बीते दिनों यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों को 18 वर्ष से अधिक आयु समूह के लिए मुफ़्त टीकाकरण शुरू करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने वाले बैनर लगाने कहा है.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों को वैक्सीन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने वाले बैनर लगाने को कहा है.
विश्वविद्यालय एक स्वायत्त संस्था है और शिक्षकों और विद्यार्थियों का काम सरकार के कार्यक्रमों का गुणगान करना नहीं है. विश्वविद्यालय की मूल अवधारणा सत्य की खोज और आलोचनात्मक विचार (क्रिटिकल थिंकिंग) विकसित करना है. यही कारण है कि विश्वविद्यालयों को राज्यों के हस्तक्षेप की परिधि से बाहर रखा गया.
इसी आलोचनात्मक विचार के मद्देनज़र विश्वविद्यालय निम्नलिखित कारणों से ‘थैंक्यू मोदी’ नहीं कह सकते:
– निशुल्क वैक्सीन कोई चैरिटी नहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी दे रहे हैं बल्कि यह सभी नागरिकों का अधिकार है. जिस पैसे से नागरिकों को ‘फ्री’ वैक्सीन दी जा रही है वो पैसे भी लोगों का ही है न कि प्रधानमंत्री का. पहले भी भारत के नागरिकों को निशुल्क टीका मिलता रहा है. दुनिया के कई देशों में निशुल्क टीकाकरण की व्यवस्था है. क्या नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए भी मोदी जी को धन्यवाद दें?
– यह सर्वविदित है कि जनता के दबाव, विपक्षी पार्टियों की आलोचना और सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद केंद्र सरकार ने केंद्रीकृत टीकाकरण के दिशा में कदम उठाया. तो क्या वैक्सीन की ख़रीददारी को लेकर महीनों तक कोर्ट-कचहरी करने और राज्य सरकारों पर ठीकरा फोड़ने के लिए भी मोदी जी को थेंक्यू कहा जाए?
– यह अजीब विडंबना है कि आज जिस टीके का क्रेडिट मोदी जी लेना चाह रहे उसी को अगर समय रहते लगवा दिया गया होता, तो शायद लाखों लोगों की जान बच सकती थी. इन जान गंवाने वालों में विश्वविद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी और कर्मचारी सभी शामिल हैं. आज जो अपने बीच नहीं रहे, क्या इस बात के लिए भी मोदी जी को शुक्रिया कहें?
– क्या ‘थैंक्यू’ इस बात के लिए बोला जाए कि वैक्सीन कूटनीति के तहत दूसरे देशों को वैक्सीन भेज अपने नागरिकों का बलि चढ़ाकर मोदी जी ‘विश्व गुरु’ बनने चले थे.
– स्वदेशी टीका बनाने का श्रेय देश के वैज्ञानिकों को जाता है. वैक्सीन उत्पादन की दिशा मे लंबे समय से वैज्ञानिक अनुसंधान चल रहा है. आज इन्हीं अनुसंधानों का नतीजा है कि देश में कम समय में कोरोना का टीका बनकर तैयार हो गया. क्या लंबे अरसे से चल रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए भी वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद कहा जाए?
– आज विश्वविद्यालयों का फंड कम किया जा रहा है. यह विश्वविद्यालय ही हैं जहां से वैज्ञानिक अनुसंधानों की नींव पड़ती है. रिसर्च की बदौलत ही दवाओं और टीकों के प्रभावों को लेकर काम किया जाता है. तो क्या मोदी जी को इस बात के लिए धन्यवाद कहा जाए कि उन्होंने फंड कट करके अनुसंधानों की संभावनाओं को सीमित कर दिया ?
– और फिर जनता के पैसे से ‘थेंक्यू मोदी’ का आयोजन क्यों? क्या विश्वविद्यालय और स्कूल में जनता के पैसे से इस तरह का आयोजन उचित है? एक तरफ कोरोना का हवाला देकर बहुत सारे मदों में कटौती की जा रही है ,वहीं इस तरह के पब्लिसिटी स्टंट के लिए मोदी जी को शुक्रिया कहा जाए?
– मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो कोरोना से हुई मृत्यु पर लोगों को चार लाख का मुआवज़ा नहीं दे सकती. तो क्या इस बात के लिए मोदी सरकार को धन्यवाद ज्ञापित किया जाए कि वह उद्योगपतियों का ऋण माफ़ कर सकती है, अपने प्रचार पर करोड़ों खर्च कर सकती है लेकिन महामारी के दौरान अपने नागरिकों के असमय गुजरने पर 4 लाख रुपये का मुआवजा नहीं दे सकती?
– कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या को लेकर लगातार सवाल उठे हैं और अब भी उठ रहे हैं. क्या थैंक्यू इसलिए बोलै जाए की लाखों लोग मौत के मुंह में समा गए या इसलिए कि मृतकों के सही आंकड़े तक नहीं दिए जा रहे?
– और क्या शिक्षक और विद्यार्थी मोदी जी को इसलिए धन्यवाद बोले कि एक साल से अधिक समय में कॉलेज और स्कूल तो बंद हैं लेकिन चुनावी रैली और कुंभ जैसे आयोजन किए गए? क्या वे इसलिए थैंक्यू कहें कि सरकार ने आपदा में भी प्रोपगैंडा का अवसर तलाश लिया?
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)