मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ अप्रैल 2021 में बड़वानी के अपर कलेक्टर नियुक्त हुए थे, जिसके 42 दिनों के भीतर ही उनका तबादला हो गया. राज्य के आईएएस संघ के एक ऑनलाइन ग्रुप चैट के आधार पर कहा जा रहा है कि तबादले की असली वजह कलेक्टर के भ्रष्टाचार पर जांगिड़ का आपत्ति जताना था. मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी का भी नाम आया है.
अशोक खेमका, प्रदीप कासनी, सूर्यप्रताप सिंह ऐसे कुछ आईएएस अधिकारियों के नाम हैं, जिनके बगावती तेवर जब सरकारों के लिए परेशानी का सबब बन गए, तो इनके बार-बार इतने तबादले हुए कि रिकॉर्ड ही बन गए.
सरकारों द्वारा आईएएस अधिकारियों के मनमाने तबादलों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है, लेकिन हालातों में फिर भी सुधार नहीं आया है.
इसकी हालिया बानगी हैं मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़. बीते 31 मई को उनका तबादला हुआ था. वे शासन द्वारा 20 अप्रैल 2021 को बड़वानी जिले में अपर कलेक्टर बनाए गए थे, लेकिन महज 42 दिन बाद ही मैदानी पोस्टिंग से हटाकर उनका तबादला भोपाल के राज्य शिक्षा केंद्र में कर दिया गया.
मध्य प्रदेश में लोकेश के साढ़े चार साल के कार्यकाल में यह उनका आठवां तबादला (नौवीं नियुक्ति) था, जो अफसर-अधिकारियों के तबादलों के संबंध में 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन है.
तब सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न सरकारों द्वारा आईएएस अधिकारियों के मनमाने तबादलों को गलत बताते हुए आदेश दिया था कि सरकारें नौकरशाहों को एक पद पर निश्चित कार्यकाल दें और उनके तबादलों व नियुक्ति के निर्धारण आदि के लिए सिविल सर्विस बोर्ड गठित करें.
अदालत के आदेशानुसार सरकारों ने सिविल सर्विस बोर्ड तो गठित कर दिए, लेकिन लगभग हर राज्य में वे मजाक बनकर रह गए हैं. सरकारें अब भी अधिकारियों को निश्चित कार्यकाल न देकर मनमाने तरीके से उनके तबादले और नियुक्ति करती हैं.
मध्य प्रदेश में लोकेश जांगिड़ की पहली नियुक्ति 3 नवंबर 2016 को श्योपुर जिले में बतौर विजयपुर एसडीएम हुई. सात महीने में ही तबादला करके 22 जून 2017 को वे राज्य मंत्रालय, भोपाल में अवर सचिव (राजस्व) बनाए गए.
दो महीने बाद ही 1 सितंबर 2017 को उन्हें शहडोल में एसडीएम बनाकर भेजा गया. सात महीने बाद 16 अप्रैल 2018 को उन्हें इस पद से भी हटा दिया और वापस भोपाल बुलाकर नगरीय प्रशासन विभाग में उप सचिव बनाकर बैठा दिया गया. अब तक उनके तीन तबादले हो चुके थे.
फिर दिसंबर 2018 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ. कांग्रेस ने सरकार बनाई. चौथा तबादला तब हुआ. 11 मार्च 2019 को नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव से हटाकर उन्हें फिर से मैदानी नियुक्ति दी और हरदा में जिला पंचायत सीईओ बनाकर भेजा गया.
वहां भी उन्हें लंबे समय तक काम नहीं करने दिया. आठ महीने बाद ही 3 दिसंबर 2019 को उनका पांचवा तबादला गुना अपर कलेक्टर के बतौर हुआ.
मार्च 2020 में राज्य में फिर सत्ता-परिवर्तन हुआ. भाजपा ने सरकार बनाई, जिसके बाद 10 सितंबर 2020 को उन्हें फिर मैदानी नियुक्ति से हटाकर राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल में अपर मिशन संचालक का पद दे दिया.
वे सात महीने बाद 20 अप्रैल 2021 को अपर कलेक्टर बनाकर बड़वानी भेजे गए. यह सातवां तबादला था. आठवां और अंतिम तबादला 31 मई 2021 को हुआ. केवल 42 दिन बाद ही उन्हें वापस भोपाल के राज्य शिक्षा केंद्र में अपर मिशन संचालक बना दिया.
यानी औसतन हर छह माह में लोकेश का तबादला होता है और बार-बार उन्हें मैदानी नियुक्ति से हटाकर सचिवालय में बैठा दिया जाता है.
इन तबादलों के पीछे का कारण समझने के लिए मध्य प्रदेश के सियासी और प्रशासनिक हलकों में सुर्खियां बने उस हालिया घटनाक्रम पर नजर डालते हैं जो लोकेश से जुड़ा हुआ है.
31 मई 2021 को लोकेश के पास मध्य प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ का फोन आया. कथित 30 सेकंड की बातचीत में उन्होंने तबादले की सूचना दी, लेकिन तबादले का कारण नहीं बताया और कहा कि भोपाल आओ तब बात करेंगे.
उसी शाम लोकेश बड़वानी अतिरिक्त कलेक्टर के दायित्व से मुक्त कर दिए गए. रात को सहकर्मियों ने उनसे सिर्फ 42 दिनों में तबादले का कारण पूछा जो उन्हें पता नहीं था, इसलिए यकीन दिलाने के लिए दीप्ति गौड़ से हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग उन्हें भेज दी.
अगले कुछ दिन सब शांत रहा, लेकिन दो हफ्तों बाद तब तूफान उठ खड़ा हुआ जब सिग्नल ऐप पर बने मध्य प्रदेश आईएएस अधिकारी संघ (एमपीआईएएसओए) के ग्रुप में हुई चैट के कुछ अंश (स्क्रीनशॉट्स) सार्वजनिक हो गए.
वे अंश लोकेश जांगिड़ द्वारा ग्रुप में किए गए उन मैसेजेस के थे, जिनमें वे अपने तबादले के पीछे का असल कारण बता रहे थे, जिसके तार बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा के भ्रष्टाचार से जुड़ रहे थे और इसके दायरे में मुख्यमंत्री की पत्नी साधना सिंह भी आ रही थीं.
लोकेश ने ग्रुप में लिखा था, ‘कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा पैसा नहीं खा पा रहे थे. इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कान भर दिए. कलेक्टर और मुख्यमंत्री दोनों ही किरार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. कलेक्टर की पत्नी किरार महासभा की सचिव और मुख्यमंत्री की पत्नी अध्यक्ष हैं.’
इन शब्दों से उनका स्पष्ट आशय था कि अपना भ्रष्टाचार जारी रखने के लिए कलेक्टर शिवराज वर्मा ने अपर कलेक्टर लोकेश का तबादला कराया और इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी को सीढ़ी बनाया. उन्होंने मुख्यमंत्री की पत्नी (साधना सिंह) से अपनी पत्नी की घनिष्ठता का लाभ उठाकर तबादले को अंजाम दिया.
जिस भ्रष्टाचार की बात हो रही है वह कोविड के दौरान ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की खरीद से जुड़ा मामला बताया जाता है. आरोप हैं कि बड़वानी कलेक्टर ने 39,000 रुपये कीमत का एक कॉन्सेंट्रेटर 60,000 रुपये में खरीदा. लोकेश ने इस पर आपत्ति जताई तो उनका तबादला करा दिया.
इसी दौरान लोकेश ने कलेक्टर के पुराने कारनामों का भी उल्लेख किया. उन्होंने लिखा, ‘वे पहले अतिरिक्त आबकारी आयुक्त थे. विभाग में उनकी छवि और उनके कर्म सभी जिला आबकारी अधिकारी और आबकारी इंस्पेक्टर भी जानते हैं.’
लोकेश ने साथ ही बार-बार होने वाले अपने तबादलों के संबंध में लिखा, ‘जो हर तरह के माफिया से पैसे खाते हैं, उन्हें मैदानी पोस्टिंग मिल जाती है और जो ईमानदारी से काम करते हैं, उन्हें तबादला करके सचिवालय फेंक दिया जाता है.’
उन्होंने यह भी लिखा कि वे सेवानिवृत्ति के बाद एक किताब लिखेंगे और अभी नौकरी की सेवा शर्तों के कारण जो खुलासे नहीं कर पा रहे हैं, उस किताब में वे सभी खुलासे करेंगे.
इस संबंध में उन्होंने सोशल मीडिया पर भी एक पोस्ट लिखा. जिसके शब्द थे, ‘ईमानदारी तेरा किरदार है तो खुदकुशी कर ले, सियासी दौर को तो जी हुजूरी की जरूरत है.’ इसी कड़ी में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने सिविल सर्विस बोर्ड को भी मजाक बताया.
उनके बगावती तेवरों के चलते सरकार ने 16 जून को उन्हें कारण बताओ नोटिस थमा दिया और कहा कि उन्होंने सेवा शर्तों का उल्लंघन किया है. रोचक यह रहा कि नोटिस के जरिये उनसे सफाई कलेक्टर या मुख्यमंत्री की पत्नी पर लगाए आरोपों के संबंध में नहीं मांगी गई बल्कि 31 मई के उस घटनाक्रम को आधार बनाया गया, जिसमें उन्होंने प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ की कॉल रिकॉर्डिंग अपने सहकर्मियों को भेजी थी.
लोकेश का ऐसा करना सेवा शर्तों का उल्लंघन माना गया कि उन्होंने वरिष्ठ अधिकारी की बातचीत रिकॉर्ड करके दूसरों को भेजी. लेकिन, यह महज संयोग नहीं हो सकता कि नोटिस उन्हें 16 दिन बाद तब मिला, जब उन्होंने बगावती तेवर दिखाए.
इसलिए लोकेश ने इस कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण बताया. नोटिस के जवाब में उन्होंने लिखा, ‘नोटिस भेजने में की गई देरी संदिग्ध है. जिस बातचीत को आधार बनाकर नोटिस भेजा, वह 31 मई की थी. नोटिस 16 जून को मिला. इससे मेरी इन चिंताओं को बल मिलता है कि मामले में दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई हो रही है.’
हालांकि, लोकेश अब मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं. द वायर के सवालों पर भेजे जवाब में उन्होंने लिखा, ‘मैंने सोच-समझकर मीडिया से बात नहीं करने का फैसला लिया है.’
इस फैसले के पीछे दो प्रमुख वजह देखी जा रही हैं. पहली वजह है, सरकार और आईएएस संघ का दबाव. दूसरी वजह है, मीडिया से बात करने पर उन्हें मिली जान से मारने की धमकी.
पहली वजह पर बात करें, तो जब लोकेश ग्रुप चैट में बगावती तेवर दिखा रहे थे, तभी मध्य प्रदेश आईएएस अधिकारी संघ के अध्यक्ष आईसीपी केसरी ने उन्हें ऐसा न करने की चेतावनी दी. उन्होंने लिखा, ‘तुम सिर्फ अपने सहकर्मी नहीं, बल्कि पूरे आईएएस परिवार पर आरोप लगा रहे हो. पोस्ट हटाओ और भविष्य में ये सब करना बंद करो.’
लोकेश ने पोस्ट हटाने से इनकार करते हुए लिखा, ‘मैं पोस्ट नहीं हटाऊंगा. आप मुझे ग्रुप से हटा सकते हैं. जानता हूं कि आप संघ के अध्यक्ष हैं और मुझे हटाने की सभी शक्तियां हैं. वैसे भी इस निज़ाम में असहमति के स्वरों को कुचला जा रहा है, आप भी कुचल दो.’
नतीजतन, लोकेश ग्रुप से हटा दिए गए. वर्तमान हालात ये हैं कि जिस ‘आईएएस परिवार’ की दुहाई केसरी दे रहे थे, वह लोकेश के साथ हुए घटनाक्रम पर अपनी राय तक व्यक्त नहीं करना चाहता.
इस पूरे मसले पर द वायर ने मध्य प्रदेश के अनेक मौजूदा व पूर्व आईएएस से बात करने की कोशिश की लेकिन सभी ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिनमें स्वयं केसरी भी शामिल हैं.
जहां तक सरकारी दबाव की बात है तो इस संबंध में ‘कारण बताओ नोटिस’ का समय संदेह पैदा करता है. लोकेश ने ही पहले स्वयं कहा था, ‘आईएएस संघ एक परिवार है. जिसमें आईएएस अपने वरिष्ठों और सहकर्मियों से अपनी समस्याएं साझा करते हैं. वह निजी ग्रुप था, कोई सार्वजनिक मंच नहीं जहां मैंने तबादले के खिलाफ लिखा हो. सेवा शर्तों में कहीं उल्लेख नहीं है कि निजी ग्रुप में गिले-शिकवे साझा नहीं कर सकते.’
उन्होंने आगे कहा था, ‘चैट सार्वजनिक मैंने नहीं की. ग्रुप के किसी अन्य सदस्य ने की है. इसलिए भी मेरे खिलाफ कार्रवाई का आधार नहीं बनता.’
यही वजहें हैं, जिनके चलते ऐसा प्रतीत होता है कि लोकेश द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद भी जब सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई का कोई आधार नहीं ढूंढ़ सकी, तो दबाव बनाने के लिए दो हफ्ते पुरानी घटना को उनके खिलाफ मुद्दा बना दिया गया.
हालांकि, इस पर भी लोकेश का कहना है कि उन्होंने कोई नियम नहीं तोड़ा है. सब-कुछ नियमों के दायरे में किया है. नोटिस के जवाब में उन्होंने लिखा है कि वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए वे हमेशा फोन ‘ऑटो कॉल रिकॉर्ड’ पर रखते हैं, ताकि आदेश वापस सुन-समझकर अच्छी तरह लागू कर सकें. यह आम प्रक्रिया है जो कनिष्ठ अधिकारी अपनाते हैं. अलग से कॉल रिकॉर्ड करने का उनका कोई इरादा नहीं था.
उनका कहना है, ‘रिकॉर्डिंग तबादला आदेश जारी होने के बाद भेजी थी. उसमें मौजूद सारी जानकारी पहले से पब्लिक डोमेन में थी. बातचीत में गोपनीय जैसा कुछ नहीं था और न निजी बातचीत थी जिससे गोपनीयता या निजता का उल्लंघन हो. कुछ ऐसा भी नहीं था जिससे राज्य की एकता, अखंडता या सुरक्षा आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. सेवा शर्तों में कहीं नहीं लिखा कि रिकॉर्डिंग नहीं कर सकते.’
इस संबंध में सरकार का पक्ष अभी सामने नहीं आया है लेकिन हैरान करने वाली बात यह भी है कि बड़वानी कलेक्टर पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तो दूर, सरकार की ओर से किसी ने इस पर जबां तक नहीं खोली है.
मुख्यमंत्री की पत्नी की भूमिका पर भी संदेह है लेकिन न तो स्वयं मुख्यमंत्री, न भाजपा प्रवक्ता, न मुख्य सचिव और न स्वयं बड़वानी कलेक्टर या अन्य कोई भी इस मसले पर बात करने राजी हुआ.
अब बात उस दूसरे कारण की, जिसके बाद लोकेश ने मीडिया से दूरी बना ली. इस मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद मीडिया से मुखातिब होने पर लोकेश को 17 जून को जान से मारने की धमकी मिली.
इसकी शिकायत 18 जून को राज्य पुलिस महानिदेशक को करते हुए उन्होंने लिखा कि किसी अज्ञात नंबर से सिग्नल ऐप पर कॉल करके धमकी देने वाले शख्स ने उनसे कहा, ‘तू नहीं जानता कि तूने किससे पंगा ले लिया. साधना भाभी (मुख्यमंत्री की पत्नी) पर आरोप लगाकर तूने मौत को बुलाया है. अगर खुद की और अपने बेटे की जान प्यारी है तो कल ही छह महीने की छुट्टी पर चला जा और मीडिया में बात करना बंद कर. रवीश कुमार और अजीत अंजुम जैसे पाकिस्तानी तेरा उपयोग कर रहे हैं, तेरे समझ में नहीं आ रहा.’
लोकेश ने शिकायत के साथ सुरक्षा की भी मांग की है लेकिन अब तक उन्हें सुरक्षा नहीं मिली है. इस संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को पत्र लिखकर लोकेश को सुरक्षा देने कहा है.
इस बीच, लोकेश तीन साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र जाने का आवदेन केंद्र सरकार को भेज चुके हैं. उन्होंने प्रतिनियुक्ति के लिए महाराष्ट्र में रह रहे अपने बुजुर्ग दादा और मां की देख-रेख का हवाला दिया है.
लोकेश ने बार-बार तबादले को लेकर जिस सिविल सर्विस बोर्ड पर अंगुली उठाई है, उसके मुखिया राज्य के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस हैं. संपर्क साधने पर उन्होंने भी प्रतिक्रिया नहीं दी.
मध्य प्रदेश में किसी पूर्व या वर्तमान आईएएस अधिकारी ने सिविल सर्विस बोर्ड को लेकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली उत्तर प्रदेश के पूर्व आईएएस सूरज प्रताप सिंह समझाते हैं. लोकेश की तरह ही उनका 25 सालों की सेवा में 54 बार ट्रांसफर किया गया था.
वे कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना किसी भी राज्य ने नहीं की है. हर अधिकारी का दो-तीन साल का एक निश्चित कार्यकाल होना चाहिए, लेकिन सिविल सर्विस बोर्ड बस नाम के लिए कागज पर हैं. बोर्ड में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना ज्यादा होता है कि मुख्य सचिव वही निर्णय लेते हैं जो मुख्यमंत्री चाहता है क्योंकि सबको अपनी कुर्सी प्यारी है.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘अखिल भारतीय सेवा शर्तों में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना नियमों का उल्लंघन है. मोदी सरकार द्वारा ही लाए गए नये बदलाव तो यहां तक कहते हैं कि एक अधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह है, राजनीतिक दलों या आकाओं के प्रति नहीं. वहीं, केंद्र सरकार का व्हिसल ब्लोअर्स क़ानून (2014) भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्हिसल ब्लोअर्स को संरक्षण देने की बात करता है.’
संभव है कि इन्हीं प्रावधानों के चलते मध्य प्रदेश सरकार लोकेश जांगिड़ के बगावती बोलों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं कर सकी है.
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में तबादले/नियुक्ति के लिए उत्तरदायी सामान्य प्रशासन विभाग के मुखिया स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह हैं, लेकिन मामले में वे अब तक मौन हैं जबकि आरोपों के घेरे में उनकी पत्नी भी हैं.
सरकार और भाजपा का पक्ष जानने के लिए द वायर द्वारा पार्टी प्रवक्ता से भी कई बार संपर्क साधा, लेकिन उन्होंने भी बात नहीं की. ऐसे में कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं. जैसे- क्या बड़वानी कलेक्टर पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच होगी? क्या लोकेश जांगिड़ के तबादले में मुख्यमंत्री की पत्नी की संलिप्तता संबंधी आरोपों की जांच होगी? क्यों बड़वानी कलेक्टर से मामले पर अब तक स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया?
इस पर मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना कहते हैं, ‘आरोपों की जांच होनी ही चाहिए, लेकिन जिन्होंने अब तक राम मंदिर ट्रस्ट भूमि घोटाले की जांच के आदेश नहीं दिए हैं, उस पार्टी के लोगों से कैसे अपेक्षा करें कि वे एक अपर कलेक्टर द्वारा लगाए उन भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराएंगे जिनमें मुख्यमंत्री की पत्नी की भूमिका पर प्रश्नचिह्न है?’
गौर करने योग्य बात यह भी है कि प्रदेश के ही दो भाजपा सांसदों ने लोकेश के काम की प्रशंसा की है. बड़वानी के सांसद सुमेंद्र सिंह सोलंकी का कहना है, ‘मुझे नहीं पता कि उनका क्यों तबादला हुआ? वे बहुत मेहनती थे और क्षेत्रीय लोगों से अच्छे संबंध थे.’
वहीं, खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल ने कहा, ‘कोविड के दौरान उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर अच्छा काम किया था. किसी प्रशासनिक कारण से उनका तबादला हुआ होगा.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)