राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोविड-19 के कारण माता-पिता में से किसी एक या फ़िर दोनों को खोने वाले बच्चों में 15,620 लड़के, 14,447 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर शामिल हैं. इनमें से अधिकतर बच्चे आठ से 13 आयु वर्ग के हैं. महाराष्ट्र में ऐसे बच्चों की संख्या सर्वाधिक है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में और राजस्थान हैं.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विभिन्न राज्यों से पांच जून तक प्राप्त जानकारी के अनुसार, कोविड-19 महामारी के चलते कम से कम 30,071 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किए एक या फिर दोनों को खोया है.
आयोग ने कहा कि महामारी के चलते इनमें से 26,176 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया और 3,621 बच्चे अनाथ हो गए, जबकि 274 को उनके रिश्तेदारों ने भी त्याग दिया.
आयोग ने अदालत को यह भी बताया कि एक अप्रैल 2020 से पांच जून 2021 तक के ऐसे बच्चों के राज्यवार आंकड़े उसके बाल स्वराज पोर्टल पर दिए गए हैं, जिनके माता-पिता में से किसी की मौत हो चुकी है या वे माता-पिता दोनों को ही खो चुके हैं. हालांकि, पोर्टल पर मौत के कारणों का उल्लेख नहीं किया गया है.
महाराष्ट्र में प्रभावित बच्चों की संख्या सर्वाधिक 7,084 रही, जिनमें से अधिकतर ने महामारी के चलते अपने माता-पिता या माता-पिता में से किसी एक को खो दिया.
उच्चतम न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए गए इस मामले में आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि इसके अलावा अन्य राज्यों में भी बच्चे प्रभावित हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश में 3,172, राजस्थान में 2,482, हरियाणा में 2,438, मध्य प्रदेश में 2,243, आंध्र प्रदेश में 2,089, केरल में 2,002, बिहार में 1,634 और ओडिशा में 1,073 बच्चे शमिल हैं.
आयोग ने कहा कि प्रभावित होने वाले बच्चों में 15,620 लड़के, 14,447 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर शामिल हैं. इनमें से अधिकतर बच्चे आठ से 13 आयु वर्ग के हैं. एनसीपीसीआर ने कहा कि इस आयु वर्ग के 11,815 बच्चों को या तो छोड़ दिया गया या माता-पिता खो गए या अनाथ हो गए.
इसके अतिरिक्त 0-3 वर्ष की आयु के बीच के 2,902 बच्चे प्रभावित हुए, जबकि 4-7 वर्ष के समूह में 5,107 और 14-15 वर्ष के आयु वर्ग में 4,908 बच्चे प्रभावित हुए. इसमें कहा गया है कि 16 से 18 साल से कम उम्र के प्रभावित बच्चों की संख्या 5,339 है.
आयोग ने कहा कि इस हलफनामे में 31 मई को अदालत के सामने पेश किए गए आंकड़े भी शामिल हैं, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि 29 मई तक 9,346 बच्चे अनाथ हुए हैं.
The break-up given in the affidavit filed by the NCPCR is that there are 3,621 orphans, 26,176 children who have lost one parent and 274 children who have been abandoned. pic.twitter.com/zsksKlEbtL
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) June 8, 2021
आयोग ने एक बार फिर अदालत के समक्ष यह चिंता जाहिर की कि उसे पिछले कुछ महीनों में ऐसी कई शिकायतें मिली हैं, जिसमें कई निजी संगठनों और लोगों द्वारा ऐसे बच्चों का आंकड़ा एकत्र किए जाने के आरोप लगाए गए हैं.
ऐसे संगठन और लोग द्वारा प्रभावित बच्चों और परिवारों को मदद की पेशकश की गई है. आयोग ने कहा कि ऐसे लोग/संगठन गोद लेने संबंधी कानून का पालन किए बिना बच्चा गोद लेने के इच्छुक परिवारों को इन्हें सौंप रहे हैं.
आयोग ने कहा कि यहां किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत दी गई प्रक्रिया का पालन किए बिना ये सब किया जा रहा है. इस कानून के तहत बच्चे गोद लेने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इन नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों/संगठन के खिलाफ केंद्र एवं राज्य सरकारें कार्रवाई करें.
अनाथ हुए बच्चों की खातिर योजना की जानकारी देने के लिए केंद्र को और समय मिला
इसके अलावा केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों के लिए हाल ही में शुरू की गई ‘पीएम-केयर्स फॉर चिल्ड्रन’ योजना के तौर-तरीकों के बारे में अदालत को जानकारी देने की खातिर कुछ और समय चाहिए.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल और दिल्ली सहयोग नहीं कर रहे हैं और वे उन बच्चों की संख्या के बारे में ताजा आंकड़े नहीं दे रहे हैं, जिन्होंने कोरोना वायरस के कारण अपने अभिभावकों को खो दिया है.
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस एलएन राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ को सूचित किया कि वे ‘पीएम-केयर्स फॉर चिल्ड्रन’ योजना के तौर-तरीके तैयार करने के लिए राज्यों और मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘योजना के तौर-तरीकों के बारे में अदालत को अवगत कराने के लिए हमें कुछ और समय चाहिए, क्योंकि विचार-विमर्श अब भी जारी है. हमने उन बच्चों के लिए सीधे जिलाधिकारियों को जिम्मेदार बनाया है जो अनाथ हो गए हैं.’
पीठ ने कहा कि वह योजना को लागू करने के संबंध में तौर-तरीकों को तैयार करने के लिए केंद्र को कुछ और समय देने के पक्ष में है.
एनसीपीसीआर की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ से कहा कि पश्चिम बंगाल और दिल्ली से दिक्कत हो रही है, क्योंकि वे ऐसे बच्चों से संबंधित आंकड़े ‘बाल स्वराज’ पोर्टल पर नहीं डाल रहे हैं.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता चिराग श्राफ ने कहा कि उनके आंकड़े पूरी तरह से बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) द्वारा मुहैया कराए जाते हैं.
वहीं अन्य राज्यों में विभिन्न विभाग जिलाधिकारियों को आंकड़े मुहैया कराते हैं, जहां से आंकड़ों को पोर्टल पर अपलोड किया जाता है. उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह दिल्ली सरकार ने राजस्व और पुलिस जैसे विभिन्न विभागों को पत्र लिखकर उनसे आंकड़े देने को कहा था.
पीठ ने कहा कि अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी जिला स्तर पर कार्यबल होना चाहिए और सूचना मिलते ही उसे अपलोड करनी चाहिए तथा कार्यकल को बच्चों की तत्काल जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए.
पीठ ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल सरकार के वकीलों से कहा, ‘अदालत के आदेश की प्रतीक्षा न करें और सभी संबंधित योजनाओं का कार्यान्वयन करें.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इन राज्यों को फटकार लगाते हुए न्यायालय ने कहा, ‘आपने देखा कि हमने एक आदेश पारित किया है. हमने कहा है कि मार्च 2020 के बाद अनाथ बच्चों से संबंधित जानकारी इकट्ठा करें और विवरण अपलोड करें. अन्य सभी राज्यों ने इसे ठीक से समझ लिया है और जानकारी अपलोड कर दी है. इसमें ऐसा क्या है कि केवल पश्चिम बंगाल को ये आदेश समझ नहीं आ रहा है?’
पीठ ने पश्चिम बंगाल के वकील से कहा कि अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि मार्च 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों के बारे में जानकारी दिए जाने की जरूरत है.
मामले में न्याय मित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने पीठ से कहा कि ऐसे बच्चों की पहचान की प्रक्रिया तमिलनाडु के अलावा अन्य राज्यों में संतोषजनक रही है और तमिलनाडु में कोविड के संदर्भ में स्थिति कठिन है.
मालूम हो कि पिछले महीने 29 मई को केंद्र ने कोविड-19 महामारी से अनाथ बच्चों के लिए कई कल्याणकारी योजना की घोषणा की थी. ऐसे बच्चों को 18 साल की उम्र में मासिक छात्रवृत्ति और 23 साल की उम्र में पीएम केयर्स से 10 लाख रुपये का फंड मिलेगा.
इसके अलावा सरकार द्वारा उन बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी. उच्च शिक्षा के लिए उन्हें शिक्षा ऋण दिलवाने में मदद की जाएगी और पीएम केयर्स फंड इस लोन पर ब्याज का भुगतान करेगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)