छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिलगर गांव में बने सीआरपीएफ के शिविर का आदिवासी विरोध कर रहे हैं. 17 मई को पुलिस फायरिंग में मारे गए तीन लोगों को पुलिस ने माओवादी बताया है, जबकि उनके परिजन इस बात से इनकार कर रहे हैं.
सिलगर: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिलगर गांव स्थित सीआरपीएफ के सुरक्षा शिविर के विरोध में आदिवासियों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है. इन प्रदर्शनों के दौरान पुलिस फायरिंग में बीते 17 मई को तीन लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए थे.
पुलिस ने मारे गए लोगों को माओवादी बताया है, जबकि आदिवासियों ने इस बात से इनकार किया है.
सिलगर सुरक्षा शिविर के विरोध में तीन लोगों के मारे जाने के दो दिन बाद 19 मई को शिविर के विरोध में आदिवासी समुदायों के एक हजार से अधिक लोग शिविर के पास एकत्र हुए और 17 मई को गिरफ्तार किए गए छह लोगों की रिहाई की मांग की.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 32 वर्षीय आयते कोर्सा ने कहा, ‘हम तब तक विरोध करते रहेंगे, जब तक वे शिविर को हटा नहीं देते. अब हम अपने भाइयों के लिए भी विरोध कर रहे हैं, जिन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है.’
सिलगर गांव के निवासी कोर्सा प्रदर्शन स्थल पर अपने तीन बच्चों के साथ आई थीं, जिसमें सबसे छोटा बच्चा मुश्किल से एक साल का था.
उन्होंने कहा, ‘सुरक्षाकर्मी हम सभी को माओवादी या माओवादी समर्थक कहते हैं. वे हमें कभी कोई सुरक्षा कैसे प्रदान करेंगे? उन्होंने निर्दोष पुरुषों को मार डाला है.’
बुधवार 17 मई को सिलगर में नुकीले तारों की दो पंक्तियों के बीच लगभग एक नो-मैन्स-लैंड (तटस्थ स्थान) बनाया गया था, जिसमें से एक तरफ कैंप तैयार किया गया था, वहां सैकड़ों सुरक्षाकर्मी तैनात थे, जबकि दूसरी तरफ हजारों आदिवासी पुरुष, महिलाएं और बच्चे तख्तियां लेकर खड़े थे, जिसमें उनकी मांगें लिखी थीं.
पुलिस द्वारा बुधवार को जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, तीन मृतक माओवादी थे, जबकि कोर्सा ने उन्हें निर्दोष पुरुष बताया.
पुलिस महानिरीक्षक (आईजी बस्तर रेंज) सुंदरराज पी. ने बुधवार को कहा, ‘प्रारंभिक जांच में पता चला है कि मृतक प्रतिबंधित भाकपा (माओवाद) के मुखौटा संगठनों से कथित रूप से जुड़े हुए थे और पुलिस इस पहलू की विस्तृत जांच के प्रयास कर रही है.’
आईजी ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या मृतकों की पहचान भूमकाल के टिम्मापुर गांव (सुकमा) के कमांडर उइका पांडु, डीएकेएमएस (दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संगठन) छुटवाही के सदस्य कोवासी भीमा और गुंदेम गांव (बीजापुर) के मिलिशिया सदस्य कुरसाम भीमा के रूप में हुई है.
पुलिस ने 17 मई को गिरफ्तार किए गए आठ अन्य लोगों के नाम भी जारी किए. उस सूची में से दो लोगों को 18 मई की रात रिहा कर दिया गया, जबकि अन्य छह पुलिस हिरासत में हैं.
प्रेस नोट के अनुसार, 14 अप्रैल से विरोध कर रहे ग्रामीणों की भीड़ उस समय चली गई थी, जब 17 अप्रैल को 3,000 से अधिक की भीड़ अचानक शिविर के पास पहुंची और शिविर के बाड़ को नष्ट कर दिया एवं पुलिसकर्मियों पर हमला किया. इस दौरान 19 पुलिसकर्मियों को चोटें आईं.
बयान में कहा गया, ‘आदिवासियों की भीड़ के बीच माओवादी थे, जिन्होंने फिर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई. माओवादियों ने इकट्ठे हुए अधिकारियों की चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया और इस तरह हमारे जवानों को जवाबी फायरिंग करनी पड़ी. 30 मिनट से अधिक समय तक गोलीबारी चलती रही और इस दौरान ग्रामीणों को बचने के लिए एक सुरक्षित रास्ता मुहैया कराया गया.’
The violent history of Bastar saw a new chapter today when, perhaps the first instance in a decade, police opened fire at unarmed adivasis in Silger, killing 3 and injuring at least 16.
It wasn't a fake encounter, or a gunfire at night.
Bullets flew under the thick sun. pic.twitter.com/pMXUWkM6FY
— Ashutosh Bhardwaj (@ashubh) May 17, 2021
प्रेस नोट में आगे कहा गया, ‘17 मई को जिन पांच लोगों को चोट आई थी, फिलहाल वे बीजापुर जिला अस्पताल में भर्ती हैं.’
19 मई को पांच घायलों और तीन मृतकों के परिवारों को जिला मुख्यालय लाया गया, जहां बंद कमरे में चार घंटे तक चली हुई बैठक में उन्होंने कलेक्टर और अन्य अधिकारियों से मुलाकात की. बाद में मृतकों के शव परिजनों को सौंप दिए गए.
उइका मुरली (जिनकी पुलिस ने पहचान उइका पांडु) के भाई भीमा ने कहा, हमने उनसे गिरफ्तार लोगों के बारे में पूछा तो कहा गया कि विरोध बंद होने के बाद ही उन्हें छोड़ा जाएगा.’
हालांकि, जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने इससे इनकार किया है.
बीजापुर कलेक्टर रितेश अग्रवाल ने कहा, ‘उन्हें जमानत देने का निर्णय कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास है. इन सभी व्यक्तियों को स्थिति को शांत करने के लिए मामूली धाराओं (कानून की) के तहत गिरफ्तार किया गया है. ग्रामीण जो गलत समझ रहे हैं, वह हमारा अनुरोध है कि कानून-व्यवस्था को अपने हाथ में लेना बंद करें. अगर वे चाहते हैं तो हम यहां उनकी शिकायतों को सुनने के लिए हैं लेकिन कानून और व्यवस्था की स्थिति और कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करके नहीं.’
उन्होंने पुष्टि की कि तीन शव परिवारों को सौंप दिए गए हैं.
पुलिस ने जब मुरली का शव परिवार को सौंपा तब उनकी भतीजी बसंती ने पुलिसकर्मियों से उनका आधार कार्ड मांगा, लेकिन उन्हें किसी और दिन आने के लिए कहा गया.
बसंती ने कहा, ‘वह इतनी दूर अगले दिन कैसे आ सकती हैं? आधार कार्ड हमारी पहचान है कि वह आम आदमी थे न कि वह माओवादी थे, जैसा पुलिस कह रही है.’
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि उइका मुरली के पास भूरे रंग का पर्स था, जिसमें 800 रुपये और आधार भी था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 35 सदस्यों वाले एक परिवार से आने वाले सुनील कोर्सा का दावा है कि जहां सुरक्षा शिविर बना है, वहां की 10 एकड़ जमीन में से छह एकड़ उनकी है.
उन्होंने कहा, ‘हमने स्वेच्छा से अपनी जमीन अस्पताल या स्कूल के लिए दे देंगे. हमें सड़क निर्माण के लिए तैनात सुरक्षा से भी कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन हम एक शिविर नहीं चाहते हैं. एक बार इसके स्थापित हो जाने के बाद हमारी आवाजाही से लेकर हमारे रीति-रिवाजों तक हर चीज की जांच की जाएगी. हम नक्सलियों और पुलिस दोनों के डर में नहीं जीना चाहते हैं.’
रिपोर्ट के अनुसार, फायरिंग में मारे गए कवासी वाघा (पुलिस के अनुसार नाम कोवासी भीमा) के चार बच्चे हैं. उनके चार बच्चे भीमे (19 वर्ष), नंदू (15 वर्ष), लालू (13 वर्ष) और सोमारु (12 वर्ष) अपने 55 वर्षीय दादा मंगड़ु के साथ छुटवाई गांव से 25 किमी. दूर सिलगर उनका शव वापस ले जाने के लिए आए हुए थे. उन्हें सिलगर आने के लिए रातभर पैदल चलना पड़ा था.
उनके बेटे नंदू ने बताया, ‘हमारा सबसे छोटा भाई केवल चार साल का है; मां महीनों से बीमार है. पिता ने दो तीन दिनों में वापस आने की बात कहते हुए मुझे परिवार की देखभाल करने के लिए कहा था. अब हम नहीं जानते कि हम ये सब कैसे करेंगे.’
कोरसा भीमा (पुलिस के अनुसार नाम कुरसाम भीमा) की पत्नी 32 वर्षीय नांदे ने बताया, ‘मेरे पति ने हमें नहीं बताया था कि वह कहां जा रहे हैं. अब वह हमेशा के लिए चले गए हैं. मुझे एक बेटी की शादी करना है और एक बेटे को बड़ा करना है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)