बिहारः देशव्यापी लॉकडाउन में साइकिल से गुड़गांव से दरभंगा पहुंची ज्योति के पिता का निधन

साइकिल गर्ल ज्योति पासवान के पिता मोहन पासवान का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. ज्योति पिछले साल राष्ट्रीय लॉकडाउन में अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से दरभंगा तक लगभग 1,200 किलोमीटर का सफ़र करने के बाद सुर्खियों में आई थीं.

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पिता मोहन और मां फुलो के साथ ज्योति पासवान (फोटोः उमेश कुमार राय)

साइकिल गर्ल ज्योति पासवान के पिता मोहन पासवान का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. ज्योति पिछले साल राष्ट्रीय लॉकडाउन में अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से दरभंगा तक लगभग 1,200 किलोमीटर का सफ़र करने के बाद सुर्खियों में आई थीं.

पिता मोहन और मां फुलो के साथ ज्योति पासवान (फोटोः उमेश कुमार राय)
पिता मोहन और मां फुलो के साथ ज्योति पासवान (फोटोः उमेश कुमार राय)

पटनाः पिछले साल कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन के दौरान साइकिल से गुड़गांव से बिहार 1,200 किलोमीटर का सफर तय करने वाली ज्योति के पिता का सोमवार को दिल का दौरा पड़ने से अपने गांव दरभंगा में निधन हो गया.

ज्योति (16) ने पिछले साल मई महीने में अपने पिता मोहन को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से दरभंगा तक 1,200 किलोमीटर का सफर तय किया था.

मोहन (45) की पत्नी फुलोदेवी ने द वायर को बताया कि वह किसी बड़ी बीमारी से पीड़ित नहीं थे और 31 मई की सुबह तक बिल्कुल ठीक थे.

उन्होंने कहा, ‘सुबह जब वह पास के बस स्टॉप से लौटे, तभी से वह अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे. उन्होंने हमें बताया कि उन्हें गर्मी लग रही है फिर हमने पंखा चला दिया. कुछ मिनट बाद वह ऊपर चले गए और उनकी अचानक मौत हो गई.’

स्थानीय निवासी ललित पासवान का कहना है कि मोहन के चाचा की कुछ दिन पहले मौत हो गई थी और वह अपने चचेरे भाइयों के साथ मिलकर सामुदायिक भोज (श्राद्ध) की योजना बना रहे थे.

वही, पास के कामतौल पुलिस थाने में काम कर रहे ललित ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.’

मोहन बीते कुछ सालों से गुड़गांव में ई-रिक्शा चला रहे थे. बीते साल 26 जनवरी को जब वह अपने किराए के घर लौट रहे थे तो एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी. उनका दायां पैर बुरी तरह से घायल हो गया था और डॉक्टर ने उन्हें छह से सात महीने तक पूरी तरह आराम करने की सलाह दी थी.

पिछले साल इन दो महीनों के बीच ही केंद्र सरकार ने कुछ ही घंटों के नोटिस के साथ देशभर में पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था.

इस लॉकडाउन से हजारों की संख्या में फंसे प्रवासी मजदूर भूखे मर रहे थे और उनके पास घर लौटने का कोई माध्यम नहीं था. ये लोग अपने घर का किराया तक नहीं चुका पा रहे थे. लॉकडाउन नियमों की वजह से ये लोग जहां काम कर रहे थे, उनमें से अधिकतर जगह बंद कर दी गई थी.

इन्हीं हजारों कामगारों की तरह मोहन भी बेबस थे. उस समय ज्योति गुड़गांव में उनकी देखभाल कर रही थी. बड़ी संख्या में लोगों को पैदल ही अपने गांव लौटता देखकर ज्योति ने फैसला किया कि उन्हें और उनके घायल पिता को भी दरभंगा के सिरहुल्ली गांव में अपने घर लौटने की जरूरत है.

शुरुआत में मोहन के पिता अनिच्छुक थे लेकिन बाद में ज्योति ने उन्हें मना लिया. इसके बाद दोनों आठ मई 2020 को साइकिल से गुड़गांव से बिहार के दरभंगा के लिए निकले.

इस यात्रा के बाद ज्योति ने द वायर  को बताया था, ‘साइकिल पीछे पिता को बिठाकर वह दिनभर साइकिल चलाती रहती थी और रात के समय वे पेट्रोल पंप पर सोते थे. उन्हें दरभंगा पहुंचने में एक हफ्ते से ज्यादा का समय लगा था.’

ज्योति के इस अद्भभुत सफर के सामने आने के बाद कई संगठनों ने आगे आकर उनकी आर्थिक मदद करने का वादा किया था. बिहार सरकार ने ज्योति कोअपनी सामाजिक कल्याण परियोजना का एंबेसेडर बनाया था.

मुंबई के फिल्म निर्माता विनोद कापड़ी ने ज्योति की यात्रा पर एक फिल्म बनाने का ऐलान किया था. दक्षिण भारत के एक निर्देशक ने ठीक इसी तरह का कॉन्ट्रैक्ट ज्योति के साथ किया था. अब दोनों फिल्म निर्माता कहानी के अधिकारों को लेकर अदालत में लड़ाई लड़ रहे हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)