महाराष्ट्र कैडर के 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल के नाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत तीन सदस्यीय चयन समिति ने इस पद के लिए मंज़ूरी दी. जायसवाल दो साल के लिए सीबीआई निदेशक रहेंगे.
नई दिल्ली: वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल को मंगलवार को दो साल के लिए सीबीआई प्रमुख नियुक्त किया गया है. कार्मिक मंत्रालय के एक आदेश में यह जानकारी दी गई है.
महाराष्ट्र कैडर के 1985 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी जायसवाल फिलहाल केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के महानिदेशक हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत तीन सदस्यीय चयन समिति ने सोमवार को उनके नाम को इस पद के लिए मंजूरी दी.
मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि जायसवाल को दो साल के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का निदेशक नियुक्त किया गया है.
IPS Subodh Kumar Jaiswal has been appointed as Director of Central Bureau of Investigation (CBI) for a period of 2 years pic.twitter.com/jFGwZbOen4
— ANI (@ANI) May 25, 2021
वह महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक भी रह चुके हैं. महाराष्ट्र में सुबोध कुमार जायसवाल ने कुख्यात तेलगी घोटाले की जांच की थी, जिसे बाद में सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया था.
जायसवाल तब राज्य रिजर्व पुलिस बल का नेतृत्व कर रहे थे. उसके बाद वह महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते में शामिल हो गए और लगभग एक दशक तक रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) में काम किया.
देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल में वे राज्य वापस लौट आए और जून 2018 में उन्हें मुंबई आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया. बाद में उन्हें महाराष्ट्र पुलिस का प्रमुख बनाया गया.
इनकी देखरेख में ही एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच हुई थी, जिसके बाद उन्हें सीबीआई में ट्रांसफर कर दिया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले साल राज्य पुलिस का नेतृत्व करते समय वह पुलिस तबादलों को लेकर महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख से भिड़ गए थे.
अब सीबीआई प्रमुख के रूप में जायसवाल देशमुख के खिलाफ मुंबई के पूर्व पुलिस प्रमुख परमबीर सिंह द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करेंगे.
जायसवाल ने तत्कालीन गृहमंत्री देशमुख के साथ पोस्टिंग के लिए अधिकारियों की तीव्र पैरवी पर नाखुशी जाहिर की थी. उन्होंने कुछ तबादलों पर हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर दिया था, लेकिन अंततः उन्हें हार माननी पड़ी थी.
इस दौरान राज्य के खुफिया विभाग की प्रमुख रश्मि शुक्ला ने राजनीतिक कनेक्शन वाले दलालों की एक कथित समूह का पर्दाफाश करने के लिए फोन टैप किए, जो नकदी के लिए पुलिस अधिकारी के तबादले तय कर रहे थे.
जायसवाल ने तत्कालीन अतिरिक्त सचिव गृह सीताराम कुंटे को राज्य सीआईडी द्वारा व्यापक जांच करने के लिए कहा था.
तबादलों पर विवाद के बाद जायसवाल ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की मांग की थी, जिसे राज्य सरकार ने तुरंत मंजूरी दे दी थी. इस साल जनवरी में उन्हें सीआईएसएफ प्रमुख बनाया गया और वे दिल्ली आ गए.
फडणवीस ने उस समय आरोप लगाया था कि जायसवाल राज्य सरकार के हस्तक्षेप से निराश हो गए थे, और राज्य ने एक सक्षम अधिकारी खो दिया.
सुबोध कुमार जायसवाल सीबीआई निदेशक पद के लिए चुने गए तीन अधिकारियों में सबसे वरिष्ठ थे, जिन्हें सोमवार को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली चयन समिति द्वारा शार्टलिस्ट किया गया था – अन्य दो सशस्त्र सीमा बल के प्रमुख कुमार राजेश चंद्रा और गृह मंत्रालय में विशेष सचिव वीएसके कौमुदी थे.
मालूम हो कि वर्तमान में 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी और सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक प्रवीण सिन्हा सीबीआई निदेशक का प्रभार संभाल रहे थे.
सिन्हा को यह प्रभार ऋषि कुमार शुक्ला के सेवानिवृत्त होने के बाद सौंपा गया था. वह दो साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फरवरी में सेवानिवृत्त हुए थे.
बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना द्वारा विरोध किए जाने के बाद मोदी सरकार को अपने दो पसंदीदा नामों को सीबीआई प्रमुख की दौड़ से बाहर करना पड़ा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में जस्टिस रमना ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया है कि ऐसे किसी व्यक्ति को सीबीआई निदेशक नहीं बनाया जा सकता है, जिसकी सरकारी नौकरी या कार्यकाल छह महीने से भी कम बची हो.
उसके बाद सरकार को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) प्रमुख राकेश अस्थाना, जो 31 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) प्रमुख वीईसी मोदी, जो कि 31 मई को रिटायर हो रहे हैं, को सीबीआई निदेशक के दौड़ से बाहर करना पड़ा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)