जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में पिछले 30 दिनों में 64 बच्चों की मौत हो चुकी है.
जमशेदपुर: महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 2 महीने के अंदर 100 से भी ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. जुलाई में भर्ती हुए 546 शिशुओं में से अब तक 60 अपनी जान गंवा चुके हैं. अगस्त महीने में अब तक 41 शिशुओं की मौत हुई है जिसमें से 33 नवजात हैं.
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कुपोषण के कारण बच्चों की मौत पर झारखंड सरकार को नोटिस जारी कर छह हफ़्तों के अंदर रिपोर्ट की मांग की है. राज्य के मुख्य सचिव को भेजे नोटिस में आयोग ने 6 हफ़्तों के भीतर इस मामले की रिपोर्ट सौंपने को कहा है.
समाचार एजेंसी एनआई के अनुसार अस्पताल के अधीक्षक ने इन मौतों का कारण कुपोषण बताया है. बीते दिनों गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 70 बच्चों की मौत के बाद अब जमशेदपुर में 30 दिन के अंदर लगभग 60 नवजातों की जान जा चुकी है.
महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सबसे अधिक बच्चों की मौत बर्थ एस्फिक्सिया (जन्म के समय दम का घुटना) से हुई है. इस बात की पुष्टि 25 अगस्त को रांची से स्वास्थ्य सेवा के निदेशक प्रमुख डॉ. सुमंत मिश्र के नेतृत्व में चार सदस्यीय टीम की रिपोर्ट में की गई.
ज्ञात हो कि बर्थ एस्फिक्सिया की समस्या मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के कारण होती है जिसमें मरीज़ को फौरन वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है. इसमें लापरवाही होने पर बच्चे के मंदबुद्धि हो जाने का या मौत का भी ख़तरा होता है.
इस दौरान बीते चार महीनों में कुल 164 बच्चों की मौत की जानकारी मिली. इनमें एनआइसीयू (न्यू बॉर्न इंटेसिव केयर यूनिट) में कुल 112, पीआइसीयू (पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) में 31 व वार्ड में कुल 21 शामिल हैं. एनआइसीयू में हुई मौत की मुख्य वजह बर्थ एस्फिक्सिया बताया गया.वहीं एनआई के अनुसार अस्पताल के अधीक्षक ने इन मौतों का कारण कुपोषण बताया है.
द टेलीग्राफ़ अख़बार के मुताबिक़ राज्य स्तर की जांच में अस्पताल की ओर से किसी भी लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला है पर चिकित्सा कर्मचारियों ने इस बात का संकेत किया है कि शिशुओं की देखभाल ठीक तरह से नहीं की जा रही है.
अस्पताल में छह इनक्यूबेटर में से मात्र चार इंक्यूबेटर ही काम करते हैं. प्रत्येक इनक्यूबेटर का इस्तेमाल एक समय में एक बच्चे के लिए होना चाहिए, जो समय से पहले जन्मा हो या जिसका वजन बहुत कम हो. एमजीएम अस्पताल के चिकित्सा कर्मचारी के हवाले से टेलीग्राफ़ ने बताया कि एमजीएम अस्पताल में तीन बच्चों को एक ही इन्क्यूबेटर में रखा जाता है, जिससे संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे नवजात शिशु की मृत्यु भी हो सकती है. एक अन्य स्रोत के अनुसार बाल चिकित्सा विभाग में केवल छह ही वेंटीलेटर काम कर रहे हैं.
जुलाई में भर्ती हुए 546 शिशुओं में से अब तक 60 अपनी जान गंवा चुके हैं. अगस्त के महीने में अब तक 41 शिशुओं की मौत हुई है जिसमें से 33 नवजात हैं.
जांच के लिए पहुंची टीम के सदस्य और वरिष्ठ डॉक्टर के.एम मुंडा के अनुसार, ‘अधिकांश शिशुओं की मौत कुपोषण के कारण से हुई है. इन सभी शिशुओं को कोलहान के चाइबासा और सरायकेला अस्पताल साथ ही बंगाल और ओडिशा के अन्य अस्पतालों में उनके जन्म के बाद एमजीएम में भर्ती कराया गया था.’ मुंडा ने ऑक्सीजन की कमी को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया.
एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक भारतेंदु भूषण ने कहा कि पिछले महीने जन्म के बाद होने वाली परेशानियों और जटिलताओं के कारण बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिनमें से 12 इसी अस्पताल में पैदा हुए थे.
उनके अनुसार मरने वाले ज़्यादातर 60 बच्चे कम वजन के थे और जन्मपूर्व जटिलताओं और कुपोषण के कारण उनकी मौत हो गई, जबकि शेष 48 मामले दूसरे अस्पतालों से रेफर होकर आए थे.
एक स्थानीय एनजीओ झारखंड मानवाधिकार सम्मेलन ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है.
इस मामले पर विपक्ष ने सरकार के प्रति नाराज़गी जताई है. जमशेदपुर के पूर्व सांसद और कांग्रेस के प्रवक्ता अजय कुमार ने कहा, ‘अगर ये मौतें कुपोषण के कारण हुई हैं तो भी इसकी ज़िम्मेदारी अस्पताल के साथ साथ सरकार को लेनी चाहिए.’