बीते 28 मई को केंद्र की मोदी सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के 13 ज़िलों में रह रहे अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने के लिए निर्देश दिया था. इस अधिसूचना को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है.
नई दिल्ली: केंद्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रहने वाले गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने की खातिर आमंत्रित करने की अधिसूचना संशोधित नागरिकता कानून, 2019 (सीएए) से संबंधित नहीं है.
इसके साथ ही केंद्र ने कहा कि यह (अधिसूचना) केंद्र सरकार के पास निहित शक्ति स्थानीय अधिकारियों को सौंपने की प्रकिया मात्र’ है.
गृह मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2004, 2005, 2006, 2016 और 2018 में भी इसी तरह का अधिकार दिया था और विभिन्न विदेशी नागरिकों के बीच उस पात्रता मानदंड के संबंध में कोई छूट नहीं दी गई है, जो नागरिकता कानून 1955 और उसके तहत बनाए गए नियमों में निर्धारित है.
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि 28 मई, 2021 की अधिसूचना सीएए से संबंधित नहीं है, जिसे कानून में धारा 6बी के रूप में प्रविष्ट किया गया है. यह सिर्फ केंद्र सरकार के अधिकार स्थानीय अधिकारियों को सौंपने के लिए है.
हलफनामे में कहा गया है कि यह और अधिक जिलों के जिलाधिकारियों तथा अधिक राज्यों के गृह सचिवों को नागरिकता प्रदान करने के लिए शक्ति दिए जाने के संबंध में है.
गृह मंत्रालय ने कह कि उक्त अधिसूचना में विदेशियों को कोई छूट नहीं दी गई है और केवल उन विदेशी लोगों पर लागू होती है, जिन्होंने कानूनी रूप से देश में प्रवेश किया है.
मालूम हो कि बीते 28 मई को केंद्र की मोदी सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने के लिए निर्देश दिया था.
केंद्रीय गृह मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, इस आदेश को नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता नियम 2009 के तहत जारी किया गया था, क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) के तहत इसके नियमों का मसौदा अभी तक तैयार नहीं किया गया है.
भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिहाज से वो लोग योग्य होंगे, जो इस समय गुजरात के मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा, छत्तीसगढ़ में दुर्ग और बलोदबाजार, राजस्थान में जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही तथा हरियाणा के फरीदाबाद और पंजाब के जालंधर में रह रहे हैं.
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने बीते एक जून को उच्चतम न्यायालय में केंद्र की अधिसूचना को चुनौती दी थी. आईयूएमएल की याचिका में दलील दी गई थी कि सीएए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली आईयूएमएल द्वारा दायर लंबित याचिका में केंद्र न्यायालय को दिए गए आश्वासन को दरकिनार करने की कोशिश कर रहा है.
याचिका में जब तक सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका अदालत में लंबित है, केंद्र को गृह मंत्रालय द्वारा जारी 28 मई के आदेश पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
28 मई की अधिसूचना के द्वारा सरकार ने ऐसे मामलों में 13 जिलों- गुजरात के मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा, छत्तीसगढ़ में दुर्ग और बलोदबाजार, राजस्थान में जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही तथा हरियाणा के फरीदाबाद और पंजाब के जालंधर के कलेक्टरों को नागरिकता प्रदान करने की अपनी शक्ति सौंप दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिसूचना में कहा गया है कि इस तरह अब 29 जिलों के जिला कलेक्टर और 9 राज्यों के गृह सचिव विदेशियों की निर्दिष्ट श्रेणी को नागरिकता देने के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों का प्रयोग करेंगे. इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने किसी भी समय इन शक्तियों का एक साथ उपयोग करने का अपना अधिकार बरकरार रखा है.
इसी तरह की अधिसूचना 2018 में कई राज्यों के अन्य जिलों के लिए भी जारी की गई थी. 2018 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों के कलेक्टर और गृह सचिवों को भी इसी तरह की शक्तियां दी थीं.
मालूम हो कि 11 दिसंबर 2019 को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद से देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही ये विधेयक कानून बन गया.
इसके तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है बशर्ते ये 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हों.
वर्ष 2019 में जब सीएए लागू हुआ तो देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ और इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बीच 2020 की शुरुआत में दिल्ली में दंगे हुए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)