हाल के समय में विभिन्न हलकों से यह मांग की जा रही है कि भारतीय रिज़र्व बैंक को करेंसी की छपाई कर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण करना चाहिए. रिज़र्व बैंक द्वारा राजकोषीय घाटे के मौद्रिकरण का आशय यह है कि केंद्रीय बैंक सरकार के किसी आपात ख़र्च को पूरा करने के लिए करेंसी छापे और राजकोषीय घाटे को पूरा करे. पिनाकी चक्रवर्ती ने उम्मीद जताई कि कोरोना वायरस की यदि कोई बड़ी तीसरी लहर नहीं होती है, तो भारत का आर्थिक पुनरुद्धार अधिक तेज़ी से होगा.
नई दिल्ली: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पिनाकी चक्रवर्ती का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक को राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए करेंसी नहीं छापनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह वित्तीय अपव्यय होगा.
चक्रवर्ती ने एक साक्षात्कार में रविवार को उम्मीद जताई कि यदि कोई बड़ी तीसरी लहर नहीं होती है, तो भारत का आर्थिक पुनरुद्धार अधिक तेजी से होगा.
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के निदेशक चक्रवर्ती ने कहा कि ऊंची मुद्रास्फीति निश्चित रूप से चिंता की बात है. उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को ऐसे स्तर पर स्थिर करने की जरूरत है, जिसका आसानी से प्रबंधन हो सके.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह बहस महामारी की शुरुआत के साथ शुरू हुई थी. राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए करेंसी छापने पर विचार नहीं हुआ. मुझे नहीं लगता कि रिजर्व बैंक कभी ऐसा करेगा.’
चक्रवर्ती ने कहा, ‘रिजर्व बैंक और सरकार के बीच सहमति ज्ञापन (एमओयू) के तहत हमने 1996 में इसे रोक दिया था. हमें इसकी ओर वापस नहीं लौटना चाहिए.’
हाल के समय में विभिन्न हलकों से यह मांग की जा रही है कि केंद्रीय बैंक को करेंसी की छपाई कर राजकोषीय घाटे का वित्त पोषण करना चाहिए. रिजर्व बैंक द्वारा राजकोषीय घाटे के मौद्रिकरण का आशय यह है कि केंद्रीय बैंक सरकार के किसी आपात खर्च को पूरा करने के लिए करेंसी छापे और राजकोषीय घाटे को पूरा करे.
चक्रवर्ती ने कहा कि भारत की मौजूदा वृहद आर्थिक स्थिति निश्चित रूप से कोविड-19 की पहली लहर की तुलना में अच्छी है.
उन्होंने कहा, ‘यदि कोई बड़ी तीसरी लहर नहीं आती है, तो निश्चित रूप से आगे चलकर हमें अधिक तेज आर्थिक पुनरुद्धार देखने को मिलेगा.’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह महामारी के दौरान रोजगार गंवाने वालों को नकदी प्रोत्साहन के पक्ष में हैं, उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौरान हम रोजगार चक्र का बचाव नहीं कर सकते. रोजगार बढ़ाने के लिए तेज पुनरुद्धार सबसे जरूरी है.’
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लघु अवधि में वित्तीय उपायों के जरिये उपलब्ध कराए गए समर्थन से आजीविका को लेकर कुछ सुरक्षा मिलनी चाहिए.
सरकार के सभी प्रोत्साहन उपायों के राजकोषीय प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर चक्रवर्ती ने कहा कि प्रोत्साहनों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार है.
उन्होंने कहा, ‘प्रोत्साहन की क्षेत्रवार प्रकृति को समझने की जरूरत है, न कि यह सोचने कि इसे बजट के जरिये दिया गया है या अन्य तरीकों से.’
उन्होंने कहा कि जहां तक बजटीय प्रोत्साहनों की बात है, तो पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.5 प्रतिशत रहा था.
उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकारों के राजकोषीय घाटे की बात करें, तो यह राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) के करीब 4.5 प्रतिशत रहा था. ऐसे में कुल मिलाकर राजकोषीय घाटा जीडीपी के 14-15 प्रतिशत के बराबर है.
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान के निदेशक चक्रवर्ती ने कहा कि ऐसे में खर्च को बढ़ाने की गुंजाइश सीमित है.
पिछले हफ्ते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए अतिरिक्त 1.5 लाख करोड़ रुपये के ऋण, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अधिक धन, पर्यटन एजेंसियों एवं गाइडों को ऋण और पैकेज के हिस्से के रूप में विदेशी पर्यटकों के लिए वीजा शुल्क में छूट की घोषणा की थी.
ये कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब राज्यों ने नए कोरोना वायरस संक्रमणों में गिरावट के बाद प्रतिबंध हटाना शुरू कर दिया है. संक्रमण की विनाशकारी दूसरी लहर की चपेट में आने के बाद अर्थव्यवस्था ने पटरी पर लौटना शुरू कर दिया है.
सरकार द्वारा साल 2020 में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लगभग 27 लाख करोड़ रुपये के आत्मानिर्भर भारत पैकेज की घोषणा की गई थी, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत से अधिक है. इसमें आरबीआई द्वारा घोषित तरलता उपाय भी शामिल हैं.
उच्च मुद्रास्फीति पर चक्रवर्ती ने कहा कि यह एक ऐसे स्तर पर पहुंच गया है जो निश्चित रूप से एक चुनौती है, जिससे अगले कुछ महीनों में निपटने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम अर्थव्यवस्था में संकुचन, नौकरी के नुकसान और मुद्रास्फीति में वृद्धि के बारे में बात कर रहे हैं, तो इसके प्रतिकूल वितरण परिणाम होंगे. इसलिए मुद्रास्फीति निश्चित रूप से एक चिंता का विषय है और हमें मुद्रास्फीति को उस स्तर तक स्थिर करने की आवश्यकता है जो प्रबंधनीय हो.’
यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम उत्पादों पर कर कम करना चाहिए, क्योंकि हाल के दिनों में कच्चे तेल की कीमतें सख्त हो रही हैं, चक्रवर्ती ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर करों में कमी का मतलब केंद्र और राज्य सरकारों के घाटे में बड़ी वृद्धि भी होगी.
उन्होंने कहा, ‘यह राजकोषीय प्रबंधन, मैक्रो प्रबंधन और मुद्रास्फीति प्रबंधन का एक जटिल मुद्दा है. यह कहने के लिए कि आप इसे कम कर देते हैं, क्योंकि कीमतें बढ़ गई हैं, इसका मतलब यह भी होगा कि आप अपने घाटे को पूरा करने के लिए और अधिक उधार लेंगे.’
कई राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गई है, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ हिस्सों में डीजल भी 100 रुपये प्रति लीटर से ऊपर बिक रहा है.
वर्तमान में, केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क की एक निश्चित दर लगाती है, जबकि राज्य वैट की अलग-अलग दरें लगाते हैं.
तेल कंपनियां पिछले 15 दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की औसत कीमत और विदेशी विनिमय दरों के आधार पर प्रतिदिन पेट्रोल और डीजल की दरों में संशोधन करती हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)