प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई सर्वदलीय बैठक के बाद कुछ नेताओं ने कहा था कि इस सरकार से अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद रखना बेवकूफ़ी होगी. जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री मुज़फ़्फ़र हुसैन बेग का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत यहां के नागरिकों को कुछ विशेषाधिकार दिए जा सकते हैं. इस अनुच्छेद के तहत नगालैंड, मिजोरम सहित उत्तरपूर्व के कई राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में यह सुझाव रखा था कि अनुच्छेद 371 में संशोधन करके यहां के नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार दिए जा सकते हैं.
संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश सहित उत्तर-पूर्व के कई राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कभी पीडीपी के साथ रहे मुजफ्फर हुसैन बेग का यह सुझाव अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की चुनौती और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित कुछ पार्टियों द्वारा यह स्वीकार किए जाने की पृष्ठभूमि में आया है कि इस सरकार से यह उम्मीद करना बेवकूफी होगी कि वह अनुच्छेद 370 को जम्मू कश्मीर में वापस लागू करें.
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बैठक के लिए आमंत्रित किए गए जम्मू कश्मीर के 14 नेताओं में से एक बेग ने कहा, ‘अनुच्छेद 35 ए के तहत जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों को डोमिसाइल अधिकार दिए गए थे. मेरा मानना है कि अगर आपको सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 से संबंधित मुकदमे के लंबित रहने की समस्या है तो संसद अनुच्छेद 371 का सहारा ले सकती है. अनुच्छेद 35 ए में संशोधन कर पहले दिए गए अधिकारों को 371 के तहत लाया जा सकता है.’
अनुच्छेद 35 ए को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिये लागू किया गया था और यह अनुच्छेद 370 से ही निकला है. यह जम्मू कश्मीर के स्थानीय निवासियों को विशेष अधिकार देकर विधायिका को सशक्त बनाता है.
बेग ने कहा, ‘अनुच्छेद 35 ए के कुछ प्रावधानों को अनुच्छेद 371 में जोड़ा जा सकता है. इस तरह जम्मू कश्मीर के नागरिकों को वही समान विशेष अधिकार मिल सकते हैं, जो पहले थे. इन अधिकारों को अनुच्छेद 371 में संशोधन कर दोबारा लागू किया जा सकता है.’
बेग के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘मुझे जम्मू कश्मीर पर इसके प्रभावों का अध्ययन करने का मौका नहीं मिला है.’
बेग ने कहा कि वह विस्तार में नहीं जाएंगे कि आखिर किस तरह अनुच्छेद 371 में एक अतिरिक्त खंड जोड़कर अनुच्छेद 35 ए के सार को उसमें शामिल किया जाए.
बेग ने राज्य का दर्जा बहाल करने पर कहा कि संविधान का अनुच्छेद तीन, जो केंद्रशासित प्रदेश का सृजन करने पर है, उसमें पूरे राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील करने का प्रावधान नहीं है बल्कि एक या अधिक राज्यों में से एक केंद्रशासित प्रदेश बनाने का प्रावधान है.
उन्होंने कहा, ‘जम्मू कश्मीर के संबंध में एक जरूरत यह भी है कि राज्य विधायिका की सहमति कि बिना जम्मू कश्मीर के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या राज्य का नाम एवं सीमा बदलने का कोई भी विधेयक अस्तित्व में नहीं आ सकता.’
बेग ने कहा कि इन दो कारणों से दो केंद्रशासित प्रदेशों की स्थापना कानूनी रूप से चुनौती देने योग्य है. उन्होंने कहा, ‘इन कारणों की वजह से केंद्रीय गृहमंत्री ने संसद को आश्वासन दिया था कि जम्मू कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. हमें उनकी मंशा पर शक नहीं करना चाहिए. आइए इस धारणा के साथ आगे बढ़े कि संसद के समक्ष किया गया संकल्प जितनी जल्दी हो सके पूरा किया जाएगा.’
प्रधानमंत्री के साथ बातचीत को चर्चा का माहौल बनाने की दिशा में पहला कदम बताते हुए पीडीपी के पूर्व नेता ने कहा कि बैठक में संवैधानिक मुद्दों से निपटा नहीं जा सकता था.
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने हमारे मुद्दे सुने लेकिन उन्होंने राज्य के मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. गृहमंत्री का संकल्प पहले ही संसद के पटल पर दर्ज है.
पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग का यह सुझाव अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर आ रही चुनौतियों के बीच आया है और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित कुछ दलों ने इससे सहमति भी जताई है कि इस सरकार से जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली करने की उम्मीद करना बेवकूफी होगा.
बता दें कि पीडीपी के संस्थापक सदस्य मुजफ्फर हुसैन बेग ने पिछले साल जम्मू कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव में सीट बंटवारे में असहमति को लेकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.