सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के अधिकारियों को फ़रीदाबाद ज़िले के लकड़पुर खोरी गांव के निकट वन भूमि से सभी अतिक्रमण छह हफ़्त के भीतर हटाने और मामले की अगली सुनवाई तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि भूमि हथियाने वाले निष्पक्ष सुनवाई के लिए क़ानून के शासन का सहारा नहीं ले सकते हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हरियाणा और फरीदाबाद नगर निगम को एक गांव के निकट अरावली वन से सभी अतिक्रमण, जिनमें करीब 10 हजार रिहायशी निर्माण शामिल हैं, को हटाने के निर्देश दिए और कहा कि ‘भूमि हथियाने वाले कानून के शासन का सहारा’ लेकर ‘निष्पक्षता’ की बात नहीं कर सकते.
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने राज्य सरकार के अधिकारियों को फरीदाबाद जिले के लकड़पुर खोरी गांव के निकट वनभूमि से सभी अतिक्रमण छह हफ्ते के भीतर हटाने और मामले की अगली सुनवाई तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अप्रैल में जब फरीदाबाद नगर निगम ने खोड़ी गांव के घरों को ध्वस्त करना शुरू किया तो यहां के निवासियों ने सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
लगभग 300 घरों को गिराए जाने के बाद बाकी के 10,000 घरों में रहने वालों ने अपने घरों को ध्वस्त करने से पहले पुनर्वास की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
तब पीठ ने उन्हें ‘भूमि हथियाने वाला’ करार दिया था और उनकी सहायता के लिए आने से इनकार कर दिया था.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारे विचार से याचिकाकर्ता पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के निर्देशों से बंधा है.’
साथ ही पीठ ने यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को पुनर्वास संबंधी याचिका पर स्वतंत्र रूप से विचार करना चाहिए.
पीठ ने अतिक्रमण के कथित पांच आरोपियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘इसलिए हम राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को दिए गए निर्देशों को दोहराते हैं और उम्मीद करते हैं कि निगम वन भूमि से सभी अतिक्रमण छह सप्ताह के भीतर हटाकर अनुपालन रिपोर्ट पेश करेगा.’
वीडियो कॉन्फ्रेंस की जरिये हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि फरीदाबाद के पुलिस उपायुक्त की अतिक्रमण हटाने के काम में लगे निगम अधिकारियों को पुलिस सुरक्षा देने जिम्मेदारी है.
सुनवाई के दौरान पीठ ने उस प्रतिवेदन पर गौर किया कि अवैध तरीके से रह रहे लोगों के पास कोई और जगह नहीं है और राज्य को उन्हें हटाए जाने से पहले कहीं और बसाने के निर्देश दिए जाएं. इस पर पीठ ने कहा ‘भूमि हथियाने वाले निष्पक्ष सुनवाई के लिए कानून के शासन का सहारा नहीं ले सकते हैं.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, ‘हटाए जाने के तत्काल बाद लोगों को बसाया जाना चाहिए.’
इस पर पीठ ने कहा, ‘ये कौन कह रहा है? जमीन हथियाने वाले! जब आप अदालत में आते हैं तो ईमानदार बन जाते हैं और कानून को मानने वाले बन जाते हैं और बाहर आप कोई भी काम कानून के हिसाब से नहीं करते.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, ‘लोगों का पुनर्वास किया जाना चाहिए और आवास के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता है.’
इस पर पीठ ने कहा, ‘हमने फरवरी 2020 में एक अंतरिम आदेश पारित किया था और चूंकि यह वन भूमि का अतिक्रमण है, इसलिए इसे खाली करना होगा और यदि भविष्य में राज्य सरकार आपको समायोजित करना चाहती है जो राज्य पर निर्भर है.’
पीठ ने कहा कि वह नगर निगम से पूछेगी कि फरवरी 2020 के आदेश के बावजूद अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया गया? पीठ ने कहा कि जहां तक वन भूमि का सवाल है, नीति के बावजूद समझौता करने का कोई सवाल ही नहीं है.
याचिकाकर्ता वन भूमि पर रह रहे थे या नहीं, इस सवाल का हां में जवाब देने के बाद पीठ ने हरियाणा की ओर से पेश वकील से पूछा, ‘उन्हें क्यों नहीं हटाया गया?’
अदालत ने कहा, ‘पहले वन भूमि को साफ करना होगा. वन भूमि के संबंध में कोई रियायत नहीं. हमें कोविड के बहाने न दें. एक अनुपालन रिपोर्ट दर्ज करें.’
इस राज्य के वकील ने कहा, ‘अतिक्रमण हटाने का काम जारी है.’
पीठ ने कॉलिन गोंजाल्विस से याचिकाकर्ताओं को खुद जमीन खाली करने की सलाह देने को कहा, नहीं तो राज्य और नगर निगम जमीन खाली कर देंगे.
पीठ ने कहा, ‘कॉलिन गोंजाल्विस जब आप यहां आते हैं, तो आप कानून के शासन की बात करते हैं, क्या यही कानून का शासन है. आप वन भूमि हड़प लेते हैं और फिर आप एक नीति तैयार करने के लिए कहते हैं.’
पीठ ने कहा कि वह याचिका खारिज नहीं कर रही है और उसे लंबित कर रही है, क्योंकि वह चाहती है कि उसने आदेश का पालन हो. मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारीख तय की गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)