सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि सबसे ज़्यादा उम्रदराज़ या बुज़ुर्ग क़ैदियों ख़ासकर 70 साल से अधिक उम्र के क़ैदियों के संक्रमित होने का ज़्यादा ख़तरा है. कुछ अपवादों को छोड़कर कुछ राज्यों ने वायरस के घातक प्रभावों के बावजूद वृद्ध क़ैदियों की रिहाई के संबंध में आवश्यक क़दम नहीं उठाए हैं.
नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों के हितों की रक्षा के लिए उन्हें अंतरिम जमानत या आपात परोल पर रिहाई के लिए तत्काल कदम उठाने को लेकर केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया है.
पाटकर ने कहा कि उन्होंने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों और उच्चाधिकार प्राप्त समिति को एक समान व्यवस्था बनाने को लेकर निर्देश के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया है, ताकि 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों की रिहाई से देश की जेलों में भीड़भाड़ कम हो.
अधिवक्ता विपिन नैयर के जरिये दाखिल अपनी याचिका में पाटकर ने कहा, ‘नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि कोई भी किसी राष्ट्र को तब तक सही मायने में नहीं जानता जब तक कि वह वहां की जेलों के भीतर की हकीकत न जान ले. लगभग 27 वर्षों तक जेल में बंद रहे इस महान नेता का दृढ़ विश्वास था कि किसी राष्ट्र का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं किया जाना चाहिए कि वह अपने शीर्ष नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है, बल्कि अपने निम्नतम नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है.’
उन्होंने अपनी याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित जेल आंकड़ों को हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि भारत में जेलों में सजा प्राप्त कुल कैदियों में 19.1 प्रतिशत की उम्र 50 साल और उससे अधिक है.
याचिका में कहा गया, ‘इसी तरह 50 साल या इससे अधिक उम्र के 10.7 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं. पचास या इससे अधिक उम्र के के कुल 63,336 कैदी (जेल में बंद कुल कैदियों का 13.2 प्रतिशत) हैं.’
याचिका में कहा गया कि 16 मई को राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल के मुताबिक, 70 और इससे अधिक उम्र के 5,163 कैदी हैं. इनमें महाराष्ट्र, मणिपुर और लक्षद्वीप के आंकड़े नहीं हैं.
मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने 23 मार्च, 2020 को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करने को कहा था, जिन्हें आपात परोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सके.
याचिका में कहा गया कि 13 अप्रैल, 2020 को न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों से कैदियों की अनिवार्य रिहाई का निर्देश नहीं दिया था और पूर्व के निर्देश का मतलब यह सुनिश्चित करना था कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश, देश में मौजूदा महामारी के संबंध में अपने यहां की जेलों में हालात का आकलन करें और कुछ कैदियों को छोड़ें तथा रिहा किए जाने वाले कैदियों की श्रेणी बनाएं.
याचिका में कहा गया कि निर्देश के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने समितियों का गठन किया और अधिकतर समितियों ने अपराध की गंभीरता और कैदियों को जमानत मिलने पर इसका दुरुपयोग होने की आशंका को ध्यान में रखते हुए श्रेणी बनाई. ज्यादातर वर्गीकरण कैदियों की सामाजिक स्थिति और प्रशासनिक सहूलियत के आधार पर हुआ और संक्रमण के ज्यादा खतरे की आशंका को ध्यान में नहीं रखा गया.
याचिका में कहा गया कि सबसे ज्यादा उम्रदराज या बुजुर्ग कैदियों खासकर 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों के संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है. हालांकि, उच्चाधिकार प्राप्त कुछ समितियों ने ही उम्रदराज कैदियों को छोड़ने के लिए कदम उठाए.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, याचिका में बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के मुद्दे पर विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए गए रुख का ब्योरा देते हुए कहा गया है कि गुजरात और राजस्थान के आंकड़े सबसे खराब हैं.
राजस्थान के संबंध में यह कहा गया है कि केंद्रीय कारागारों में वृद्ध कैदियों की संख्या राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, कुल कैदियों की संख्या 9,679 है, जिनमें 50-60 वर्ष के 612 कैदी हैं, 60-70 वर्ष के 309 कैदी और 70 वर्ष से अधिक आयु के 84 कैदी हैं.
इसी तरह गुजरात में 14,764 कैदी हैं. इनमें 50-60 वर्ष के 1,009 कैदी हैं, 60-70 वर्ष के 348 और 70 से अधिक आयु के 90 कैदी हैं.
याचिका में कहा गया है कि गुजरात और राजस्थान की जेलें निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं. उनकी आधिकारिक स्वीकृत क्षमता की तुलना में कैदियों की संख्या ज्यादा है.
याचिका में कहा है, ‘इस तरह इस बात की पूरी संभावना है कि राज्य भर की जेलों में बुजुर्ग कैदियों का छोटा वर्ग संक्रमण का शिकार हो जाएगा. हालांकि राजस्थान और गुजरात राज्यों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने कैदियों को रिहा करने का निर्देश दिया है. न्यायालय के निर्देशों के अनुसार बुजुर्ग कैदियों को संक्रमण की चपेट में आने से बचाने लिए रिहा करने पर विचार करने की आवश्यकता है.’
याचिका में कहा है कि कुछ अपवादों को छोड़कर कुछ राज्यों ने वायरस के घातक प्रभावों के बावजूद वृद्ध कैदियों की रिहाई के संबंध में आवश्यक कदम नहीं उठाए हैं.
इसमें कहा है कि, ‘विभिन्न राज्यों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा इस संबंध में कोई एकरूपता नहीं है और यह भी प्रतीत होता है कि राज्यों द्वारा उन जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए कोई समान मानदंड नहीं अपनाया गया है जहां बुजुर्ग कैदी हैं.’
याचिका में केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि जो बुजुर्ग कैदी अस्थायी रिहाई का लाभ उठाने के इच्छुक नहीं हैं, उन्हें सबसे कम भीड़भाड़ वाली जेलों में स्थानांतरित किया जाए और यदि संभव हो तो पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के साथ जेल खोलें जाएं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)