किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर हो रहे प्रदर्शन को 12 दलों का समर्थन मिला

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहीं 40 यूनियनों के प्रधान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के मौके पर ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की है. देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने किसानों का समर्थन देते हुए कहा है कि केंद्र को अहंकार छोड़कर तत्काल किसानों से बातचीज शुरू करनी चाहिए.

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहीं 40 यूनियनों के प्रधान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के मौके पर ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की है. देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने किसानों का समर्थन देते हुए कहा है कि केंद्र को अहंकार छोड़कर तत्काल किसानों से बातचीज शुरू करनी चाहिए.

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)
दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. एक संयुक्त बयान में यह जानकारी दी गई है.

संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की है.

बयान पर सोनिया गांधी (कांग्रेस), एचडी देवेगौड़ा (जद-एस), शरद पवार (राकांपा), ममता बनर्जी (टीएमसी), उद्धव ठाकरे (शिवसेना), एमके स्टालिन (द्रमुक), हेमंत सोरेन (झामुमो), फारूक अब्दुल्ला (जेकेपीए), अखिलेश यादव (सपा), तेजस्वी यादव (राजद), डी. राजा (भाकपा) और सीताराम येचुरी (माकपा) ने हस्ताक्षर किए हैं.

संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘हम किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को अपना समर्थन देते हैं. केंद्र सरकार को अड़ियल रवैया छोड़कर इन मुद्दों पर संयुक्त किसान मोर्चा से फिर से वार्ता शुरू करनी चाहिए.’

बयान में कहा गया है, ‘हमने 12 मई को संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था, महामारी का शिकार बन रहे हमारे लाखों अन्नदाताओं को बचाने के लिए कृषि कानून निरस्त किए जाएं, ताकि वे अपनी फसलें उगाकर भारतीय जनता का पेट भर सकें.’

बयान के अनुसार, ‘हम कृषि कानूनों को तत्काल निरस्त करने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सी2+ 50 प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अमलीजामा पहनाने की मांग करते हैं.’

बयान में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार को अहंकार छोड़कर तत्काल संयुक्त किसान मोर्चा से वार्ता शुरू करनी चाहिए.

इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने भी संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने रविवार को यह जानकारी दी.

चड्ढा ने ट्वीट कर कहा, ‘किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को आम आदमी पार्टी अपना समर्थन देती है. हम केंद्र से आग्रह करते हैं कि वह तत्काल किसानों से बातचीत बहाल करे और उनकी मांगें स्वीकार करे. आप किसानों के साथ पूरी मजबूती से खड़ी है.’

प्रदर्शनकारियों का साथ देने करनाल से हजारों किसान सिंघू बॉर्डर पहुंचे

पंजाब के करनाल और निकटवर्ती इलाके से हजारों किसान केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से जुड़ने रविवार को सिंघू बॉर्डर पहुंचे. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस बारे में बताया.

आंदोलन कर रही 40 यूनियनों के प्रधान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में बताया कि फसल की कटाई के मौसम के बाद लगातार किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच रहे हैं.

मोर्चा ने कहा है कि उसके सदस्य हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और इस महीने हिसार में किसानों पर ‘हमला’ करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग को लेकर सोमवार को हिसार आयुक्त कार्यालय का घेराव करेंगे.

मालूम हो कि हिसार पुलिस ने 16 मई को कोविड अस्पताल का उद्घाटन करने आए खट्टर के आयोजन स्थल पर जाने से रोकने के लिए किसानों के एक समूह पर कथित रूप से लाठियां बरसाई थी और आंसू गैस के गोले छोड़े थे.

किसानों ने दावा किया था कि लाठीचार्ज में 50 से ज्यादा किसान घायल हो गए थे. वहीं, एक आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया था कि घटना में एक डीएसपी समेत 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे.

केंद्र के तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर पिछले साल नवंबर से ही हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा ने बताया, ‘अलग-अलग वाहनों से हजारों किसान रविवार को सिंघू बॉर्डर पहुंचे हैं. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में करनाल और आसपास के इलाके से किसानों का काफिला आया है.’

बयान में कहा गया, ‘फसल की कटाई के लिए जो किसान गांव चले गए थे, वे अब वापस प्रदर्शन स्थल पर लौट रहे हैं. किसान उत्साहित हैं और मांगे स्वीकार होने पर ही यह आंदोलन खत्म होगा.’

मोर्चा ने बताया कि गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने तिरंगा मार्च भी आयोजित किया. एसकेएम ने कहा कि प्रदर्शनकारी किसान सोमवार को स्वतंत्रता सेनानी करतार सिंह सराभा की जयंती मनाएंगे.

बता दें कि किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तीन कृषि कानूनों पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया है. किसानों ने पत्र में चेतावनी देते हुए कहा कि यदि सरकार 25 मई तक बातचीत नहीं शुरू करती है तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)