कनाडा, अमेरिका एवं अन्य जगहों के 200 से अधिक शिक्षाविदों, ट्रेड यूनियन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पत्र लिखकर किसानों की मांगों को समर्थन करते हुए कहा है कि कृषि क़ानून रद्द करने के साथ-साथ सभी राजनीतिक बंदियों को भी रिहा किया जाए.
नई दिल्ली: कनाडा, अमेरिका एवं अन्य जगहों के 200 से अधिक शिक्षाविदों, ट्रेड यूनियन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भारत में चल रहे किसानों आंदोलन का समर्थन करते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं और महामारी पर विशेषज्ञों की चेतावनी को नजरअंदाज कर अपने चुनावी एजेंडा को प्राथमिकता देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की है.
इन हस्ताक्षरकर्ताओं ने मांग की है कि पिछले साल सितंबर महीने में पारित किए गए विवादित कानूनों को तत्काल निरस्त किया जाए, ताकि आंदोलनकारी किसान अपने घरों को लौट सकें और खुद को कोरोना वायरस से बचा सकें.
इसके साथ ही उन्होंने राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग की है, जिसमें से कुछ कोरोना संक्रमित भी हो चुके हैं और इनका टीकाकरण भी नहीं हो रहा है.
उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि वे सुनिश्चित करें कि इस भयावह महामारी का भार गरीब एवं हाशिए पर पड़े लोगों पर नहीं पड़ेगा.
मालूम हो कि पिछले छह महीने से दिल्ली की सीमाओं पर किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और विवादित तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है. हालांकि सरकार ने अभी तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है और उलटे किसानों के साथ बातचीत भी बंद कर दी गई है.
उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘किसानों का ये डर जायज है कि ये कानून कॉरपोरेट जगत को बढ़ावा देंगे, जिससे किसानों की जमीन पर कब्जा कर लिया जाएगा, उनकी आजीविका को करारा झटका लगेगा और देश का कृषि संकट और गंभीर हो जाएगा. नवंबर 2020 से ही दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हजारों किसानों को आंसू गैस, वॉटर कैनन, बैरिकेड्स के अलावा पहले कड़कड़ाती ठंड और चिलचिलाती धूप का कामना करना पड़ रहा है. इसमें से सैकड़ों युवा एवं बुजुर्ग और पुरुष एवं महिलाएं मौसम, बीमारी, पुलिस हिंसा, यातायात दुर्घटनाओं में मारे गए हैं.’
उन्होंने कहा कि इस बात का भय है कि मौजूदा महामारी को देखते हुए सरकार इस मौके का इस्तेमाल कर उनके कैंप वगैरह हटा देगी, जैसा कि पिछले साल विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ बैठे प्रदर्शनकारियों के साथ किया गया था.
हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा, ‘किसानों के प्रदर्शन को भारत के सभी वर्गों के बीच और देश के बाहर भी अद्भुत समर्थन मिला है. कनाडा में वैंकूवर, विक्टोरिया, बर्नाबी, पोर्ट कोक्विटलैमम, सरे, ब्रैम्पटन जैसे नगर परिषदों के साथ-साथ कनाडाई श्रम कांग्रेस, कनाडाई यूनियन ऑफ पब्लिक एम्प्लॉइज, फेडरेशन ऑफ लेबर और यूनिफोर सहित कई कनाडाई श्रमिक संगठनों ने प्रस्ताव पारित किए हैं या किसानों की मांगों के समर्थन में बयान जारी किया है.’
इसके अलावा करीब 40 किसान संगठनों वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तीन कृषि कानूनों पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया. किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन वह तीन केंद्रीय कानूनों पर गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है.
किसान संगठन ने पत्र में चेतावनी देते हुए कहा कि यदि सरकार इस महीने की 25 तारीख तक बातचीत नहीं शुरू करती है तो किसान आंदोलन को और तेज किया जाएगा.
किसानों के संगठन ने हाल ही में दिल्ली की सीमाओं पर उनके प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है.
कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन भी किया था, जिसे लेकर हुए विवाद के बाद एक सदस्य भूपेंद्र सिंह मान ने इस्तीफा दे दिया था. अभी इस कमेटी में शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं.
मालूम हो कि पिछले साल सितंबर में अमल में आए तीनों कानूनों को भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है. उनका कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे.
दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कॉरपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी.
(विदेशी नागरिकों द्वारा किसानों के समर्थन में लिखे गए पत्र को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)