अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट, विपक्ष ने कहा- चार दशक का ‘सबसे अंधकारमय’ साल

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े के अनुसार, देश का वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2020-21 में घटकर 135 लाख करोड़ रुपये रहा, जो मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 145 लाख करोड़ रुपये था. वहीं 2020-21 के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.3 प्रतिशत रहा, जो 9.5 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से कम है. हालांकि फरवरी 2020 में पेश बजट के दौरान इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था. सरकार ने कुल प्राप्तियों के मुक़ाबले दोगुने से भी अधिक व्यय किया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े के अनुसार, देश का वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2020-21 में घटकर 135 लाख करोड़ रुपये रहा, जो मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 145 लाख करोड़ रुपये था. वहीं 2020-21 के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.3 प्रतिशत रहा, जो 9.5 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से कम है. हालांकि फरवरी 2020 में पेश बजट के दौरान इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था. सरकार ने कुल प्राप्तियों के मुक़ाबले दोगुने से भी अधिक व्यय किया है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) में मार्च 2021 को समाप्त वित्त वर्ष में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई है. साल 1947 में आजादी के बाद से ये पहला ऐसा मौका है, जब भारत की अर्थव्यवस्था में इतनी बड़ी गिरावट आई है. 

कांग्रेस ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट होने पर चिंता प्रकट करते ही केंद्र सरकार की आलोचना की है. कांग्रेस ने इसे चार दशक का ‘सबसे अंधकारमय’ साल करार दिया है.

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2020-21 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 1.6 प्रतिशत रही. यह इससे पिछली तिमाही अक्टूबर-दिसंबर 2020 में 0.5 प्रतिशत से अधिक है.

इससे पूर्व वित्त वर्ष 2019-20 की जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी.

पिछले साल की महामारी से पहले से नरमी का सामना कर रही अर्थव्यवस्था में 2020-21 (अप्रैल-मार्च) में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई. कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लगाए गए देशव्यापी ‘लॉकडाउन’ से खपत और आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा था.

यह 1979-80 यानी चार दशक में पहली बार है जब किसी वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है. इससे पहले 1979-80 में जीडीपी में 5.2 प्रतिशत की गिरावट आई थी.

वित्त वर्ष 2019-20 में अर्थव्यवस्था में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

जीडीपी वृद्धि दर 2016-17 में 8.3 प्रतिशत थी, जो अगले वित्त वर्ष में घटकर 7 प्रतिशत और फिर 2018-19 में 6.1 प्रतिशत रही.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़े के अनुसार, देश का वास्तविक जीडीपी 2020-21 में घटकर 135 लाख करोड़ रुपये रहा, जो मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 145 लाख करोड़ रुपये था.

अर्थव्यवस्था को 145 लाख करोड़ रुपये का स्तर प्राप्त करने के लिए 2021-22 में 10 से 11 प्रतिशत वृद्धि की जरूरत होगी, लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है. इसको देखते हुए कई विशेषज्ञों ने अनुमान जताया कि तुलनात्मक आधार कमजोर रहने के बावजूद जीडीपी वृद्धि दर दहाई अंक में नहीं पहुंचेगी.

हालांकि दैनिक आधार पर कोविड-19 मामलों की संख्या घटकर 1.5 लाख के करीब आ गई, जो एक समय 4 लाख से अधिक पहुंच गई थी.

लेकिन अर्थव्यवस्था में 55 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाली उपभोक्ता मांग में गिरावट और बेरोजगारी दर बढ़कर एक साल के उच्चतम स्तर 14.73 प्रतिशत पर पहुंचने से नई चुनौतियां सामने आई हैं. 

विश्लेषकों ने आगाह किया है कि टीकाकरण कार्यक्रम की धीमी गति से वृद्धि को जोखिम है.

जीडीपी आंकड़े के बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा असर पड़ने की आशंका नहीं है, लेकिन चालू वित्त वर्ष में दहाई अंक में वृद्धि दर हासिल करने का अनुमान जताना इस समय मुश्किल है.

इस साल जनवरी में जारी वित्त वर्ष 2020-21 की आर्थिक समीक्षा में जीडीपी वृद्धि दर मार्च 2022 को समाप्त वित्त वर्ष में 11 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था.

उन्होंने टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि इससे कोविड-19 की एक और लहर की आशंका को कम करने में मदद मिलेगी.

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च इन इंटरनेशनल एकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) के आलोक शील ने कहा कि 2020-21 के सकल घरेलू उत्पाद के अनंतिम (प्रोविजनल) अनुमान उम्मीद से थोड़े बेहतर हैं, लेकिन इससे बड़ी तस्वीर बदलने की संभावना नहीं है.

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के अप्रैल के 12.5 प्रतिशत वृद्धि के अनुमान का हवाला देते हुए कहा, ‘2021-22 के लिए मौजूदा जीडीपी वृद्धि अनुमानों को कम कर आंकड़ों को संतुलित करने की आवश्यकता होगी. कोविड-19 की दूसरी लहर की गंभीरता के कारण अब 10 प्रतिशत से कम वृद्धि दर को लेकर एक सहमति है.’

डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि अधिकतर राज्यों में अप्रैल और मई में सख्त ‘लॉकउाउन’ लागू करने के साथ दूसरी लहर का आर्थिक नुकसान अप्रैल-जून तिमाही तक सीमित रहने की संभावना है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान संक्रमण की लहर चरम पर जान पड़ता है और बाद की किसी भी लहर का अर्थव्यवस्था पर कम प्रभाव पड़ सकता है जैसा कि दूसरी जगहों पर देखा गया है.’

ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी दमाही में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी.

उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए मुद्राकोष जैसी कई एजेंसियों ने 12.5 प्रतिशत और भारतीय रिजर्व बैंक ने 10.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया है. 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के साथ-साथ जीवीए में कम संकुचन को देखते हुए इन आंकड़ों में संशोधन करना पड़ सकता है.

श्रीवास्तव ने कहा, ‘ये अनुमान दूसरी कोविड लहर के प्रभाव से पहले जताए गए थे. कोविड की दूसरी लहर और संशोधित आधार प्रभाव को देखते हुए 2021-22 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 9-9.5 प्रतिशत हो सकती है.’

एनएसओ ने पूर्व में 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 8 प्रतिशत गिरावट का अनुमान जताया था, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 7.5 प्रतिशत की कमी की आशंका जताई थी.

एक समय कोरोना वायरस संक्रमण का मुख्य केंद्र रहे चीन में वृद्धि दर जनवरी-मार्च, 2021 में 18.3 प्रतिशत रही.

अर्थव्यवस्था में 2020 की अप्रैल-जून तिमाही में रिकार्ड 24.4 प्रतिशत और अगली तिमाही जुलाई-सितंबर में 7.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए 25, मार्च 2020 से देश भर में ‘लॉकडाउन’ लगाया था. इसमें बाद में चरणबद्ध तरीके से ढील दी गई थी, लेकिन इसका अंतत: आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.

एनएसओ के आंकड़े के अनुसार, 2020-21 की चौथी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) वृद्धि दर बढ़कर 6.9 प्रतिशत रही, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में 4.2 प्रतिशत की गिरावट आई थी.

एनएसओ के बयान के अनुसार, ‘स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीडीपी 2020-21 की चौथी तिमाही में 1.6 प्रतिशत बढ़कर 38.96 लाख करोड़ रुपये रहा, जो 2019-20 की चौथी तिमाही में 38.33 लाख करोड़ रुपये था.’

राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.3 प्रतिशत, कुल प्राप्ति के दोगुने से अधिक  खर्च

इस बीच उच्च कर संग्रह से राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.3 प्रतिशत रहा, जो 9.5 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से कम है. हालांकि फरवरी 2020 में पेश बजट के दौरान इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था.

कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी के प्रभावित पिछले वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने कुल प्राप्तियों के मुकाबले दोगुने से भी अधिक व्यय किया. वर्ष के दौरान संपूर्ण अंक में राजकोषीय घाटा 18 लाख 21 हजार 461 करोड़ (अनंतिम) रुपये रहा .

महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा बीते सोमवार को जारी राजस्व- व्यय रपट के मुताबिक, वर्ष के दौरान राजस्व घाटा 7.42 प्रतिशत रहा.

सीजीए के आंकड़ों के मुताबिक, बीते वित्त वर्ष में कर राजस्व प्राप्तियां बजट के संशोधित अनुमान का 105.9 प्रतिशत रही.

आंकड़ों के मुताबिक, 2020- 21 में सरकार को 16 लाख 89 हजार 720 करोड़ रुपये रुपये की कुल प्राप्ति हुई, जो कि संशोधित बजट अनुमान का 105.50 प्रतिशत है. इसमें से 14 लाख 24 हजार 035 करोड़ रुपये कर राजस्व (केंद्र को प्राप्त कर) और 2 लाख 08 हजार 059 करोड़ रुपये का गैर-कर राजस्व शामिल है.

इसके अलावा 57 हजार 626 करोड़ रुपये की गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियां इसमें शामिल हैं, जिनमें कर्ज वसूली और विनिवेश से प्राप्त राशि शामिल हैं.

इस दौरान सरकार का कुल खर्च 35 लाख 11 हजार 181 करोड़ रुपये रहा. यह राशि 2020-21 के संशोधित अनुमान के 101.76 प्रतिशत के बराबर है.

कुल व्यय में से 30 लाख 86 हजार 360 करोड़ रुपये राजस्व खाते में और चार लाख 24 हजार 821 करोड़ रुपये पूंजी खाते में खर्च किए गए.

इस तरह पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने कुल प्राप्तियों के दोगुने से भी अधिक राशि खर्च किया. इसका बड़ा हिस्सा राजस्व खाते में खर्च हुआ. पूंजी खाते में खर्च केवल चार लाख 24 हजार करोड़ रुपये रहा.

राजस्व खाते में 6 लाख 82 हजार 079 करोड़ रुपये ब्याज भुगतान और 6 लाख 89 हजार 545 करोड़ रुपये प्रमुख सब्सिडी के तौर पर खर्च किए गए.

आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 5 लाख 94 हजार 997 करोड़ रुपये केंद्रीय करों में उनके हिस्से के तौर पर राज्यों को जारी किए. यह राशि 2019-20 में जारी राशि के मुकाबले 55 हजार 680 करोड़ रुपये कम है.

सरकार ने 2020-21 के लिए शुरुआत में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.5 प्रतिशत यानी 7.96 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया था. उसके बाद कोरोना संक्रमण की वजह से इसके संशोधित अनुमान को बढ़ाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया गया था.

चालू वित्त वर्ष 2021- 22 के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है. इससे पहले 2019-20 में राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत रहा था. यह सात साल का उच्च स्तर था. राजस्व प्राप्तियां कमजोर रहने की वजह से घाटा बढ़ा है.

महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले माह अप्रैल 2021 में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 5.2 प्रतिशत रहा.

जबकि पिछले साल अप्रैल में राजकोषीय घाटा पूरे साल के बजट अनुमान का 35.1 प्रतिशत रहा था. अप्रैल 2020 में पूरे महीने देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था. पूरे महीने आर्थिक गतिविधियां बंद रही थीं.

फरवरी 2021 को पेश वर्ष 2021- 22 के बजट में राजकोषीय घाटा 15 लाख 06 हजार 812 करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है.

अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का सरकार पर निशाना, अर्थशास्त्रियों की सलाह मानने को कहा

कांग्रेस ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट होने पर बीते मंगलवार को चिंता प्रकट करते हुए कहा कि यदि 2021-22 में ऐसी स्थिति से बचना है तो सरकार को अपनी गलतियां स्वीकार करते हुए विपक्ष एवं अर्थशास्त्रियों की सलाह सुननी चाहिए.

मुख्य विपक्षी दल ने अर्थव्यवस्था की लिहाज से 2021-21 को पिछले चार दशक का ‘सबसे अंधकारमय’ साल करार दिया और यह आरोप भी लगाया कि ‘अर्थव्यवस्था में आपदा और आपदा में अवसर’ इस सरकार का ‘मास्टरस्ट्रोक’ है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री का ‘हॉल ऑफ शेम’ है: न्यूनतम जीडीपी, अधिकतम बेरोजगारी.’

इसी विषय को लेकर पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया, ‘विकास दर: -7.3, बेरोजगारी दर: 12 प्रतिशत. दूसरी लहर: 1 करोड़ नौकरियां खत्म. 2020: 97 प्रतिशत लोगों की आय घटी. पेट्रोल- 100 रुपये , सरसों का तेल- 200 रुपये और रसोई गैस- 809 रुपये. ‘अर्थव्यवस्था में आपदा और आपदा में अवसर’ यही मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक है.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा, ‘जिसका अंदाजा लगाया जा रहा था, वही हुआ. पिछले वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में 7.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.’

चिदंबरम ने कहा कि 2018-19 में जीडीपी 14,003,316 करोड़ थी. 2019-20 में यह 14,569,268 करोड़ रुपये थी और 2020-21 में यह घटकर 13,512,740 करोड़ रुपये हो गई. यह देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को बताता है.

उन्होंने दावा किया, ‘साल 2020-21 पिछले चार दशक में देश की अर्थव्यवस्था का सबसे अंधकारमय साल रहा है. चारों तिमाही के आंकड़े अर्थव्यवस्था की कहानी बयां करते हैं.’

चिदंबरम ने कहा, ‘पिछले साल जब कोरोना महामारी की पहली लहर धीमी पड़ती नजर आई तो वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की बातें करने लगे. हमने कहा था कि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन पैकेज की मजबूत मदद चाहिए.’

उन्होंने कहा कि सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद एक लाख रुपये से नीचे चला गया है.

चिदंबरम ने आरोप लगाया, ‘निश्चित तौर पर कोरोना महामारी का अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से असर पड़ा है, लेकिन अकुशल और अक्षम आर्थिक प्रबंधन ने अर्थव्यवस्था की स्थिति को और बिगाड़ दिया.’

उन्होंने कहा, ‘कोरोना की दूसरी लहर चल रही है. इसमें पहली लहर की तुलना में संक्रमण और मौतों की संख्या की लिहाज से ज्यादा नुकसान हुआ है. अगर 2020-21 की तरह साल 2021-22 को नहीं होने देना है तो सरकार को जागना चाहिए, अपनी गलतियां स्वीकार करनी चाहिए, अपनी नीतियां बदलनी चाहिए तथा विपक्ष एवं अर्थशास्त्रियों की सलाह स्वीकार करनी चाहिए.’

एक सवाल के जवाब में पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि अगर सरकार को लगता है कि नोट की छपाई होनी चाहिए तो वह कर सकती है, क्योंकि भारत के पास ऐसा करने का संप्रभु अधिकार है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)