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केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी. इसके बाद दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों ने प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन के दौरान भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के साथ पुलिस की हल्की झड़प भी हुई. (फोटो: पीटीआई)
नई दिल्ली/चंडीगढ़: केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने अपने आंदोलन के छह माह पूरे होने पर बुधवार को ‘काला दिवस’ मनाया और इस दौरान उन्होंने काले झंडे फहराए, सरकार विरोधी नारे लगाए, पुतले जलाए और प्रदर्शन किया.
दिल्ली के गाजीपुर में प्रदर्शन स्थल पर थोड़ी अराजकता की भी खबर है, जहां किसानों ने भारी संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती के बीच केंद्र सरकार का पुतला जलाया.
‘काला दिवस’ प्रदर्शन के तहत किसानों ने तीन सीमा क्षेत्रों- सिंघू, गाजीपुर और टिकरी पर काले झंडे लहराए और नेताओं के पुतले जलाए.
दिल्ली पुलिस ने लोगों से कोरोना वायरस संक्रमण से हालात और लागू लॉकडाउन के मद्देनजर इकट्ठे नहीं होने की अपील की है और कहा कि प्रदर्शन स्थल पर किसी भी स्थिति से निपटने के लिए वह कड़ी नजर बनाए रखे है.
किसान नेता अवतार सिंह मेहमा ने कहा कि न केवल प्रदर्शन स्थल पर बल्कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के गांवों में भी काले झंडे लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों ने अपने घरों और वाहनों पर भी काले झंडे लगाए हैं.
मेहमा ने कहा, ‘सरकार के नेताओं के पुतले जलाए गए. आज का दिन यह बात दोहराने का है कि हमें प्रदर्शन करते हुए छह माह हो गए हैं, लेकिन सरकार जिसके कार्यकाल के आज सात वर्ष पूरे हो गए, वह हमारी बात नहीं सुन रही है.’
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर गाजीपुर में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में सैकड़ों किसान समूहों में जुट गए और विरोध में केंद्र का पुतला फूंका.
भारतीय किसान यूनियन के कई समर्थकों के हाथों में काले झंडे लिए हुए थे, कई अन्य लोगों के हाथों में तख्तियां थीं, जिनमें सरकार की निंदा करते हुए और विवादास्पद कानूनों को वापस लेने की मांग की गई थी. हालांकि प्रदर्शन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क संबंधी कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन काफी हद तक नजर नहीं आया.
नवंबर 2020 से गाजीपुर में विरोध का नेतृत्व कर रहे राकेश टिकैत दिल्ली में 26 जनवरी को निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद विरोध का एक प्रमुख चेहरा बन गए थे. प्रदर्शन के दौरान उन्हें भी काले रंग की पगड़ी और काला झंडा पहने देखा गया था.
हाल ही में किसानों के विभिन्न 40 संगठनों को मिलाकर बनाए गए संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गतिरोध पर बातचीत शुरू करने का आग्रह करते हुए पत्र लिखा था.
इससे पहले भी किसान संगठन बातचीत शुरू करने की बात दोहरा चुके हैं, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार की ओर से औपचारिक तौर पर अब तक इस संबंध में कुछ नहीं कहा गया है.
केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.
केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
पंजाब और हरियाणा में लोगों ने घरों और वाहनों पर लगाए काले झंडे
कृषि कानूनों के खिलाफ कृषक संगठनों द्वारा बुधवार को आहूत ‘काला दिवस’ पर पंजाब और हरियाणा में किसानों ने अपने घरों पर काले झंडे लगाए, केंद्र सरकार के पुतले फूंके और प्रदर्शन किया.
पंजाब में अमृतसर, मुक्तसर, मोगा, तरनतारन, संगरूर और बठिंडा समेत कई स्थनों पर प्रदर्शनकारी किसानों ने भाजपा नीत सरकार के पुतले फूंके.
किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर कृषि कानूनों के खिलाफ लुधियाना में प्रदर्शन करतीं महिलाएं. (फोटो: पीटीआई)
मुक्तसर जिले के बादल गांव में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी अपने घर पर काला झंडा लगाया और केंद्र सरकार से प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांग स्वीकार करने की अपील की.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने बताया कि हरियाणा में कई स्थानों पर किसानों ने अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाए.
कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी सहित कई राजनीतिक दलों ने किसानों के ‘काला दिवस’ मनाने के आह्वान का समर्थन किया.
दोनों राज्यों में किसानों ने काले झंडे हाथ में लिए और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मार्च भी निकाला. महिलाएं भी काली चुन्नी लगाकर प्रदर्शन में आई.
पंजाब में अमृतसर, मुक्तसर, मोगा, तरनतारन, संगरूर और बठिंडा समेत कई स्थानों पर प्रदर्शनकारी किसानों ने भाजपा नीत सरकार के पुतले भी फूंके. कई जगहों पर खासकर युवा किसानों ने ट्रैक्टरों, कारों, दो पहिया वाहनों पर काला झंडा लगा रखा था.
दो विधायकों- कुलतार सिंह संधवान और मीत हायरे समेत आम आदमी पार्टी के नेताओं ने प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में चंडीगढ़ स्थित पंजाब राजभवन के बाहर प्रदर्शन किया.
उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ नारे लगाए और कानून निरस्त करने की मांग की. उनके हाथों में काले झंडे थे. बाद में पुलिस ने उन्हें वहां से हटा दिया.
बिक्रम सिंह मजीठिया के नेतृत्व में अकाली दल नेताओं ने यहां पार्टी कार्यालय पर काला झंडा लगाया.
हरियाणा में भी कई स्थानों पर ऐसा ही नजारा देखने को मिला. अंबाला, हिसार, सिरसा, करनाल, रोहतक, जींद, भिवानी, सोनीपत और झज्जर में किसानों ने प्रदर्शन किया.
सिरसा में बरनाला रोड पर काले झंडे लेकर बहुत सारे किसान पहुंच गए. जींद में किसानों ने केंद्र और हरियाणा की भाजपा नीत सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन किया.
अंबाला में चडूनी ने कहा, ‘केंद्र यदि हमारी मांगों पर सहमत हो जाता है तो किसान आज प्रदर्शन खत्म करने के लिए तैयार है. साथ ही हम अपना आंदोलन तब तक जारी रखने के लिए तैयार हैं जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होती हैं.’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा कि उनकी पार्टी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और केंद्र को कृषि कानूनों को तत्काल वापस लेना चाहिए.
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि किसान ठंड और गर्मी में पिछले छह महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन केंद्र उनकी मांगों पर अड़ियल रवैया अपनाए हुए है.
किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने केंद्र सरकार पर कानून वापस न लेने को लेकर निशाना साधते हुए कहा, ‘दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन को शुरू हुए अब छह महीने हो चुके हैं.’
पंढेर ने कहा कि जब तक कानून निरस्त नहीं किए जाते तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा.
किसान संगठन ने मजदूर, युवा बेरोजगार, व्यापारी, दुकानदारों सहित सभी तबकों से अपने घरों, दुकानों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर काले झंडे लगाने की अपील की थी.
सुखबीर सिंह बादल ने ट्वीट किया, ‘किसानों के प्रदर्शन के आज छह महीने पूरे होने पर मैं केंद्र से किसानों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने और कानून वापस लेने की अपील करता हूं. मेरे बादल आवास पर आज काला झंडा लगाया गया है और अकाली दल के अन्य नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने भी ऐसा ही किया है. किसानों के लिए काला दिवस.’
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी एक बार फिर मंगलवार को केंद्र से किसानों के साथ बातचीत शुरू करने की अपील की थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)