साल 2020 में रेल की पटरियों पर हुई मौतों का कारण अतिक्रमण: रेलवे

हाल ही में आरटीआई आवेदन के जवाब में रेलवे ने बताया था कि साल 2020 में रेल की पटरियों पर 8,733 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर प्रवासी मज़दूर थे. रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा ने कहा है कि ये मौतें अतिक्रमण के कारण हुई हैं न कि रेल हादसों की वजह से. इनका रेलवे से कुछ लेना-देना नहीं है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

हाल ही में आरटीआई आवेदन के जवाब में रेलवे ने बताया था कि साल 2020 में रेल की पटरियों पर 8,733 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर प्रवासी मज़दूर थे. रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा ने कहा है कि ये मौतें अतिक्रमण के कारण हुई हैं न कि रेल हादसों की वजह से. इनका रेलवे से कुछ लेना-देना नहीं है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: साल 2020 में रेल की पटरियों पर 8,733 लोगों की मौत होने का मामला सामने आने के कुछ दिनों बाद बीते मंगलवार को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा ने कहा कि ये मौतें ‘अतिक्रमण’ के कारण हुई हैं, न कि रेल हादसों की वजह से.

प्रेस ब्रीफिंग में शर्मा ने उन उपायों के बारे में बताया, जो रेलवे ने बीते दो सालों में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए किए हैं.

उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में रेलवे ने 448 फुट ओवर ब्रिज का निर्माण किया है, जिससे रेल नेटवर्क में ऐसे पुलों की कुल संख्या 4,087 हो गई है. उन्होंने कहा कि पिछले सात सालों में 7,874 रोड ओवर ब्रिज का निर्माण किया गया है.

उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे की बड़ी लाइनों पर सभी 20,375 मानवयुक्त क्रॉसिंग फाटकों को समाप्त कर दिया गया है.

शर्मा ने कहा, ‘जिन मौतों का जिक्र किया गया है, यह अतिक्रमण से हुई हैं न कि रेल हादसों की वजह से. इनका रेलवे से कुछ लेना-देना नहीं है.’

मालूम हो कि एक आरटीआई के माध्यम से हाल ही में पता चला है कि साल 2020 में रेल की पटरियों पर 8700 से ज्यादा लोगों की ट्रेनों की चपेट में आने से मौत हो गई थी. हालांकि रेलवे ने महामारी की वजह से रेल सेवा को काफी कम किया है. अधिकारियों का कहना है कि इनमें से अधिकतर मृतक प्रवासी मजदूर थे.

रेलवे बोर्ड ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश के कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ के एक सवाल के जवाब में जनवरी से दिसंबर 2020 के बीच इस तरह की मौतों के आंकड़े साझा किए हैं.

अधिकारियों ने बताया था कि मृतकों में अधिकतर प्रवासी मजदूर थे, जिन्होंने पटरियों से होकर गुजरने का विकल्प इसलिए चुना था, क्योंकि इससे वे लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए पुलिस से बच सकते थे और उनका यह भी मानना था कि वे रास्ता नहीं भटकेंगे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राज्य सरकारों से संकलित रेलवे के आंकड़ों के अनुसार, 2016 और 2019 के बीच ऐसी घटनाओं में 56,271 लोग मारे गए और 5,938 घायल हुए. 2017 को छोड़कर हर साल इन मौतों में क्रमश: बढ़ोतरी हुई है.

आंकड़े बताते हैं कि 2016 में इस तरह की दुर्घटनाओं में 14,032 लोगों की जान गई, 2017 में 12,838, 2018 में 14,197 और 2019 में 15,204 लोगों की मौत हुई.

हालांकि, रेलवे इन मौतों को रेलवे दुर्घटनाएं नहीं मानता है.

रेलवे द्वारा मौतों के आंकड़ों को तीन श्रेणियों में रखा जाता है- परिणामी दुर्घटनाएं, अतिक्रमण और अप्रिय घटनाएं.

अप्रिय घटनाओं या अतिक्रमण की श्रेणी में आने वाली मौतों की राज्य पुलिस द्वारा जांच की जाती है. पीड़ितों को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा मुआवजा भी दिया जाता है.

रेलवे की ओर से कुछ मामलों में पीड़ितों के परिजनों को सहानुभूति के आधार पर अनुग्रह राशि भी दी है.

बहरहाल नव विकसित रेलवे स्टेशनों पर सुविधा शुल्क के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में शर्मा ने कहा कि इस तरह का शुल्क लगाने पर चर्चा की जा रही है, लेकिन अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है. रेलवे द्वारा इस तरह के शुल्क लगाने की संभावना पर जनता के एक वर्ग ने आलोचना की है.

शर्मा ने यह भी कहा कि कोरोनो वायरस की स्थिति बेहतर होने के साथ ही रेलवे अपने परिचालन को सामान्य करने के लिए तैयार है.

उन्होंने कहा कि इसकी समय सीमा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि महामारी अब भी एक वास्तविकता है.

फिलहाल प्रतिदिन औसतन 889 विशेष मेल एक्सप्रेस ट्रेनें चल रही हैं, जबकि प्रतिदिन 2,891 उपनगरीय सेवाएं संचालित की जा रही हैं. वहीं 479 यात्री सेवाओं का संचालन किया जा रहा है.

शर्मा ने कहा, ‘मांग के अनुसार ट्रेन सेवाएं प्रदान की जाती रहेंगी.’

उन्होंने यह भी कहा कि ट्रेनों की मांग बढ़ी है और पिछले महीने पांच लाख यात्रियों ने सफर किया था, जो इस महीने बढ़कर 13 लाख हो गया है.

शर्मा ने कहा कि अतिरिक्त भीड़ को देखते हुए अप्रैल-मई-जून 2021 के दौरान 500 अतिरिक्त ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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