तालिबानी नेताओं के साथ जयशंकर की मुलाक़ात के दावों को भारत ने ‘पूरी तरह झूठा’ बताया

क़तर के एक मंत्री ने रिकॉर्ड पर बताया था कि एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने दोहा में तालिबान से मुलाकात की थी. मंगलवार को एक अफगान पत्रकार सामी यूसुफजई ने ट्वीट किया कि क्वेटा शूरा में अफ़ग़ान तालिबान के सूत्रों ने उन्हें बताया था कि भारतीय विदेश मंत्री की तालिबान के नेताओं से मुलाक़ात हुई थी.

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विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: ट्विटर/@DrSJaishankar)

क़तर के एक मंत्री ने रिकॉर्ड पर बताया था कि एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने दोहा में तालिबान से मुलाकात की थी. मंगलवार को एक अफगान पत्रकार सामी यूसुफजई ने ट्वीट किया कि क्वेटा शूरा में अफ़ग़ान तालिबान के सूत्रों ने उन्हें बताया था कि भारतीय विदेश मंत्री की तालिबान के नेताओं से मुलाक़ात हुई थी.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: ट्विटर/@DrSJaishankar)
विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: ट्विटर/@DrSJaishankar)

नई दिल्ली: भारत ने मंगलवार को उन खबरों का जोरदार खंडन किया, जिनमें कहा गया था कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस महीने की शुरुआत में कतर के रास्ते अपने ट्रांजिट स्टॉप के दौरान कुछ तालिबान नेताओं से मुलाकात की थी.

ये हालिया अटकलें उस चर्चा का हिस्सा हैं कि भारत ने तालिबान के साथ संपर्क स्थापित किया है. यहां तक कि कतर के एक मंत्री ने रिकॉर्ड पर बताया कि एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने दोहा में विद्रोही समूह से मुलाकात की थी.

भारत ने अब तक कथित भारत-तालिबान बैठकों के बारे में अटकलों के साथ-साथ कतर के मंत्री के बयान पर आधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी है.

मंगलवार को एक अफगान पत्रकार सामी यूसुफजई ने ट्वीट किया कि क्वेटा शूरा (बलूचिस्तान के क्वेटा में अफगान-तालिबान नेताओं का संगठन) में अफगान तालिबान के सूत्रों ने उन्हें बताया था कि भारतीय विदेश मंत्री ने तालिबान नेताओं से मुलाकात की थी.

उन्होंने तालिबान नेताओं की पहचान राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख मुल्ला बिरादर के साथ-साथ खैरुल्ला खैरख्वा और शेख दिलावर के रूप में की, जो तालिबान वार्ता दल के सदस्य थे.

यूसुफजई ने यह भी दावा किया कि तालिबान ने भारत से कहा था कि भविष्य के संबंध पाकिस्तान की इच्छा से तय नहीं होंगे.

इसके कुछ घंटों के भीतर भारत ने इसका खंडन किया. हालांकि उसे औपचारिक तौर पर जारी नहीं किया गया था.

आधिकारिक सूत्रों ने बताया, ‘हमने मीडिया में आई उन खबरों को देखा है जिनमें दावा किया गया है कि विदेश मंत्री ने तालिबान के कुछ नेताओं के साथ बैठक की थी. ऐसी रिपोर्ट ‘पूरी तरह से झूठी, आधारहीन और शरारतपूर्ण’ हैं.’

भारत के इनकार के बाद द वायर  ने यूसुफजई से संपर्क किया, जो अपने ट्वीट पर कायम रहे. उन्होंने दावा किया कि उनकी जानकारी उन्हें एक वरिष्ठ अफगान तालिबान नेता ने दी थी.

यूसुफजई ने कहा कि उन्हें बताया गया कि बैठक कतर के एक उच्च स्तरीय अधिकारी के आवास पर हुई.

केन्या और कुवैत की अपनी यात्रा के दौरान जयशंकर के कतर में रुकने पर लोगों को आश्चर्य हुआ था और विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में सवाल पूछे गए कि क्या भारत तालिबान तक पहुंच रहा है.

उस दौरान भारतीय प्रवक्ता ने सीधे सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन कहा था कि भारत ने सभी शांति पहलों का समर्थन किया है और क्षेत्रीय देशों सहित कई हितधारकों के साथ जुड़ा हुआ है.

इसके बाद एक वेबिनार के दौरान आतंकवाद और संघर्ष समाधान की मध्यस्थता के लिए कतर के विशेष दूत मुतलाक बिन माजिद अल कहतानी ने कहा था कि एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान से मिलने के लिए खाड़ी देश कतर की एक गुपचुप यात्रा की थी.

सोमवार को पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ने डॉन न्यूज से कहा कि यह शर्म की बात है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं यह पूछना चाहता हूं, इस भारतीय उच्चस्तरीय अधिकारी ने (तालिबान) से किस (नैतिक) स्थिति के साथ मुलाकात की? क्या उन्हें शर्म नहीं आई…(भारतीय) तालिबान को रोज मारते रहे और उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए फंड देते रहे और आज वे वहां बातचीत करने पहुंच गए हैं.’

युसूफ ने कहा कि वह अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बीच भारत और विद्रोही समूह के बीच संपर्कों से चिंतित नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘आपको यह भी पूछना चाहिए कि (भारतीयों) को (तालिबान) से क्या प्रतिक्रिया मिली.’

भारत की आधिकारिक नीति तालिबान को किसी भी तरह से मान्यता नहीं देने की रही है और युद्ध से तबाह देश में अफगान सरकार को एकमात्र वैध हितधारक के रूप में मान्यता प्राप्त है.

विदेशी सैनिकों की वापसी में तेजी आने के साथ खासकर अफगानिस्तान में काम करने वाले विदेशी नागरिकों के लिए असुरक्षा की भावना बढ़ गई है.

अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास ने एक सुरक्षा सलाह जारी कर भारतीयों से अत्यंत सावधानी और सतर्कता बरतने का आह्वान किया. पहले की सलाह के अनुरूप, दूतावास ने यह भी कहा कि भारतीय नागरिकों को अपहरण के एक अतिरिक्त गंभीर खतरे का सामना करना पड़ा.

एक बयान में तालिबान ने कहा कि वह सभी नागरिक और गैर-सैन्य विदेशी नागरिकों, राजनयिकों, दूतावासों, वाणिज्य दूतावासों और मानवीय संगठनों के कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करना चाहता है कि किसी को भी हमारी ओर से किसी भी समस्या या सुरक्षा जोखिम का सामना नहीं करना पड़ेगा.

पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र ने उल्लेख किया कि पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 2021 की पहली छमाही में हताहत होने वाले नागरिकों की संख्या में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है.

इसके अलावा, अफगानिस्तान के लिए महासचिव के विशेष प्रतिनिधि डेबोरा लियोन ने बताया कि तालिबान ने मई की शुरुआत से अफगानिस्तान में 370 में से 50 से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया है.

ल्योन ने 22 जून को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया, अधिकांश जिले प्रांतीय राजधानियों के आस-पास हैं जो यह संकेत देते हैं कि विदेशी सेना की पूरी तरह से वापसी के बाद तालिबान खुद इन राजधानियों पर कब्जे की कोशिश कर रहा है.

यह तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के आपसी सम्मान के माहौल में एक समझौते पर पहुंचने के मुख्य आश्वासन के विपरीत था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)