यूपीः बसपा के दो वरिष्ठ नेता पार्टी से निष्कासित, विधानसभा में बचे सात विधायक

बसपा प्रमुख मायावती ने पंचायत चुनाव के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी के प्रमुख नेताओं लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को निष्कासित कर दिया है. पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीती थीं. निष्कासन के बाद विधानसभा में पार्टी के पास सात विधायक बचे हैं, जिनमें से एक मुख्तार अंसारी जेल में हैं.

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बसपा प्रमुख मायावती. (फोटो: पीटीआई)

बसपा प्रमुख मायावती ने पंचायत चुनाव के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी के प्रमुख नेताओं लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को निष्कासित कर दिया है. पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीती थीं. निष्कासन के बाद विधानसभा में पार्टी के पास सात विधायक बचे हैं, जिनमें से एक मुख्तार अंसारी जेल में हैं.

बसपा प्रमुख मायावती. (फोटो: पीटीआई)
बसपा प्रमुख मायावती. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊः उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से सिर्फ छह महीने पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने गुरुवार को पार्टी के प्रमुख नेताओं लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को पंचायत चुनावों के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से पार्टी से निष्कासित कर दिया.

इस निष्कासन के साथ ही विधानसभा में बसपा के पास सिर्फ सात विधायक बचे हैं, जिनमें से एक मुख्तार अंसारी जेल में हैं. पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव में 403 में से 19 सीटें जीती थीं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पूरा घटनाक्रम पर हालांकि वर्मा का कहना है कि वह बसपा में ही हैं और उनकी किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की कोई योजना नहीं है.

उनका कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि वह जल्द ही मायावती से मुलाकात कर उनसे मतभेद समाप्त कर देंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि बसपा से निष्कासित किए गए लोग तकनीकी रूप से अभी भी पार्टी के सदस्य बने हुए हैं क्योंकि मायावती ने अभी तक उनके बारे में विधानसभा अध्यक्ष को नहीं लिखित में कुछ नहीं दिया है.

वर्मा राज्य के अंबेडकरनगर जिले की कटेहरी सीट से पांच बार विधायक रह चुके हैं और विधानसभा में पार्टी नेता हैं जबकि राजभर अंबेडकरनगर के अकबरपुर से विधायक हैं.

हालांकि, मौजूदा समय में बसपा में राजभर के पास कोई पद नहीं है. वह पहले पार्टी के राज्य अध्यक्ष और इसके संयुक्त महासचिव रह चुके हैं. वह वर्मा की तरह बसपा सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं.

बसपा ने ऐलान किया था कि विधानसभा में पार्टी नेता के तौर पर वर्मा की जगह शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पदभार संभालेंगे. आलम मुबारकपुर और आजमगढ़ जिले से दो बार विधायक रह चुके हैं.

वर्मा का कहना है कि अंबेडकरनगर से नेता घनश्याम सिंह खरवार ने उनके बारे में मायावती को गलत जानकारी दी है.

उन्होंने कहा, ‘खरवार ने बहनजी को बताया कि मैंने पंचायत चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया और मैं दूसरी पार्टी में शामिल हो सकता हूं. पहली बात पंचायत चुनाव के दौरान मैं लखनऊ के एक अस्पताल में था और मैं किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं हो रहा. मैं अभी भी खुद को बसपा नेता मानता हूं. खरवार के उम्मीदवार पंचायत चुनाव में हार गए और अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए ही उन्होंने ऐसा कहा है.’

उन्होंने कहा कि वह मामले पर स्पष्टीकरण के लिए मायावती से बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आगे मौका मिलेगा.

वहीं, मायावाती का कहना है कि भविष्य में राम अचल और लालजी को कभी कोई चुनाव बसपा से नहीं लड़ाया जाएगा. उन्होंने पार्टी अधिकारियों को निर्देश दिया कि इन दोनों को पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में न बुलाया जाए.

इससे पहले जून 2016 में मायावती पर दलितों को धोखा देने और चुनावी टिकट के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाकर स्वामी प्रसाद मौर्या ने बसपा छोड़ दी थी.

मौर्या के अलावा ओबीसी नेता दारा चौहान और धर्मपाल सैनी ने पार्टी छोड़ दी थी. मई 2017 में बसपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता के लिए राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. उन पर वित्तीय गड़बड़ी का भी आरोप लगा था.

मौर्या अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं जबकि सिद्दीकी कांग्रेस में हैं.

सूत्रों का कहना है कि बाबू सिंह कुशवाहा, सिद्दीकी और मौर्या जैसे नेताओं के साथ जो भी क्या हुआ, उसे देखकर वर्मा अन्य पार्टी में शामिल होने को लेकर सचेत हैं.

सूत्रों का कहना है कि मौर्या के पास बेशक मंत्री पद हो लेकिन भाजपा में उनकी कोई अहमियत नहीं है जबकि कांग्रेस यूपी में अपने वजूद को लेकर काफी संघर्ष कर रही है.