भारत में आपात उपयोग के लिए सिप्ला को मॉडर्ना के कोविड टीके की मंज़ूरी मिली

अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना का टीका भारत में कोविड-19 के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाली चौथी वैक्सीन है. सिप्ला ने भारतीय औषधि नियामक से अमेरिकी फार्मा कंपनी की ओर से कोविड वैक्सीन के वितरण की वैश्विक पहल कोवैक्स के तहत इन टीकों के आयात और विपणन का अधिकार देने का अनुरोध किया था.

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(फोटो: रॉयटर्स)

अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना का टीका भारत में कोविड-19 के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाली चौथी वैक्सीन है. सिप्ला ने भारतीय औषधि नियामक से अमेरिकी फार्मा कंपनी की ओर से कोविड वैक्सीन के वितरण की वैश्विक पहल कोवैक्स के तहत इन टीकों के आयात और विपणन का अधिकार देने का अनुरोध किया था.

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(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने मुंबई की औषधि कंपनी सिप्ला को आपात उपयोग के लिए मॉडर्ना के कोविड-19 टीके के आयात की अनुमति दे दी है. आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी.

कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक के बाद मॉडर्ना का टीका भारत में उपलब्ध होने वाला कोविड-19 का चौथा टीका होगा.

एक सूत्र ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘डीसीजीआई ने ड्रग्स ऐंड कॉस्मेटिक्स एक्ट,1940 के तहत नई औषधि एवं क्लीनिकल परीक्षण नियम, 2019 के प्रावधानों के मुताबिक सिप्ला को देश में सीमित आपात उपयोग के लिए मॉडर्ना के कोविड-19 टीके का आयात करने की अनुमति दे दी है.’

मॉडर्ना ने एक पत्र में 27 जून को डीसीजीआई को सूचना दी कि अमेरिकी सरकार यहां उपयोग के लिए कोविड-19 के अपने टीके की एक विशेष संख्या में खुराक ‘कोवैक्स’ के जरिये भारत सरकार को दान में देने के लिए सहमत हो गई है. साथ ही, उसने इसके लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) से मंजूरी मांगी है.

सिप्ला ने सोमवार को अमेरिकी फार्मा कंपनी की ओर से इन टीकों के आयात और विपणन का अधिकार देने के लिए औषधि नियामक से अनुरोध किया था.

उल्लेखनीय है कि कोवैक्स कोविड-19 के टीके के न्यायसंगत वितरण के लिए एक वैश्विक पहल है.

एक अधिकारी ने कहा कि आपात परिस्थितियों में सीमित उपयोग के लिए यह अनुमति जनहित में है. कंपनी को टीकाकरण कार्यक्रम के लिए टीके का इस्तेमाल शुरू करने से पहले प्रथम 100 लाभार्थियों में किए गए टीके का सुरक्षा आकलन सौंपना होगा.

सिप्ला ने सोमवार को एक आवेदन देकर इस टीके के आयात की अनुमति मांगी थी. उसने 15 अप्रैल और एक जून के डीसीजीआई नोटिस का हवाला दिया था.

नोटिस में कहा गया था कि यदि टीके को आपात उपयोग अधिकार (ईयूए) के लिए अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (यूएसएफडीए) द्वारा अनुमति दी जाती है, तो टीके को बिना ‘ब्रिजिंग ट्रायल’ के विपणन का अधिकार दिया जा सकता है.

इसके अलावा, हर खेप को केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला (सीडीएल), कसैली से जांच कराने की जरूरत की छूट मिल सकती है.

न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड -19 से बचाव के लिए मॉडर्ना की विधि मैसेंजर आरएनए (एम-आरएनए) पर निर्भर करती है ताकि कोरोना वायरस के लिए प्रतिरक्षा उत्पन्न करने के लिए कोशिकाओं को तैयार किया जा सके.

विश्लेषकों ने कहा कि फाइजर के साथ इस टीके को अमीर देशों में पसंदीदा विकल्प के रूप में देखा जाता है. इसके साथ ही क्लीनिकल परीक्षण के आंकड़े दिखा रहे हैं कि वे कोरोना वायरस को रोकने में 90 फीसदी से अधिक प्रभावी थे.

रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 12 करोड़ अमेरिकियों ने अब तक फाइजर या मॉडर्न की खुराक प्राप्त की है, जिसमें कोई बड़ी सुरक्षा समस्या की पहचान नहीं की गई है.

अमेरिका और यूरोपीय संघ एम-आरएनए टीकों के और भी अधिक स्टॉक करने पर जोर दे रहे हैं. जापान जून के अंत तक फाइजर के शॉट की 10 करोड़ खुराक सुरक्षित करने के लिए भी काम कर रहा है.

बता दें कि पिछले सप्ताह अमेरिका-भारत चेंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित किए जा रहे 15वें भारत-अमेरिका औषधि एवं स्वास्थ्य सेवा शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर के सीईओ डॉ. अल्बर्ट बोर्ला ने कहा था कि कंपनी कोविड-19 टीकों की आपूर्ति के लिए भारत के साथ समझौते के आखिरी चरणों में है.

इसके साथ ही उन्होंने टिप्पणी की कि भारत में घरेलू स्तर पर विनिर्मित टीके ही भारतीयों के टीकाकरण अभियान का मूख्य स्तम्भ होंगे.
उन्होंने कहा था कि फाइजर ने एक विशेष योजना बनाई है, जिसके तहत भारत सहित मध्य और निम्न आय वाले देशों को इन टीकों की कम से कम दो अरब खुराक मिलेगी.

दरअसल, एम-आरएनए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल फाइजर और मॉडर्ना टीकों में इस तरह से किया गया है कि वे मानव शरीर की कोशिकाओं को कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन बनाने का अस्थायी निर्देश दे सकें. यह प्रोटीन सार्स-सीओवी-2 की सतह पर पाया जाता है. यह विषाणु कोविड-19 के लिए जिम्मेदार है. यह टीका प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस के हमले से आपकी रक्षा करना सिखाता है.

टीके में मौजूद एम-आरएनए शरीर की कोशिकाओं से लिया जाता है. हमारी कोशिकाएं प्राकृतिक रूप से हर वक्त हजारों एम-आरएनए बनाते हैं. टीके में मौजूद एम-आरएनए जब कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) में जाता है तब इसका उपयोग सार्स- सीओवी-2 स्पाइक प्रोटीन बनाने में होता है.

मालूम हो कि भारतीय दवा महानियंत्रक डीसीजीआई ने जनवरी में दुनिया की सबसे बड़ी टीका निर्माता कंपनी पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कोविशील्ड तथा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी थी.

भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर कोवैक्सीन का विकास किया है. वहीं, सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने ‘कोविशील्ड’ के उत्पादन के लिए ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी की है.

अप्रैल में रूस में निर्मित कोविड-19 की वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ के सीमित आपातकालीन उपयोग के लिए भारत में मंजूरी मिल गई थी.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 16 जनवरी को भारत में देशव्यापी कोविड-19 टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी. टीकाकरण के पहले चरण में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाया गया था.

उसके बाद एक मार्च से कोविड-19 टीकाकरण का दूसरा चरण शुरू हो गया है. इस चरण में 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों और 45 साल से ऊपर के उन लोगों को जिन्हें स्वास्थ्य  संबंधी गंभीर समस्याएं हों, को टीका लगाया जा रहा है. एक मई से 18 से 44 साल आयुवर्ग का टीकाकरण भी शुरू हो गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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