उत्तराखंड में हुए हालिया कुंभ मेले के पुलिस महानिरीक्षक ने बताया है कि वहां 12 अप्रैल को इक्कीस लाख, 13 अप्रैल को क़रीब तीन लाख और 14 अप्रैल को लगभग बारह लाख श्रद्धालु एकत्र हुए थे. यह संख्या राज्य सरकार द्वारा इससे पहले दिए इन तीन दिनों के कुल आंकड़े 49 लाख से काफ़ी कम है.
देहरादून: देशभर में कोविड-19 की दूसरी लहर के कहर के दौरान उत्तराखंड सरकार ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी कि कुंभ के तीन प्रमुख दिनों 12, 13 और 14 अप्रैल को हरिद्वार में हर की पौड़ी और उससे जुड़े हुए घाट में कुल 49 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई थी.
अब राज्य ने इस संख्या में बड़ी तब्दीली बताते हुए नया आंकड़ा दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आयोजन के लिए चौतरफा आलोचनाओं करने के बाद राज्य सरकार और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने एक विस्तृत समीक्षा के बाद आकलन किया है कि इन तीन दिनों के लिए उपस्थिति का आंकड़ा लगभग 70 फीसदी कम (अनुमानित 15 लाख) था.
संपर्क किए जाने पर कुंभ मेला के पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल ने कहा, ‘12 अप्रैल को केवल 21 लाख लोगों की भीड़ थी, 13 अप्रैल को करीब 3 लाख और 14 अप्रैल को करीब 12 लाख.’
यह संख्या सरकार द्वारा पहले उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के विपरीत है. अप्रैल में सरकार ने कहा था कि 12 अप्रैल को 31 लाख से अधिक लोगों ने दूसरे शाही स्नान में डुबकी लगाई जबकि 13 अप्रैल को यह संख्या 4.5 लाख और 14 अप्रैल को 13.5 लाख से अधिक थी.
इतनी बड़ी गिरावट के बारे में पूछे जाने पर गुंज्याल ने कहा, ‘पहले के आंकड़े हेडकाउंट पर आधारित थे. लेकिन 12 अप्रैल के डेटा को अन्य दिनों के डेटा के साथ जोड़कर गलत गणना की गई थी.’
वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि गुंज्याल के 36 लाख के संशोधित अनुमान की तुलना में वास्तविक भीड़ लगभग 15 लाख कम थी.
उन्होंने कहा, ‘यह (आंकड़ा) सभी प्रमुख गतिशीलता (मोबिलिटी) संकेतकों की समीक्षा पर आधारित है, जिसमें जिले के सभी होटलों में रहने वालों के आंकड़े, पंजीकृत पार्किंग स्थल में रिक्तियां, मोबाइल टावरों से सेलफोन की उपस्थिति और वाहनों के लिए यात्री यातायात और हरिद्वार से आने वाली सभी ट्रेनों में शामिल हैं.’
मोबिलिटी संकेतकों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 10-15 अप्रैल के बीच 9.55 लाख लोग कार, दो पहिया और बसों के रास्ते हरिद्वार पहुंचे थे. इस अवधि के दौरान ट्रेनों से 40,000 से कम लोग आए थे.
वहीं, इस अवधि में 537 होटलों और 260 धर्मशालाओं में 10.95 लोग रुके. 11-14 अप्रैल के बीच प्रदेश से बाहर के 1.68 लाख फोन वहां लॉगइन हुए थे.
बता दें कि 1 अप्रैल को जब कुंभ औपचारिक रूप से शुरू हुआ तब जिले में 626 सक्रिय मामले थे और 30 अप्रैल को यह संख्या बढ़कर 11,075 हो गई और अप्रैल में 90 मौतें हुईं.
मेला अधिकारी दीपक रावत ने कहा, ‘जाहिर है, जो पेश किया गया है, उसकी तुलना में लोगों की संख्या बहुत कम थी. हर की पौड़ी के अलावा सभी घाटों (मेला क्षेत्र में 107 घाट हैं) में यह नगण्य था.’
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘भले ही हम मान लें कि हरिद्वार नगरपालिका क्षेत्र की 5 लाख आबादी ने डुबकी लगाई है, फिर भी कुल संख्या सरकार द्वारा दावा किए गए आंकड़े से कम है.’
अधिकारी ने कहा, ‘इसे भी ध्यान में रखते हुए भीड़ की संख्या 21 लाख से अधिक नहीं होती है.’
सूत्रों ने बताया कि बड़ी भीड़ दिखाने का एक कारण राजनीतिक भी हो सकता है. हालांकि, निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते थे.
वहीं, उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि राज्य सरकार ने एक भव्य मेले का सफलतापूर्वक आयोजन करने और बजट के उपयोग को सही ठहराने के लिए लोगों की संख्या के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया.
उन्होंने कहा, ‘सरकार द्वारा दावा किए गए आंकड़ों से लोगों की संख्या कम थी. इस तरह के अतिरंजित आंकड़ों के साथ राज्य सरकार ने भक्तों को कोविड से बचाने के लिए आवश्यक तैयारी करने में अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश की.’
संपर्क करने पर कैबिनेट मंत्री और सरकार के प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने कहा कि प्रशासन द्वारा घोषित लोगों की संख्या के आंकड़े सही हैं.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन यह भी सच है कि पिछले कुंभ की तुलना में इस बार शाही स्नान पर लोगों की भीड़ कम रही. आम लोग बहुत कम संख्या में आए, मुख्य रूप से संत जो कुंभ के दौरान रुके थे.’
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच राज्य में कुंभ मेला भी आयोजित करने की खासी आलोचना हुई थी और संक्रमण के मामलों के बढ़ने की बार-बार आशंका जताई गई थी. वहीं, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुंभ के आयोजन को एक गलती करार दिया था.
प्राप्त सूचनाओं के अनुसार, 10 से 14 अप्रैल के बीच हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में 1,701 लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी. कुंभ के दौरान 12 अप्रैल को अमावस्या पर और 14 अप्रैल को दो शाही स्नान हुए, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया था और उन्हें खुले तौर पर मास्क और सामाजिक दूरी के नियम का उल्लंघन करते हुए देखा गया था.
अप्रैल महीने में हरिद्वार के विभिन्न अखाड़ों के कई साधु संत भी कोविड-19 की चपेट में आए थे, जिनमें अखाडा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाडे के महंत नरेंद्र गिरि भी शामिल हैं. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश से आए निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिल देव की कोविड-19 के कारण 13 अप्रैल को मृत्यु हो गई थी.
देश-विदेश में हुई आलोचना और बढ़ते संक्रमण के बीच 17 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे संकेतात्मक रखने की अपील की थी.
इसके बाद कुंभ मेले में शामिल हुए एक कोरोना संक्रमित 70 वर्षीय संत को एम्स ऋषिकेश और गवर्नमेंट दून मेडिकल कॉलेज (दून अस्पताल) में आईसीयू बिस्तरों की कमी के चलते लौटा दिया गया था, जिसके बाद 19 अप्रैल को उन्होंने हरिद्वार के बाबा बर्फानी कोविड केयर सेंटर में दम तोड़ दिया था.
कुंभ ख़त्म होने के बाद कई राज्यों से श्रद्धालुओं के कोविड संक्रमित होने की खबरें आई थीं, जिसके बाद विभिन्न राज्य सरकारों ने अनिवार्य क्वारंटीन जैसे नियम कड़े कर दिए थे.