बॉम्बे हाईकोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें 75 साल से अधिक उम्र के लोगों या टीकाकरण केंद्र जाने में अक्षम लोगों को घर में जाकर टीका लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों ने हमें निराश किया है. आपके अधिकारी असंवेदनशील हैं. बुज़ुर्गों को टीकाकरण केंद्रों की ओर जाने के बजाय आपको उन तक पहुंचना चाहिए.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह केंद्र और मुंबई नगर निकाय की असंवेदनशीलता से दुखी और निराश है, जिसने वरिष्ठ नागरिकों, विशेष रूप से सक्षम, बीमारों और ह्वील चेयर वाले लोगों के लिए घर-घर जाकर टीकाकरण का कार्यक्रम शुरू नहीं किया.
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या केंद्र द्वारा उपलब्ध कराए गए टीके की कुछ खुराक राज्य की जेलों में बंद कैदियों को नहीं भेजी जा सकती है.
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी ने दोहराया कि केंद्र को अपनी नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिसमें उसने कहा था कि खुराक के बेकार होने और दुष्प्रभाव संबंधी विभिन्न वजहों से घर-घर जाकर टीकाकरण करना संभव नहीं है.
अदालत ने केंद्र द्वारा गठित कोविड-19 टीकाकरण के लिए विशेषज्ञों की समिति (एनईजीवीएसी) के अध्यक्ष को कहा कि वह घर जाकर टीका देने के मुद्दे पर फिर से विचार करें और इसके साथ ही मामले की सुनवाई दो जून के लिए टाल दी.
पीठ ने कहा, ‘अगर एनईजीवीएसी घर जाकर टीका लगाने का अभियान शुरू करने का फैसला करती है तो उसे अदालत के आदेश का इंतजार किए बिना लागू करना चाहिए.’
Court – NEGVAC must know all the orders we have passed. We will have to express our mind in the order.
ASG Anil Singh says that no adverse observations may be made against the Centre.#BombayHC #Vaccine
— Live Law (@LiveLawIndia) May 20, 2021
अदालत ने कहा, ‘हम केंद्र सरकार से बहुत ही दुखी हैं. केंद्र सरकार के अधिकारियों ने हमें निराश किया है. आपके अधिकारी असंवेदनशील हैं. बुजुर्गों को (टीकाकरण) केंद्रों की ओर जाने के बजाय आपको (सरकार को) उन तक पहुंचना चाहिए.’
पीठ ने रेखांकित किया कि विशेषज्ञ समूह उस निष्कर्ष पर काम कर रही है कि घर-घर टीकाकरण संभव नहीं है, क्योंकि लोगों में टीके के दुष्प्रभाव होने के आशंका है.
अदालत ने कहा, ‘क्या कोई वैज्ञानिक आंकड़ा है, जो दिखाता है कि खास टीके से व्यक्ति में जटिलता विकसित हो सकती है? वे आंकड़े कहां हैं, जिसमें एक भी व्यक्ति की मौत टीका लेने के बाद हुई? विशेषज्ञ समिति को स्पष्ट होना चाहिए. उसे अगर-मगर में नहीं पड़ना चाहिए.’
अदालत ने बृह्नमुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को भी फटकार लगाते कहा कि वह हलफनामा दाखिल करे कि वह केंद्र द्वारा दिशानिर्देश आने के बाद ही घर-घर जाकर टीका लगाने का अभियान शुरू करेगी.
अदालत अधिवक्ता ध्रुति कपाड़िया और कुणाल तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 75 साल से अधिक उम्र के लोगों या टीकाकरण केंद्र जाने में अक्षम लोगों को घर में जाकर टीका लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
वहीं, पीठ ने स्वत: संज्ञान पर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि क्या सरकार कुछ खुराक कैदियों के लिए आवंटित कर सकती है?, क्योंकि कैदियों को भी जीवन का अधिकार है.
इससे पहले राज्य सरकार ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान बताया था कि गुरुवार शाम तक केंद्र से उसे टीके की दो लाख खुराक मिलेगी.
अदालत ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि दो लाख खुराक में से कुछ खुराक जेल प्रशासन को गंभीर बीमारियों से ग्रस्त कैदियों के टीकाकरण के लिए मिलेगी.’
Court to @mybmc – We are very disappointed with your stand.
Court – We are aghast to know that the Bombay Municipal Corporation has succumbed to the pressure
If there is lack of vaccine you will stop vaccination for all. Why this selective vaccination?#BombayHC #vaccination— Live Law (@LiveLawIndia) May 20, 2021
इससे पहले हाईकोर्ट ने बीते बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि यदि बीएमसी घर-घर जाकर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने को इच्छुक है तो उच्च न्यायालय उन्हें इसकी अनुमति देगा, भले ही केंद्र सरकार ने ऐसे अभियान के लिए सहमति न दी हो.
पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार घर-घर जाकर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने की इच्छुक नहीं है. अगर बीएमसी कहती है कि वह घर-घर जाकर टीकाकरण शुरू कर सकती है तो हम अनुमति देंगे. केंद्र सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा था, ‘क्या आप वरिष्ठ नागरिकों की मदद को आएंगे? भले ही केंद्र (घर-घर जाकर टीकाकरण) इसे हरी झंडी नहीं दे रहा हो, हम आपको मंजूरी देने के लिए तैयार हैं.’
अदालत ने पूछा कि क्या बीएमसी ऐसे लोगों के घर जाने में समर्थ है, जो अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकते और उन्हें टीका लगवा सकती है?
हालांकि गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान बीएमसी ने कहा कि वह केंद्र द्वारा दिशानिर्देश आने के बाद ही घर-घर जाकर टीका लगाने का अभियान शुरू करेगी.
पहले से समय लेकर आने वालों को टीकाकरण में मिले प्राथमिकता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि महाराष्ट्र सरकार को कोविड-19 टीकाकरण में उन लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो ‘कोविन’ पोर्टल पर प्राप्त पंजीकरण कराकर और पहले से समय लेकर केंद्रों पर आते हैं.
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी ने कहा कि राज्य को उपलब्ध टीके लगाने में उन लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो निश्चित समय लेकर आते हैं और इसके बाद ही बाकी बचे टीके उन लोगों को लगाए जाने चाहिए, जो सीधे केंद्र पर या ‘वाक इन’ स्लॉट में आ रहे हैं.
अदालत ने कहा कि राज्य में टीकाकरण के लिए प्रणाली को सुव्यवस्थित किया जाए, क्योंकि मौजूदा समय में टीके की कमी है.
अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि जो पहले से समय लेकर टीकाकरण केंद्र पहुंच रहे हैं, उन्हें लंबे समय तक कतार में खड़ा नहीं होना पड़े.
उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य को प्राथमिकता के आधार पर अब तक टीककारण से छूट गए स्वास्थ्यकर्मियों या अग्रिम मोर्च पर कार्यरत कर्मियों के टीकाकरण के लिए कदम उठाना चाहिए.
अदालत दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कोविन पोर्टल पर नागरिकों को आ रही समस्या में अदालत से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था.
याचिकाकर्ताओं के वकील जमशेद मास्टर और अनिता कैसलिनो ने पीठ ने कहा कि कोविन रोजाना खास समय पर पंजीकरण के लिए खुलता है और कुछ सेकेंड में स्लॉट खत्म हो जाते हैं.
मास्टर ने कहा, ‘कई बार टीकाकरण का समय मिलने के बावजूद व्यक्ति जब केंद्र जाता है तो उसे लौटा दिया जाता है, क्योंकि सीधे पहुंचने वालों को टीका लगाने की वजह से खुराक खत्म हो जाती है.’
उन्होंने पीठ से कहा कि उनके पिता वरिष्ठ नागरिक हैं और उन्हें नायर अस्पताल में टीकाकरण के लिए सुबह नौ से 11 का समय मिला, लेकिन शाम चार बजकर 45 मिनट पर ही टीका लग सका.
मास्टर ने बताया कि कई वरिष्ठ नागरिक घंटों धूप में बिना पानी, खाना खड़े रहते हैं और टीकाकरण केंद्रों पर भीड़ होती है, यहां तक ह्वील चेयर पर आए लोगों को भी घंटों इंतजार करना पड़ता है.
इस पर अदालत ने कहा यह अमानवीय है. पीठ ने कहा कि क्या स्लॉट बुकिंग करने की प्रकिया महज ‘छलावा’ है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)