सीवान निवासी व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटों गिरीश (24) और सतीश (18) का अपहरण करके तेज़ाब से नहलाकर उनकी हत्या कर दी गई थी.
पटना: पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 के बहुचर्चित तेज़ाब हत्याकांड मामले में राजद के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की उम्रक़ैद की सज़ा को बुधवार को बरक़रार रखी. न्यायमूर्ति केके मंडल और न्यायमूर्ति संजय कुमार ने सीवान की एक विशेष अदालत के फैसले के ख़िलाफ़ शहाबुद्दीन द्वारा दायर याचिका ख़ारिज़ कर दी.
13 साल पहले एक निमार्णाधीन मकान को लेकर हुए विवाद के बाद सीवान निवासी व्यवसायी चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के दो पुत्रों गिरीश (24) और सतीश (18) का अपहरण करके तेज़ाब से नहलाकर उनकी हत्या कर दी गई थी.
गिरीश और सतीश के बड़े भाई राजीव रौशन ने 6 जून 2011 को स्वयं को इस घटना का चश्मदीद गवाह बताते हुए विशेष अदालत में अपना बयान दर्ज कराया था. राजीव ने खुलासा किया था कि उसके दो भाइयों का ही नहीं बल्कि उन्हें भी उनके साथ अपहृत किया गया था और उनके दोनों भाइयों की हत्या उसकी आंखों के सामने पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में तेजाब से नहलाकर की गई थी.
चश्मदीद ने यह भी बयान दिया था कि वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागे थे और गोरखपुर में लुक छिपकर अपना गुज़र-बसर कर रहे थे.
राजीव की 16 जून 2014 को सीवान में डीएवी मोड़ पर ओवरब्रिज के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
इस मामले में चंदा बाबू द्वारा मोहम्मद शहाबुद्दीन के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराए जाने पर सीवान की एक विशेष अदालत ने 2015 में शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.
शहाबुद्दीन को गत फरवरी महीने में सीवान जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल स्थानांतरित कर दिया गया था. चंदा बाबू और पत्रकार राजीव रंजन की पत्नी आशा रंजन ने राजद नेता शहाबुद्दीन को सीवान जेल से शिफ्ट किए जाने की याचिकाएं दायर की थीं.
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुरोध किया था कि शहाबुद्दीन के खिलाफ लंबित मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई के लिए उन्हें सीवान जेल से राज्य के बाहर किसी दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया जाए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)