पाकिस्तान में दो बार प्रधानमंत्री रहीं बेनज़ीर भुट्टो की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी के लियाक़त बाग में एक चुनावी रैली के दौरान हत्या कर दी गई थी.
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में एक आतंकवाद निरोधक अदालत ने करीब एक दशक पुराने बेनज़ीर भुट्टो हत्याकांड मामले में पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ़ को भगोड़ा घोषित किया और दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले में आपराधिक लापरवाही बरतने के लिए 17 साल जेल की सज़ा सुनाई.
पाकिस्तान में दो बार प्रधानमंत्री रहीं बेनज़ीर भुट्टो की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी के लियाक़त बाग में एक चुनावी रैली के दौरान हत्या कर दी गई थी. हत्या के तत्काल बाद मामला दर्ज किया गया था जिसकी सुनवाई तकरीबन एक दशक बाद बुधवार को रावलपिंडी में ख़त्म हुई. सुनवाई के दौरान कई उतार-चढ़ाव आए. हत्या के समय बेनज़ीर की उम्र 54 साल थी.
आतंकवाद निरोधक अदालत के न्यायाधीश असगर खान ने गुरुवार को इस मामले में फैसला सुनाया. उन्होंने मुशर्रफ़ को भगोड़ा घोषित किया और उनकी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया. मुशर्रफ़ पिछले साल से उपचार के नाम पर दुबई गए थे जिसके बाद से वह वहीं रह रहे हैं.
अदालत में रावलपिंडी के पूर्व सीपीओ सउद अजीज़ और रावल टाउन के पूर्व पुलिस अधीक्षक ख़ुर्म शहज़ाद मौजूद थे. अजीज़ और शहज़ाद को 17 साल जेल की सज़ा सुनाई गई. अजीज़ पर बेनज़ीर को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराने का आरोप था. अदालत ने उन्हें पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना अदा करने का भी निर्देश दिया.
अदालत ने पांच अन्य आरोपियों को बरी कर दिया जो आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के संदिग्ध बताए गए थे. बेनजीर की हत्या के बाद गिरफ्तार किए गए ये पांचों संदिग्ध- रफाक़त हुसैन, हसनैन गुल, शेर ज़मान, ऐतजाज़ शाह और अब्दुल राशिद जेल में हैं.
जब बेनज़ीर की हत्या की गई थी तब परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे और वह भी बेनज़ीर मामले में एक आरोपी थे. पांचों संदिग्धों के ख़िलाफ़ मुख्य सुनवाई जनवरी 2008 में शुरू हुई जबकि मुशर्रफ़, अजीज़ तथा शहज़ाद के ख़िलाफ़ सुनवाई फेडरल इंवेस्टिगेशन एजेंसी की नई जांच के बाद 2009 में शुरू की गई.
पांचों संदिग्धों के ख़िलाफ़ मुख्य सुनवाई जनवरी 2008 में शुरू हुई जबकि मुशर्रफ़, अजीज़ और शहज़ाद के ख़िलाफ़ सुनवाई संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) की नई जांच के बाद 2009 में शुरू की गई. इस अवधि में आठ अलग-अलग न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की जिन्हें विभिन्न कारणों से बदला भी गया.
बेनज़ीर की हत्या के लिए शुरू में टीटीपी के प्रमुख बैतुल्ला मेहसूद को ज़िम्मेदार ठहराया गया था. मुशर्रफ़ की सरकार ने मेहसूद की एक अन्य व्यक्ति के साथ बातचीत का टेप जारी किया जिसमें वह हत्या के लिए व्यक्ति को बधाई देते हुए पाया गया था.
दैनिक जागरण के मुताबिक एफआईए के मुख्य अधिवक्ता मोहम्मद अज़हर चौधरी ने प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के पूर्व मुखिया व एक मौलाना के बीच बातचीत के ऑडियो रिकॉर्ड के प्रमाण तथा फोन कॉल्स के सबूतों को ख़ारिज कर दिया जिसमें बेनज़ीर की हत्या के लिए आतंकियों को बधाई दिया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि मुशर्रफ़ ने जांचकर्ताओं को गुमराह करने और अपने आपको बचाने के लिए यह कहानी गढ़ी है. चौधरी ने दावा किया कि जनरल मुशर्रफ़ ने अपने सहयोगी रिटायर्ड ब्रिगेडियर जावेद इकबाल चीमा के ज़रिये मनगढंत कहानी बनाई. उनके अनुसार, जनरल मुशर्रफ भी आरोपी थे और बेनजीर की हत्या के लिए साजिश की थी.
बता दें कि पीपीपी सरकार ने 2009 में बेनज़ीर हत्याकांड में फिर से जांच के आदेश दिए और एफआईए ने जनरल मुशर्रफ़, सऊद अजीज़ और एसएसपी खुर्रम शहज़ाद को आरोपी बताया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)