24 अप्रैल के अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र, विध्वंस के किसी भी आदेश को 31 मई तक रोक दिया जाना चाहिए. इसके बावजूद 17 मई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में रामसनेहीघाट स्थित मस्जिद को प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया गया था.
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मस्जिद विध्वंस मामले में बाराबंकी के रामसनेहीघाट थाना प्रभारी सच्चिदानंद राय को प्रथम दृष्टया अदालत के आदेश का उल्लंघन करने का दोषी पाया और उन्हें अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया. इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 22 जुलाई तय की है.
हालांकि अदालत ने रामसनेहीघाट के तत्कालीन उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) दिव्यांशु पटेल को प्रथमद्रष्टया क्लीन चिट दे दी है.
यह आदेश जस्टिस रवि नाथ तिलहरी की एकल पीठ ने लखनऊ की टीले वाली मस्जिद के सह मुतवल्ली वसीफ हसन एवं ढहाई गई मस्जिद में नमाज अदा करने वाले एक अन्य याची की ओर से दाखिल अवमानना अर्जी पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई करते हुए 30 जून को पारित किया और उसकी प्रति शुक्रवार को हाईकोर्ट के वेबसाइट पर अपलोड की गई.
याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कोविड की भयावहता को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर 24 अप्रैल 2021 सभी अदालतों एवं न्यायाधिकरणों को निर्देश दिया था कि जिन मामलों में किसी निर्माण को गिराने का आदेश दिया गया है उस पर 31 मई 2021 तक अमल न करें.
सिब्बल ने आरोप लगाया कि इसके बावजूद एसडीएम एवं एसएचओ ने 17 मई 2021 को मस्जिद ढहा दिया. सिब्बल ने कहा कि यह अदालती आदेश का उल्लंघन है अतः अवमाननाकर्ता एसडीएम व एसएचओ को तलब कर दंडित किया जाए.
दरअसल, 24 अप्रैल को सुनाए गए एक आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था, ‘हाईकोर्ट, जिला न्यायालय या सिविल न्यायालय द्वारा पहले से ही पास बेदखली या विध्वंस का कोई भी आदेश यदि इस आदेश के पारित होने की तारीख तक निष्पादित नहीं किया जाता है तो यह 31/05/2021 तक की अवधि के लिए स्थगित रहेगा.’
इसके बावजूद, 17 मई को मस्जिद को गिरा दिया गया था.
याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने पाया कि एसडीएम ने मस्जिद के खिलाफ तीन अप्रैल 2021 का आदेश जारी किया था जबकि याची के अधिवक्ता सिब्बल 24 अप्रैल 2021 के आदेश की अवहेलना की बात कर रहे हैं, ऐसे में एसडीएम के खिलाफ अवमानना का प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है, अतः उन्हें नोटिस जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
अपने आदेश में अदालत ने लिखा कि चूंकि तीन अप्रैल 2021 के एसडीएम के आदेश का अनुपालन 17 मई 2021 को करने की बात सामने आ रही है, अतः प्रथमदृष्टया रामसनेही घाट एसएचओ के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है.
तत्पश्चात अदालत ने एसएचओ को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया. अवमानना का दोषी करार देते हुए उन्हें अवमानना नोटिस जारी कर अधिवक्ता के जरिये अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.
द वायर ने एसएचओ सच्चिदानंद राय से संपर्क कर हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी. हालांकि, राय ने कहा कि वह इस मामले पर नहीं बोल सकते, क्योंकि उन्होंने अभी तक नोटिस (उन्हें जारी) को नहीं देखा है.
जून के अंत में उत्तर प्रदेश पुलिस ने द वायर, उसके दो पत्रकारों और अन्य के खिलाफ मस्जिद विध्वंस पर एक वीडियो रिपोर्ट के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी.
बाराबंकी पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में ‘मस्जिद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है और ध्वस्त ढांचे को ‘अवैध इमारत’ के रूप में वर्णित किया गया है.
एफआईआर में कहा गया है कि द वायर और इसके दो पत्रकारों- सिराज अली, मुकुल सिंह चौहान के द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किए गए वीडियो समाज में वैमनस्य फैलाते हैं और सांप्रदायिक सौहार्द को बाधित करते हैं. प्राथमिकी में विचाराधीन ट्वीट्स की पहचान नहीं की गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)