आशा कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 महामारी के दौरान फ्रंटलाइन पर काम करने के बावजूद उनका बकाया भुगतान और सुरक्षा उपकरण नहीं मिल रहा है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिवों को छह सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं की ‘खराब कामकाजी परिस्थितियों’ के आरोपों पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, एनएचआरसी ने कहा कि यह देखा गया है कि ‘खराब कामकाजी परिस्थितियों’ के आरोप, यदि सही हैं, तो बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भारत भर में विशाल ग्रामीण आबादी की संपूर्ण स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली इन आशा कार्यकर्ताओं पर निर्भर करती है.
आयोग ने बयान में कहा, ‘एनएचआरसी ने एक शिकायत का संज्ञान लिया है कि आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं को देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 महामारी के दौरान फ्रंटलाइन पर काम करने के बावजूद उनका बकाया और सुरक्षा उपकरण नहीं मिल रहा है.’
आयोग ने बयान में कहा कि इसलिए इसने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिवों को छह सप्ताह के भीतर शिकायत में उठाए गए मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट देने के लिए नोटिस जारी किया है.
बयान में कहा गया है, ‘रिपोर्ट में यह विवरण होना चाहिए कि प्रत्येक राज्य में कितने आशा कार्यकर्ता काम कर रही हैं और महामारी के दौरान उनकी क्या स्थिति है, पारिश्रमिक की राशि कितनी है और महामारी के दौरान उन्हें कितनी अन्य बकाया राशि भुगतान की गई. इसके साथ ही उनका एरियर कितना है और उनके पेशेवर कार्यों के दौरान छुट्टी देने के लिए उनकी सुरक्षा के लिए स्थापित स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का विवरण होना चाहिए.’
आगे कहा गया, ‘रिपोर्ट में इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की रक्षा के लिए प्रदान की जाने वाली सुविधाएं, कर्तव्य निर्वहन के दौरान हुई मृत्यु की स्थिति में मुआवजा, दीर्घकालिक स्वास्थ्य बीमा/सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा/संरक्षण सुविधाएं मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार शामिल होनी चाहिए.’