गुजरात सरकार ने मनरेगा को सराहा, महामारी के दौरान श्रमिकों के लिए ‘जीवन रक्षक’ बताया

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रमिक शहरों में जितना कमा रहे थे, उसके मुकाबले मनरेगा की दिहाड़ी काफी कम है, इसके बावजूद कोविड-19 से उत्पन्न संकट के दौरान यह उनके और उनके परिवार के पालन-पोषण में मददगार रही है.

/
(फोटो: रॉयटर्स)

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रमिक शहरों में जितना कमा रहे थे, उसके मुकाबले मनरेगा की दिहाड़ी काफी कम है, इसके बावजूद कोविड-19 से उत्पन्न संकट के दौरान यह उनके और उनके परिवार के पालन-पोषण में मददगार रही है.

Labourers load a truck as they try to revive a dried lake under the National Rural Employment Guarantee Act (NREGA) at Ibrahimpatnam, on the outskirts of Hyderabad, June 17, 2009. The government has started a pilot project to quantify climate benefits from the NREGA, the anti-poverty scheme that could become one of the country's main weapons to fight criticism it is not doing enough to tackle global warming. The flagship anti-poverty plan, started three years ago, provides 100 days of employment every year to tens of millions of rural poor, a move that partly helped the Congress party-led coalition return to power in a general election. REUTERS/Krishnendu Halder (INDIA ENVIRONMENT BUSINESS EMPLOYMENT) - RTR24QZU
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: गुजरात की भाजपा सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना की तारीफ करते हुए कहा है कि लॉकडाउन के कारण पिछले साल अपने गांवों में लौटे प्रवासी कामगारों के लिए यह ‘जीवन रक्षक’ साबित हुई है.

राज्य सरकार ने ‘गुजरात में ऊर्जा, उत्सर्जन, पर्यावरण और विकास पर कोविड-19 के प्रभाव’ रिपोर्ट में मनरेगा योजना की तारीफ की है. मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने बीते शनिवार को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर यह रिपोर्ट जारी की थी.

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र में न्यूनतम दिहाड़ी पर लोगों को रोजगार देने की गारंटी योजना है. कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2006 में इसकी शुरुआत की थी.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘रोजगार गारंटी की मनरेगा योजना कोविड-19 महामारी के बाद घर लौटने को मजबूर हुए श्रमिकों के लिए जीवन रक्षक साबित हुई है.’

इसमें कहा गया है कि ये श्रमिक शहरों में जितना कमा रहे थे, उसके मुकाबले मनरेगा की दिहाड़ी काफी कम है, इसके बावजूद कोविड-19 से उत्पन्न संकट के दौरान यह उनके और उनके परिवार के पालन-पोषण में मददगार रही है.

गुजरात के जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा आईआईएम अहमदाबाद और आईआईटी गांधीनगर के साथ मिलकर तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी 224 रुपये प्रतिदिन है, जो पहले 198 रुपये प्रतिदिन हुआ करती थी. इसका एक बेहतर पहलू ये रहा कि गांव में रहने के चलते लोगों को पैसे बचाने में मदद मिली, जो ट्रेवेलिंग और किराए पर खर्च होती थी.’

रिपोर्ट में आदिवासी बहुल दाहोद जिले के गांवों के उदाहरणों के माध्यम से ये बताया गया है कि किस तरह मनरेगा ने महामारी के बीच सकारात्मक भूमिका निभाने में मदद की है. पिछले साल कोरोना लॉकडाउन के बाद करीब एक लाख प्रवासी मजदूर दाहोद में लौटे थे.

मनरेगा की महत्ता को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल इस योजना के लिए अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था. इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला था.

रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात में दाहोद जिले में सबसे ज्यादा 2.38 लाख लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला था. इसके बाद भावनगर में 77,659 और नर्मदा में 59,208 लोगों को मनरेगा में काम मिला था.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कृषि कुछ आय प्रदान करके प्रवासी श्रमिकों को कोविड संकट से बचाने में सक्षम रही है. गांवों में प्रवासियों की वापसी से खेतिहर मजदूरों की कमी को दूर करने में भी मदद मिली.’

सौराष्ट्र में प्रवासी श्रमिकों के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘ये प्रवासी ज्यादातर सूरत में हीरा क्षेत्र से जुड़े थे, और गांवों में भूमि जोत वाले प्रवासी परिवारों ने भूमि जुताई गतिविधियों का विकल्प चुना था, जबकि अन्य ने खेतिहर मजदूरी का काम किया है.’

सूरत में 12 लाख से अधिक हीरा श्रमिक सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात से हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को प्रवास के समाधान के रूप में ‘कृषि को प्राथमिकता’ देनी चाहिए.

इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी में लगाए गए लॉकडाउन से पैदा हुई आर्थिक तंगी से निपटने के लिए मनरेगा को मजबूती दी जानी चाहिए.

उन्होंने ग्रामीण इलाकों में मनरेगा से लोगों को मदद मिलने से जुड़ी खबरों का हवाला देते हुए कहा कि इस समय जनहित सबकी जिम्मेदारी है.

कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया, ‘देश के कमज़ोर वर्ग को अबकी बार भी मनरेगा से राहत मिल रही है. लॉकडाउन से पैदा हुई आर्थिक तंगी से निबटने के लिए इस योजना को और मजबूत करना जरूरी है. सरकार किसी की भी हो, जनता भारत की है और जनहित हमारी ज़िम्मेदारी है.’

कांग्रेस ने कुछ महीने पहले भी सरकार से आग्रह किया था कि मनरेगा का बजट बढ़ाया जाए ताकि रोजगार छिन जाने के कारण शहरों से गांवों का रुख करने वाले ज्यादा से ज्यादा लोगों को जीविका का साधन मिल सके.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)