यूपी: एस्मा की अवधि फिर बढ़ने से नाराज़ कर्मचारी संगठन, कहा- सरकार चाहती है कि हम आवाज़ न उठाएं

उत्तर प्रदेश में बीते साल मई से एस्मा लागू है और इसी हफ़्ते तीसरी बार इसकी अवधि छह महीनों के लिए बढ़ाई गई है. महामारी के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर योगी सरकार से नाराज़ चल रहे कई कर्मचारी संगठनों ने इसे आपातकाल और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला क़रार दिया है.

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योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@MYogiAdityanath)

उत्तर प्रदेश में बीते साल मई से एस्मा लागू है और इसी हफ़्ते तीसरी बार इसकी अवधि छह महीनों के लिए बढ़ाई गई है. महामारी के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर योगी सरकार से नाराज़ चल रहे कई कर्मचारी संगठनों ने इसे आपातकाल और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला क़रार दिया है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@MYogiAdityanath)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@MYogiAdityanath)

गोरखपुर: शिक्षकों और कर्मचारियों के आक्रोश के बीच योगी सरकार ने लगातार तीसरी बार हड़ताल पर रोक लगाने वाला कानून एस्मा (उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम- 1966) लागू कर दिया है. यह कानून अगले छह माह तक लागू रहेगा.

इसके पहले भी दो बार इस कानून को लागू किया जा चुका है. शिक्षक और कर्मचारी संगठनों ने एस्मा लागू किए जाने का तीखा विरोध किया है और इसे आपातकाल बताया है.

संगठनों ने कहा कि कोविड को देखते हुए किसी भी संगठन ने हड़ताल पर जाने की घोषणा नहीं की है फिर भी एस्मा लागू किया जाना हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. सरकार चाहती है कि हम अपनी आवाज भी न उठाएं.

प्रदेश सरकार ने 25 मई को एस्मा लागू किए जाने की अधिसूचना जारी की थी जो 27 मई को सार्वजनिक हुई. अपर मुख्य सचिव, नियुक्ति एवं कार्मिक, मुकुल सिंघल ने यह जानकारी देते हुये बताया कि उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम- 1966 की धारा 3 की उपधारा 1 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करके राज्यपाल ने छह महीने के लिए हड़ताल निषिद्ध कर दिया है. उन्होंने बताया कि किसी भी लोकसेवा, निगम और स्थानीय प्राधिकरण में कार्य करने वाले कर्मचारी छह माह तक हड़ताल नहीं कर सकेंगे.

प्रदेश सरकार पिछले एक वर्ष से लगातार एस्मा लागू किए हुए है. यह तीसरी बार है जब एस्मा की अवधि को बढ़ाया गया है.

यह सही है कि उत्तर प्रदेश के किसी भी संगठन ने हड़ताल पर जाने की घोषणा नहीं की थी लेकिन सरकार के खिलाफ शिक्षक-कर्मचारियों में इस समय बड़ी नाराजगी है.  नाराजगी का एक कारण तो पहले से लंबित उनकी मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं होना है.

दूसरा बड़ा कारण कोविड-19 की दूसरी लहर के बावजूद पंचायत चुनाव कराना और उसके कारण संक्रमण से बड़ी संख्या में शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत होना है.

सरकार द्वारा पंचायत चुनाव की ड्यूटी करते हुए कोविड संक्रमण से ‘निर्वाचन अवधि’ का हवाला देते हुए सिर्फ तीन शिक्षकों की मौत की बात कहे जाने से शिक्षक-कर्मचारी संगठन आग बबूला हो गए थे. उनके आक्रोश को देखते हुए मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि राज्य निर्वाचन आयोग से बातचीत कर ‘निर्वाचन अवधि’ वाली शर्त को बदला जाएगा.

पंचायत चुनाव में ड्यूटी के कारण कोविड संक्रमण से अब तक तीन हजार शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. प्राथमिक शिक्षक संघ ने प्रदेश सरकार को 1,621 शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की मृत्यु की सूचना दी है.

वहीं, माध्यमिक शिक्षक संघ की ओर से कहा गया है कि माध्यमिक विद्यालयों के 425 शिक्षकों-कर्मचारियों की कोविड संक्रमण से मौत हुई है.

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने पंचायत चुनाव में ड्यूटी करते हुए एक हजार कर्मचारियों के कोविड संक्रमण से मौत की बात कही है और प्रदेश सरकार को 518 दिवंगत कर्मचारियों की सूची भी दी है.

हाल के दिनों में मनरेगा कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर कार्य बहिष्कार की चेतावनी दी थी लेकिन सरकार से बातचीत के बाद उन्होंने कार्य बहिष्कार टाल दिया. संविदा एएनएम और आयुष चिकित्सकों ने अपनी मांगों को लेकर कालीपट्टी बांधकर प्रदर्शन किया था.

कोविड काल के पहले आंगनबाड़ी, आशा, एनएएचएम संविदा कर्मी, शिक्षा मित्र सहित विभिन्न योजनाओं में कार्य करने वाले संविदा कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं  अपनी कार्य परिस्थितियों के लेकर उनमें पहले से आक्रोश है.

कोविड की पहली और दूसरी लहर में उन पर कई अतिरिक्त कार्य सौंप दिए गए लेकिन उनकी सुविधाओं और मानदेय में कोई वृद्धि नहीं की गई.

शिक्षकों व राज्य कर्मचारियों में नई पेंशन व्यवस्था को लेकर भी काफी नाराजगी रही है और इसे वापस करने की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं.

शिक्षकों-कर्मचारियों का कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था में कई ऐसे उदाहरण है कि उन्हें पेंशन के नाम पर कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है. कोरोना को संभालने में काफी मेहनत करने के बाद भी महंगाई भत्ता तथा अन्य भत्ते काटे गए हैं. सातवे वेतन आयोग की संस्तुतियां चार वर्ष बाद भी बस्ते में बंद हैं.

एस्मा लागू किए जाने के बाद शिक्षकों और कर्मचारियों के दो सबसे बड़े संगठनों-उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ और कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी एवं पेंशनर्स अधिकार मंच ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नाराजगी व्यक्त की और एस्मा को वापस लेने की मांग की.

संगठनों ने इस पत्र में शिक्षकों-कर्मचारियों की समस्याओं और मांगों का भी जिक्र किया है और कहा है कि सरकार इसके समाधान के लिए कोई कार्य नहीं कर रही है.

शिक्षक और कर्मचारी संगठनों ने मीडिया में जारी बयान में कहा है, ‘एस्मा लगाकर सरकार द्वारा धमकी देने का काम किया गया है. इस सरकार में लगातार तीन बार कर्मचारी तथा शिक्षक संगठनों पर एस्मा लगाया गया. इतने कम समय में सरकार द्वारा बिना हड़ताल, आंदोलन के नोटिस के एस्मा लगाना कर्मचारियों के खिलाफ अघोषित इमरजेंसी है. सरकार एस्मा के बहाने कर्मचारियों की समस्याओं से निपटने की बजाए अपना कार्यकाल पूरा करना चाह रही है.’

आगे कहा गया, ‘विगत 18 महीने से लगातार एस्मा लगाया जा रहा है. हम मान्यता प्राप्त संगठन के लोग अनावश्यक धमकी के रूप में मानते हैं. ऐसा लगता है जैसे कर्मचारियों शिक्षकों पर इमरजेंसी लगा दी गई. इस तरह बार-बार एस्मा लगाने का मतलब सरकार चाहती है कि अब कर्मचारी शिक्षक अपनी समस्या भी नहीं उठाएं?’

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा, कलेक्ट्रेट मिनिस्ट्रियल कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार त्रिपाठी, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष इ. हरिकिशोर तिवारी, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष राम राज दुबे, उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष सतीश कुमार पांडेय, विधान परिषद में शिक्षक दल के नेता सुरेश कुमार त्रिपाठी, एमएलसी ध्रुव कुमार त्रिपाठी, विधान परिषद के पूर्व सदस्य हेम सिंह पुंडीर ने मुख्य सचिव यह पत्र लिखा है.

 

पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तीसरी बार एस्मा लगा कर कर्मचारी संगठनों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है जो स्वीकारने योग्य नहीं है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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