पीएम केयर्स: 150 में से 113 वेंटिलेटर ख़राब पाए जाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पीएम केयर्स फंड के तहत आपूर्ति किए गए 150 वेंटिलेटर्स में 113 के ख़राब होने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था. अदालत ने कहा ​कि सरकार को एहसास होना चाहिए कि उन्होंने ख़राब गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर की आपूर्ति की है. उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर से बदलें.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पीएम केयर्स फंड के तहत आपूर्ति किए गए 150 वेंटिलेटर्स में 113 के ख़राब होने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था. अदालत ने कहा कि सरकार को एहसास होना चाहिए कि उन्होंने ख़राब गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर की आपूर्ति की है. उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर से बदलें.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने मंगलवार को पीएम केयर्स फंड के माध्यम से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में आपूर्ति किए गए खराब वेंटिलेटर पर गंभीर संज्ञान लिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को आपूर्तिकर्ता के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई और समस्या के समाधान के लिए उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया है.

न्यूज रिपोर्ट्स का संज्ञान लेने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि क्षेत्र में पीएम केयर्स फंड के तहत जिन 150 वेंटिलेटर्स की आपूर्ति की गई, उनमें से जिन 113 वेंटिलेटरों को सरकारी या निजी अस्पतालों में इस्तेमाल के लिए लगाया गया, वे खराब पाए गए हैं. वहीं बाकी 37 वेंटिलेटर अभी खोले नहीं गए हैं.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘हम पीएम केयर्स फंड के माध्यम से खराब वेंटिलेटर के संबंध में स्थिति को काफी गंभीर पाते हैं. वेंटिलेटर को जीवन रक्षक उपकरण माना जाता है और इसके  खराब होने से मरीजों की जान खतरे में पड़ सकती है.’

हाईकोर्ट ने सहायक सॉलिसीटर जनरल अजय जी. तलहर को वेंटिलेटर खराब होने की स्थिति में सुधारात्मक तरीकों के बारे में सूचित करने के लिए कहा.

जस्टिस रवींद्र वी. घुगे और जस्टिस भालचंद्र यू. देबद्वार की खंडपीठ कोविड-19 रोगियों के अंतिम संस्कार के मुद्दों, चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी और रेमडेसिविर की कालाबाजारी के मुद्दों से जुड़ीं खबरों के आधार पर एक स्वत: संज्ञान में ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

मामले में सहायता के लिए अदालत द्वारा नियुक्त न्याय मित्र सत्यजीत एस. बोरा ने काम न करने वाले वेंटिलेटर से संबंधित समाचार रिपोर्ट प्रस्तुत की.

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्य लोक अभियोजक डीआर काले ने औरंगाबाद के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच) के डीन द्वारा पीएम केयर्स फंड के माध्यम से प्राप्त 150 वेंटिलेटर से संबंधित दस्तावेजों का एक संकलन प्रस्तुत किया.

उन्होंने प्रस्तुत किया कि ज्योति सीएनसी नाम की एक कंपनी ने ‘धमन-III’ मॉडल के उक्त वेंटिलेटर का निर्माण किया था और जीएमसीएच ने 17 वेंटिलेटर तैनात किए थे, जिनमें बेहद गंभीर खामियां सामने आईं.

अदालत ने दर्ज किया कि ‘नो-इनलेट ऑक्सीजन (O2) प्रेशर’ डिस्प्ले और वेंटिलेटर पर मरीज को रखने के बाद उसके हाइपॉक्सिक (पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की कमी) होने जैसी खामियां पाई गई हैं, जिससे जीवन के लिए खतरा है.

अदालत को यह भी बताया गया कि हिंगोली, उस्मानाबाद, बीड और परभणी जिलों में 55 वेंटिलेटर वितरित किए गए और 41 वेंटिलेटर निजी अस्पतालों को इस शर्त के साथ आवंटित किए गए कि वे मरीजों से इसके लिए शुल्क नहीं लेंगे. इसके अलावा जीएमसीएच के पास उपलब्ध 37 वेंटिलेटर अभी तक खोले नहीं गए हैं.

काले ने निजी अस्पतालों से प्राप्त पत्रों का हवाला दिया, जो दर्शाता है कि उन्हें आपूर्ति किए गए सभी 41 वेंटिलेटर उपयोग करने योग्य नहीं पाए गए थे और उन्होंने उन्हें ‘मरीजों के जीवन के लिए गंभीर खतरा’ देखते हुए उपयोग करने से मना कर दिया था. साथ ही वेंटिलेटर वापस लेने के लिए अधिकारियों को पत्र लिखा है.

बीड जिले के अंबाजोगई में सरकारी अस्पताल के डीन ने यह भी बताया कि आपूर्ति किए गए वेंटिलेटर में से कोई भी उपयोग करने योग्य नहीं है.

अदालत ने मौखिक रूप से कहा, ‘कंपनी (गलती करने वाली) इससे बच नहीं सकती है. यह राज्य के खजाने का पैसा है, यह खैरात नहीं है, जिसे बांट दिया जाए.’

इस बीच अदालत ने कहा कि गरवारे पॉलिएस्टर, बजाज ऑटो, हिंडाल्को आदि सहित कई उद्योगपतियों द्वारा आपूर्ति किए गए लगभग 74 अन्य वेंटिलेटर पूरी तरह से चालू हैं और उनमें कोई खराबी नहीं हैं.

कोर्ट ने केंद्र के वकील से पूछा कि वह सभी खराब वेंटिलेटर को वापस क्यों नहीं ले सकता और उन्हें वापस क्यों नहीं भेज सकता.

हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा, ‘हम सराहना करते हैं कि केंद्रीय मंत्रालय ने उन्हें (वेंटिलेटर) दिए, लेकिन इससे रोगियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम या स्वास्थ्य के लिए खतरा होने की संभावना है. सरकार को एहसास होना चाहिए कि उन्होंने घटिया गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर की आपूर्ति की है, उन्हें वापस जाने दें और उन्हें कुछ अच्छी गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर से बदलें. अगर पीएम केयर्स फंड को वेंटिलेटर उपलब्ध कराने के लिए इस्तेमाल करना है, तो यह वेंटिलेटर चिकित्सा उपयोग के योग्य होना चाहिए, यदि वे इसके लायक नहीं हैं, तो यह सिर्फ एक डब्बा है.’

अदालत ने उपयोग में न आने वाले वेंटिलेटर के मुद्दे पर राजनेताओं की बयानबाजी पर भी नाराजगी व्यक्त की.

पीठ ने कहा, ‘हमें यह अरुचिकर लगता है, क्योंकि कुछ राजनेताओं ने ऐसा जताते हुए अस्पताल का दौरा किया है कि उनके पास वेंटिलेटर का निरीक्षण करने और सुधार के तरीकों की सिफारिश करने के लिए ज्ञान या विशेषज्ञता है.’

पीठ ने राजनेताओं से अपील की कि वे इस तरह के बयानों और वेंटिलेटर का निरीक्षण करने के लिए अस्पतालों का दौरा करने से परहेज करें.

अदालत इस स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 28 मई को करेगी.

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में पंजाब के मोहाली स्थित दो निजी अस्पतालों ने पीएम केयर्स फंड के तहत संस्थानों द्वारा प्राप्त 20 वेंटिलेटर खराब मिलने की शिकायत की थी. हालांकि सरकार ने इससे इनकार किया था.

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