहे हैं. हमने सरकार से मांग की है कि कोरोना संक्रमण से दिवंगत हुए शिक्षा मित्रों को मुआवजा दिया जाए और उनके आश्रितों की नौकरी दी जाए.’
सिंह ने बताया कि उन्होंने 12 मई को इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र लिखा है. उनका कहना है कि इस मुद्दे पर यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो अदालत जाएंगे.
प्रदेश में 1,53,000 शिक्षा मित्र हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा सहायक शिक्षक पद पर हुए समायोजन को रद्द किए जाने बाद अब तक सिर्फ छह हजार शिक्षा मित्र टेट परीक्षा के जरिये सहायक अध्यापक बन पाए हैं. उन्हें उम्मीद दी थी कि भाजपा सरकार अपने घोषणा पत्र के मुताबिक उत्तराखंड की तरह यहां भी उन्हें सहायक शिक्षक बनाने का कोई न कोई रास्ता निकालेगी लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया.
आज शिक्षा मित्र दस हजार रुपये प्रति माह के वेतन पर गुजारा कर रहे हैं, जो उन्हें एक वर्ष में 11 महीने का ही मिलता है. जून महीने का वेतन नहीं दिया जाता है.
सहायक शिक्षक पद पर समायोजन रद्द होने के बाद हताशा और अवसाद में कई शिक्षा मित्रों ने आत्महत्या की है. अब पंचायत चुनाव भी उनके लिए बड़ी विपत्ति की तरह साबित हुआ है.
सिंह कहते हैं कि कोरोना महामारी में मजदूरों, कामगारों के लिए प्रदेश सरकार मदद के लिए घोषणाएं कर रही है लेकिन सिर्फ दस हजार रुपये पाने वाले शिक्षा मित्रों के लिए अभी तक कोई मदद नहीं दी गई है. शिक्षा मित्रों को समय से वेतन तक नहीं मिलता.
संविदा एएनएम पांच दिन से कर रही हैं प्रदर्शन
कोविड-19 की रोकथाम के लिए टीकाकरण में अहम भूमिका निभा रहीं संविदा एएनएम तो पिछले कई दिनों से काम करते हुए अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं. वे पोस्टर और तख्तियां दिखाकर सरकार से उनकी मांगों पर ध्यान देने की गुहार लगा रही हैं.
उत्तर प्रदेश में एनएचएम के तहत संविदा पर 16 हजार एएनएम कार्यरत हैं. इन्हें करीब 11 हजार से 13 हजार रुपये मानदेय मिलता है.
इन्हें अपने तैनाती स्थल के गांवों में गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण, बच्चों का टीकाकरण का काम करना होता है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की सभी योजनाओं के प्रचार-प्रसार की भी जिम्मेदारी इन पर होती है.
संविदा एएनएम की सरकार से नाराजगी पुरानी है. उनकी मांग है कि समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाना चाहिए लेकिन जोखिम भरा काम करने के बावजूद उन्हें सिर्फ दस हजार रुपये मानदेय मिल रहा है.
प्रदेश में करीब दो हजार संविदा एएनएम ऐसी हैं जो अपने गृह जनपद से 100 से 800 किलोमीटर दूर तक तैनात है. बागपत जिले की रहने वाली एएनएम को बलरामपुर जिले में तैनात किया गया है तो अंबेडकर नगर जनपद की एएनएम को सोनभद्र के चोपन में तैनात कर दिया गया है.
इन संविदा एएनएम को अपनी ड्यूटी करने के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में विकट मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. घर-परिवार से काफी दूर के इलाकों में काम करते हुए हर वक्त असुरक्षा की भावना से घिरी रहती हैं.
कोविड महामारी की पहली लहर में इनको बिना कोई अतिरिक्त सुविधाएं दिए प्रवासी मजदूरों के सर्वे के साथ-साथ कोविड मरीजों को चिह्नित करने, जागरूकता अभियान संचालित किए जाने का काम लिया गया. इस समय वे कई महीनों से कोविड टीकाकरण की चुनौतीपूर्ण कार्य में जुटी हैं.
संविदा एएनएम संघ की प्रदेश संयोजक प्रेमलता पांडेय ने बताया, ‘हमने मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों, विभाग के प्रमुख अधिकारियों को पत्र लिखकर अपनी समस्याएं बताईं और समाधान की मांग की, लेकिन हमारी आवाज नहीं सुनी जा रही है. हमारी मांग है कि सभी संविदा एएनएम को उनके गृह जिला में तैनात किया जाए, समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए, स्थायी नियुक्ति होने तक संविदा एएनएम को 25 हजार वेतन दिया जाए, पेट परीक्षा से बाहर रखकर संभी संविदा एएनएम को नियमित पदों पर नियुक्त किया जाए, कोविड-19 संक्रमण से जान गंवाने वाली एएनएम को 50 लाख की आर्थिक सहायता दी जाए, सरकार द्वारा घोषित वेतन का 25 फीसदी एलाउंस संविदा एएनएम को भी दिया जाए.’
इन मांगों को लेकर संविदा एएनएम 15 मई से अपने कार्यस्थल पर काली पट्टी बांधकर और अपनी मांगों की तख्तियां व पोस्टर लहराकर अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं.
मनरेगा कर्मी हड़ताल पर जाने की चेतावनी दे रहे हैं
इसी तरह उत्तर प्रदेश मनरेगा कर्मचारी महासंघ कार्य बहिष्कार की चेतावनी दे रहा है. महासंघ ने 13 मई को मुख्यमंत्री, ग्राम्य विकास मंत्री को 10 सूत्रीय मांग पत्र भेजकर कहा है कि उनकी लंबित मांगों पर सुनवाई नहीं हुई, इसलिए वे 20 मई से हड़ताल पर चले जाएंगे.
मनरेगा कर्मचारी महासंघ के नेताओं ने 19 मई की शाम अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, आयुक्त ग्राम्य विकास के रवींद्र नायक और अपर आयुक्त मनरेगा योगेश कुमार से बातचीत के बाद अपनी हड़ताल एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया लेकिन इसके बाद ही अपर आयुक्त ग्राम्य विकास ने एक आदेश जारी कर कहा कि यदि मनरेगा कर्मी काम पर नहीं आते हैं तो उनकी जगह नई भर्ती कर ली जाए.
इस आदेश की जानकारी होने के बाद से मनरेगा कर्मी और नाराज हो गए हैं. उनका कहना है कि जब अफसरों से बातचीत में मांगों को पूरा करने का आश्वासन मिला और उन्होंने अपनी हड़ताल टाल दी थी तब इस तरह का आदेश जारी करने की क्या तुक है.
महासंघ के अध्यक्ष भूपेश सिंह ने कहा, ‘अफसरों से बातचीत में यह तय हुआ है कि उनकी मांगों के संबंध में जल्द आदेश जारी होंगे. हम एक सप्ताह तक इसका इंतजार करेंगे. यदि कोई कार्यवाही नहीं हुई तो हम हड़ताल पर जाएंगे.’
मनरेगा कर्मियों को अपने मूल कार्य के अलावा इस समय सरकार ने कोविड-19 नियंत्रण के लिए लिए बनाई गई निगरानी समितियों में ड्यूटी लगाई है. पंचायत चुनाव में भी उनकी ड्यूटी लगाई गई थी. कोविड की पहली लहर के समय उनसे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में काम देने से सहित उनके सर्वे का भी काम लिया था.
पिछले वर्ष मनरेगा कर्मियों का करीब तीन वर्ष का मानदेय 232 करोड़ रुपये बकाया था. काफी संघर्ष के बाद मई 2020 में सरकार ने उनके बकाए का भुगतान किया और वादा किया कि उनका मानदेय अब नियमित रूप से मिलेगा. मानदेय बढ़ाने पर भी सकारात्मक आश्वासन मिला लेकिन स्थितियां फिर वहीं पहुंच गई हैं.
भूपेश सिंह बताया कि इस वर्ष पूरे प्रदेश के सभी जिलों में दो महीने का मानदेय बकाया है. कई जिलों में जुलाई 2020 से मनरेगा कर्मियों को मानदेय नहीं मिला है. जनवरी 2021 में उन्होंने मनरेगा कर्मियों का सम्मेलन कराया था, जिसमें ग्राम्य विकास मंत्री ने घोषणा की थी कि मनरेगा कर्मियों का मानदेय छह हजार से बढ़ाकर दस हजार कर दिया जाएगा लेकिन आज चार महीने बाद भी यह घोषणा पूरी नहीं हुई है. इससे मनरेगा कर्मियों में आक्रोश है.
वे कहते हैं, ‘हमने अपनी मेहनत से लाखों प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा में काम दिलाया और पिछले 14 महीने से कोविड-19 के नियंत्रण कार्यक्रम में जुटे हैं लेकिन हमें फ्रंटलाइन वर्कर नहीं माना जाता और न ही सुविधाएं दी जाती हैं. हमारा बीमा भी नहीं कराया गया है कि यदि कोई घटना घट जाए तो आश्रितों को सहायता मिल सके. पंचायत चुनाव में चार दर्जन मनरेगा कर्मियों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई है लेकिन उन्हें आर्थिक सहायता देने की कोई बात नहीं हो रही है. इन्हीं मुद्दों को लेकर हमने निर्णय लिया है कि 20 मई से हम काम नहीं करेंगे जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती.’
मनरेगा कर्मियों में ग्राम रोजगार सेवक, कम्प्यूटर ऑपरेटर, लेखा सहायक और तकनीकी सहायक आते हैं. पूरे प्रदेश में इनकी संख्या 45 हजार है, जिसमें 36 हजार रोजगार सेवक हैं.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)